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भारत की कामयाबी के 5 मंत्र, नंदन निलेकणी की मास्टर क्लास

इन्फोसिस के को-फाउंडर नंदन निलेकणी से समझिए कि आने वाले वक्त में स्कूल और वर्क प्लेस का रूप कैसा होगा?

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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई

कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद दुनिया आगे कैसी होगी? स्कूल कैसे होंगे, दफ्तर कैसे होंगे, कारोबार का क्या हाल होगा और रोजगार कहां होगा? और इन सबमें टेक्नोलॉजी का क्या रोल होगा? इन्हीं मुद्दों पर द क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने इन्फोसिस के को-फाउंडर नंदन निलेकणी से खास बातचीत की. इस बेहद खास बातचीत में निलेकणी ने सलाह दी है कि लोग अगले 9 तक महीने तक इसी तरह ऐहतियात के साथ जिंदगी जीने की तैयारी कर लें.

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कोरोना संकट से मुक्ति कब तक?

कोरोना संकट अभी बना रहेगा. वैक्सीन ही इसका एकमात्र उपाय है. अगले साल तक इसके कई वैक्सीन आने की उम्मीद की जा सकती है. वैक्सीन बनने के बाद भी हर व्यक्ति तक इसे पहुंचाना चुनौती होगी. फिलहाल मास्क, हाथ धोना, सोशल डिस्टेंसिंग ही बचाव है.

क्या अभी सावधानी कम करना सही है?

लॉकडाउन में राहत के कारण कोरोना मामले बढ़े हैं. जहां-जहां लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं वहां केसेस बढ़े हैं. अभी वक्त लगेगा. हमें इस वक्त बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है. अगले 6-9 महीने के लिए अपनी जिंदगी प्लान करना होगा.

बिजनेस की क्या स्थिति दिख रही है?

कोरोना का बिजनेस पर बहुत बुरा असर पड़ा है. दो तरह की कंपनियां हैं. डिजिटल और फिजिकल. डिजिटल से जुड़ी कंपनियों का कारोबार चलता रहेगा. फिजिकल काम वाली कंपनियां संघर्ष करेंगी. बेरोजगारी बढ़ेगी, जीडीपी पर असर होगा.

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कोरोना संकट में टेक्नोलॉजी में क्या बदलाव हुआ?

महामारी के कारण टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ा है. जो काम सालों में हो रहे थे वो हफ्तों में हो रहा है. वर्क फ्रॉम होम का प्रचलन बढ़ा है. आज टेक का इस्तेमाल वैसे हो रहा है, जैसे सोचा नहीं था. सुप्रीम कोर्ट तक ऑनलाइन सुनवाई कर रहा है.

जिनके पास फोन नहीं, उन तक बैंक कैसे पहुंचे?

टेक्नोलॉजी सबके पास होना चाहिए. सबके पास आधार है, जिनके पास आधार है उनका बैंक अकाउंट खुल सकता है. फोन आमदनी पर निर्भर करता है. भारत में सबके पास फोन नहीं है. तो उनतक सुविधाएं कैसे पहुंचेंगी. किराना दुकान, कस्टमर केयर सेंटर काम आ सकते हैं. भारत का डीबीटी मॉडल काम आ सकता है. सबको कर्ज की सुविधा कैसे मिले, ये सवाल है. ओपन क्रेडिट इनेबलमेंट नेटवर्क जैसे इंटरफेस मददगार हो सकते हैं. बिजनेस का डेटा देखकर लोन दे सकते हैं.

नेशनल पोर्टबिलिटी का कॉन्सेप्ट क्या है?

पोर्टबिलिटी के दो पहलू हैं. हकदार को देश में कहीं भी सुविधाएं मिले. आधार के माध्यम से आसानी से ईकेवाईसी कर सकते हैं. मोबाइल के साथ भी वही है. रोमिंग के साथ आप कहीं भी उपयोग कर सकते हैं. बैंक अकाउंट के साथ भी वही है. दूसरा हकदार को हर राज्य में सरकारी सुविधाएं मिले. जैसे वन नेशन, वन राशन कार्ड प्रोजेक्ट, किसी भी PDS से राशन लेने की सुविधा मिले. देशभर में कहीं भी चले जाए,

इंटरनल ग्लोबलाइजेशन क्या है ?

देश में इंटरनल ग्लोबलाइजेशन जरूरी है. आप देश के किसी हिस्से में भी हो,एक मार्केट हो. सिंगल पोर्टेबिलिटी हो. इंटरनेशनल ग्लोबलाइजेशन थम चुका है. भारत खुद में एक महादेश है. हमें यहां एक सिंगल मार्केट बनाना चाहिए.

डिजिटल और टेक का हेल्थ में कितना रोल?

डिजिटल और टेक्नोलॉजी का हेल्थ सेक्टर में बड़ा रोल है. आयुष्मान भारत’ के जरिए देश में कहीं भी इलाज संभव है. इसी तरह देश में कहीं भी हेल्थ रिकॉर्ड मिलना चाहिए. नेशनल हेल्थ अथॉरिटी से ये काम हो सकता है. हेल्थ सिस्टम में नेशनल पोर्टबिलिटी लक्ष्य होना चाहिए.

शिक्षा में टेक्नोलॉजी का कितना रोल है?

सरकारी प्रोजेक्ट ‘दीक्षा’ का शिक्षा में बहुत फायदा होगा. देशभर में टेक्स्ट बुक, कंटेंट, टेस्ट वगैरह हो रहे हैं. सबके पास फोन नहीं है. ऑनलाइन पढ़ाई के लिए रेडियो-टेलीविजन काम आएंगे. वर्कशीट के माध्यम से भी पढ़ाई हो सकती है.

आगे कैसे होंगे स्कूल?

ऑनलाइन पढ़ाई अस्थाई व्यवस्था है. आगे हाइब्रिड मॉडल काम करेगा. हर दिन लोग न दफ्तर जाएंगे, न ही स्कूल. एक बार स्थिति सामान्य हो जाए तो चीजें धीरे-धीरे होने लगेंगी.

अब रोजगार और कारोबार कहां?

डिजिटल में सबसे ज्यादा अवसर उत्पन्न हुए हैं. देश में फोन सस्ते हैं. डेटा की भी कीमत कम है. इसके अलावा आधार और बैंक अकाउंट भी हर जगह उपलब्ध हैं. तो ऐसे में डिजिटल के माध्यम से लोगों का जीवन आसान बनाने की कोशिश की जाएगी.

चीनी ऐप्स पर बैन के बाद क्या होगा?

चीनी ऐप्स पर बैन से भारतीय कंपनियों को अवसर मिलेगा. जैसे टिक टॉक पर बैन के बाद भारतीय कंपनियों के ऐप चलन में आए. बैन से पश्चिम की कंपनियों को भी उस जगह फायदा होगा, जहां वो मजबूत स्थिति में हैं.

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टेक वॉर में भारत कहां है?

भारत अकेले एक छोटा मार्केट है. यहां इतना डेटा और रेवेन्यू नहीं है कि अकेले गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां खड़ी कर दी जाए. भारतीय कंपनियां भारत के जरूरी टेक बनाएंगी.

क्या हमारी कंपनियां बड़ी बन सकती हैं?

शायद सर्च या सोशल मीडिया में नहीं, लेकिन ई-कॉमर्स, हेल्थ जैसे क्षेत्रों में जरूर बड़ी बन सकती हैं. टिक टॉक की तरह हम भी कुछ कर सकते हैं.

H1B वीजा पर सख्ती का कितना असर होगा?

अमेरिकियों को भर्ती करने वाली कंपनियों को दिक्कत नहीं है. अमेरिकी चुनाव के बाद सख्ती कम हो सकती है. भारतीय टैलेंट की जरूरत सबको है. और ये बात उन्हें भी पता है.

कोरोना का भारतीय IT इंडस्ट्री पर कितना असर होगा?

30-40 साल से भारतीय कंपनियों ने हर चुनौती का सामना किया है. मुझे उम्मीद है कि आगे भी वो कामयाब होंगी. आज के जमाने में क्लाउड पर काम करना आना चाहिए. भारतीय कंपनियों को सही सर्विस के बारे में पता होना चाहिए, जो आज के जमाने के मुताबिक हैं.

भारतीयों के लिए जरूरी काम क्या हैं?

हेल्थ सिस्टम को ठीक करना होगा. अच्छी शिक्षा को सस्ता और सुलभ बनाना होगा. डिजिटल फाइनेंशियल सेवा देनी होगी. पूरे देश को एक मार्केट बनाना जरूरी है. हजारों नए उद्यमियों की मदद करनी होगी.

भारतीय मीडिया की चुनौतियां क्या है?

दिक्कत ये है कि मीडिया विज्ञापन पर निर्भर है और अब ये विज्ञापन डिजिटल की ओर शिफ्ट हो रहा है. मंदी में विज्ञापन और कम हो जाते हैं. सब्सक्रिप्शन जैसे दूसरे मॉडल खड़े करने होंगे. अगर विश्वसनीयता हो तो चुनौतियों का सामना कर पाएंगे.

क्या उपभोक्ता के खिलाफ जा रहा डिजिटल मीडिया?

ये बहुत अहम मुद्दा है. हमें विश्वसनीय मीडिया ब्रांड खड़े करने ही होंगे. पूरी दुनिया में ये चुनौती है.

बेड़ियों से कैसे आजाद होगा बाजार?

बिजनेस को स्थाई माहौल, नीतियां चाहिए. ईज ऑफ डुइंग बिजनेस के लिए यही जरूरी है. बाजार अच्छा-बुरा सब झेल सकता है, असमंसज नहीं. इस मोर्चे पर अभी काम खत्म नहीं हुआ है.

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