अवमानना केस में दोषी करार दिए गए प्रशांत भूषण ने सजा पर बहस के दौरान 20 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में जो कहा उसकी खूब चर्चा हो रही है. सुर्खियों में यही आया कि उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया है. लेकिन अपना पक्ष रखते हुए भूषण ने कई और बातें कहीं हैं जिनकी चर्चा जरूरी है. तो मैं आपको उनका पूरा स्टेंटमेंट पढ़कर सुनाता हूं...
"मैंने माननीय न्यायालय के फैसले को पढ़ा है. मुझे तकलीफ है कि मुझे अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है, जिसकी महिमा को मैंने बरकरार रखने की हमेशा कोशिश की है - एक दरबारी या जयकारे लगाने वाले के रूप में नहीं बल्कि एक विनम्र रक्षक के रूप में - तीन दशकों से, व्यक्तिगत और व्यावसायिक कीमत चुकाकर भी. मुझे पीड़ा है, इसलिए नहीं कि मुझे सजा हो सकती है, बल्कि इसलिए कि मुझे बहुत गलत समझा गया है."
“मैं हैरान हूं कि कोर्ट ने मुझे अदालत का “दुर्भावनापूर्ण, अपमान” करने का दोषी ठहराया है. मैं निराश हूं कि कोर्ट मेरी मंशा के बारे में बिना कोई सबूत पेश किए नतीजे पर पहुंच गया. मैं ये स्वीकार करता हूं कि मैं निराश हूं कि कोर्ट ने ये जरूरी नहीं समझा कि मुझे शिकायत की कॉपी दी जाए, जिसके आधार पर सुओ मोटो नोटिस जारी किया गया था, मैं निराश हूं कि कोर्ट ने मेरे जवाबी एफिडेविट को नहीं देखा.”प्रशांत भूषण
लोकतंत्र में खुली आलोचना जरूरी
मेरे लिए यह विश्वास करना मुश्किल है कि न्यायालय ने मेरे ट्वीट को "भारतीय लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण स्तंभ के आधार को अस्थिर करने वाला समझा. मैं केवल यह दोहरा सकता हूं कि ये दो ट्वीट मेरे विश्वास को दर्शाते हैं, जिसे जाहिर करने की इजाजत किसी भी लोकतंत्र में होनी चाहिए. मेरा मानना है कि संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा के लिए, लोकतंत्र में किसी भी संस्था की खुली आलोचना आवश्यक है. हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब ऊंचे मूल्य रोजमर्रा की चीजों से ऊपर होने चाहिए, जब संविधान को खुद और पेशे से ऊपर रखना चाहिए, जब हमारे आज की कीमत कल को न चुकानी पड़ी. सही बात नहीं कहना ड्यूटी नहीं निभाने जैसा होगा, खासकर मेरे जैसे न्यापालिका से जुड़े व्यक्ति के लिए.
‘माफी नहीं मांगूंगा’
"मेरे ट्वीट कुछ और नहीं बल्कि हमारे गणतंत्र के इतिहास के इस मोड़ पर मेरी ड्यूटी निभाने की छोटी कोशिश थे. . मैंने बिना सोचे-समझे ट्वीट नहीं किया था. यह मेरी निष्ठा के खिलाफ होगा, अवमानना होगी अगर मैं उन ट्वीट्स के लिए माफी मांगू. क्योंकि ये ट्वीट करते वक्त मेरे दिमाग जो बातें थी, वो अब भी हैं. इसलिए, मैं केवल विनम्रतापूर्वक वही कह सकता हूं, जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने ट्रायल में कहा था: मैं दया नहीं मांगता. मैं उदारता की अपील नहीं करता. अगर कोर्ट को लगता है कि मैंने कोई अपराध किया है और कानून के मुताबिक कोई सजा देना चाहता है तो मुझे खुशी-खुशी स्वीकार है, इसे स्वीकार करना एक नागरिक के तौर पर मेरा परम कर्तव्य है.
इसके बाद कोर्ट ने भूषण को अपने स्टेंटमेंट पर फिर से विचार करने को कहा.
जवाब में भूषण ने कहा - उनका जवाब सोचा विचारा हुआ है और उन्हें नहीं लगता कि वो इसे बदलेंगे. हालांकि उन्होंने विचार करना स्वीकार किया.
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