वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम
राज्यसभा के 12 सांसदों को 29 नवंबर को शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया. मॉनसून सत्र के दौरान हिंसक व्यवहार के लिए नियम 256 के तहत निलंबन का प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कांग्रेस के छह, शिवसेना और TMC के दो-दो और CPI, CPM के एक-एक सदस्य शामिल हैं. हालांकि, विपक्षी दलों ने इस निलंबन को 'लोकतांत्रिक' करार देते हुए संसद के बाहर गांधी पुतले पर धरना दे रहे हैं.
इस पूरे मसले पर शिवसेना की निलंबित सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने क्विंट हिंदी से खास बातचीत की हैं.
सांसदों का निलंबन गैर संविधानिक क्यों?
सबसे पहले स्पष्ट करना चाहूंगी कि किसान कानून पर चर्चा के लिए नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों के निजीकरण के बिल का विरोध करने पर निलंबन किया गया हैं. अचानक लाए गए बिल का विपक्ष विरोध कर रहा था. लेकिन केंद्र सरकार ने मनमानी तरीके से बिल पास करा लिया. सबसे बड़ा आक्षेप इस बात पर है कि पिछले मॉनसून सत्र के हंगामे के लिए इस सत्र में निलंबन किया गया हैं. इस तरह का निलंबन संसद के नियमों के खिलाफ हैं. इसीलिए ये निलंबन गैर-संविधानिक तरीके से हुआ हैं. इस बात पर विपक्ष कायम हैं.
संसद टीवी एंकर का पद क्यों छोड़ा?
दरअसल, विपक्षी सांसद होने के बावजूद बाई पार्टिसन स्पिरिट में संसद टीवी का शो करने का मैंने निर्णय लिया था. महिलाओं को सक्रिय राजनीति में आने की प्रेरणा मिले इसीलिए शो की होस्ट बनी थी. लेकिन सबसे ज्यादा महिला सांसदों को निलंबित किया जा रहा हैं. संसद में हुए हंगामे में महिला सांसदों को धक्का दिया गया, किसी की टांग टूटी, तो कइयों को अस्पताल ले जाना पड़ा. इतना ही नहीं, निलंबन करने से पहले हमारा पक्ष तक नही सुना गया. विपक्ष आवाज उठाने पर इसी चैनल का प्रक्षेपण रोक दिया जाता हैं.
"ऐसे में मेरा जमीर मुझे इस भूमिका में बने रहने की इजाजत नहीं दे रहा था. इसीलिए आखिरकार मैंने सांसद टीवी का एंकर पद छोड़ने का निर्णय लिया."प्रियंका चतुर्वेदी
निलंबन के बावजूद ट्विटर पर मुद्दे उठा रहे हैं. ऐसा करना क्यों जरूरी है?
सच कहूं तो में निलंबन के बाद अपना बैग पैक कर घर चली जाती. लेकिन मुझे लगता हैं कि मैं इस देश के लोगों के प्रति जवाबदेह हूं. महाराष्ट्र के 34 विधायकों ने सहमति से मुझे यहां भेजा हैं. दूसरा, निलंबित 12 सांसद भी अपने राज्यों की आवाज बनकर यहां आए हैं. लेकिन हमारी आवाज दबाने पर हमें सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ रहा हैं. जो लोगों के मुद्दे हमे संसद में उठाने थे, वो अब हम सोशल मीडिया पर उठा रहे हैं. क्योंकि अब यही एक लोकतांत्रिक माध्यम हमारे पास बचा हैं.
केंद्र को क्या संदेश देना चाहेंगी?
हमें आजादी के बाद डेमोक्रेसी नहीं मिली, बल्कि डेमोक्रेसी हिंदू जीवनपद्धति का हमेशा से एक हिस्सा रही हैं. जब जब आप असहमति और मतभेदों को दबाएंगे, तब आप भारतीय संकृति के नींव को हिलाएंगे. हम इस तरह लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या होने नहीं देंगे. नहीं तो आने वाली पीढ़ियां ऐसा संसदीय लोकतंत्र देखेंगी, जहां चर्चा और असहमति को कोई स्थान नहीं.
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