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नागपुर में प्रणब दा ये भाषण भी पढ़ सकते थे, लेकिन ऐसा हो न सका!

संघ के मैदान में प्रणब मुखर्जी क्या कुछ कह सकते थे?

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वीडियो एडिटर- विवेक गुप्ता और मो. इब्राहिम

डिस्क्लेमर:

ऊपर जो वीडियो आप जो देखने जा रहे हैं वो मुख्य तौर पर काल्पनिक है. ये नागपुर की उस वास्तविक घटना से प्रेरित है, जिसमें आरएसएस कार्यकर्ताओं की पासिंग आउट परेड के दौरान भारत के एक पूर्व राष्ट्रपति, आरएसएस सरसंघचालक के साथ एक मंच पर मौजूद थे. प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए कुछ सच्चे और वास्तविक वीडियो इस्तेमाल किए गए हैं. बाकी तमाम बातें, उस भाषण का व्यंग्य रूप हैं जो  नागपुर में दिया जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा हो न सका!

संगठन के कार्यकर्ताओं ने अपने करतब दिखाने शुरू कर दिए. वो कभी लाठियां भांजते, तो कभी निहत्थे ही आमने-सामने की लड़ाई का हुनर दिखाते. इसके बाद एसएस का भाषण हुआ, जिसमें उन्होंने हमेशा की तरह हिंदू राष्ट्रवाद की महानता का बखान किया:

“सारी विविधता के बावजूद हमें मालूम होना चाहिए कि हमारे पुरखे एक थे. हिंदू सिर्फ बहुसंख्यक नहीं हैं. वो देश के भविष्य के लिए उत्तरदायी हैं.”

अब गुस्से से उबलने की बारी पीडी की थी. वो पूरी जिंदगी ऐसी विभाजनकारी बकवास का विरोध करते रहे थे. लेकिन उनकी जबरदस्त सहनशीलता की भी आज परीक्षा थी. वो चेहरे पर कोई भाव लाए बिना इस हिंदुत्ववादी प्रलाप को खामोशी से सुनते रहे.

आखिर जवाब देने का वक्त आ ही गया!

आखिरकार, वो वक्त आ ही गया जिसका सबको इंतजार था, यानी पीडी का भाषण! वक्त जैसे थम सा गया. टीवी पर बदलती तस्वीरों की रफ्तार भी मानो मंद पड़ गई. माहौल में ऐसा सन्नाटा छा गया कि एक सुई के गिरने की आवाज भी सुनी जा सकती थी. पीडी ने अपना गला साफ किया और अपने पहले से लिखे हुए भाषण के पन्ने खोलते हुए बोले:

आदरणीय एसएस जी और सम्मानित सज्जनों (पीडी ने “सज्जनों” पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया), मुझे पता है कि आपके दिल में हिंदी का विशेष स्थान है और अगर मैं हिंदी में बोलता तो आपको अच्छा लगता, लेकिन मेरी मातृभाषा बांग्ला है और मैं सोचता अंग्रेजी में हूं. इसलिए आपकी इजाजत से मैं अपना भाषण इस “विदेशी” भाषा में ही दूंगा.
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मुझे यकीन है, आप जानते होंगे कि 2010 में दिल्ली के बुराड़ी में आयोजित ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) के 83वें अधिवेशन के दौरान एक राजनीतिक प्रस्ताव पेश करते हुए मैंने क्या कहा था. मैंने उस प्रस्ताव में अपनी यूपीए सरकार से कहा था-

इस संगठन और इसके उन सहयोगियों के आतंकवादियों से रिश्तों की जांच कराई जाए, जिनका हाल के कुछ मामलों में खुलासा हुआ है.

मुझे बेहद हैरानी है कि आपने ये जानते हुए भी मुझे निमंत्रण दिया कि मैं आपको एक तरह से आतंकवादी कह चुका हूं; धन्यवाद!

आपके लाठी भांजने वाले कार्यकर्ताओं की चुस्ती-फुर्ती उल्लेखनीय है. मुझे उम्मीद है कि इनका इस्तेमाल, दूसरों पर अपनी मर्जी और सोच थोपने के लिए गुंडागर्दी करने वाले उन गिरोहों के खिलाफ किया जाएगा, जो आपके सहयोगियों की सरकार वाले राज्यों में एक नई और खौफनाक हकीकत बन गए हैं. मिसाल के तौर पर युद्धकला में उनकी ये महारत राजस्थान में किसी पहलू खान और उत्तर प्रदेश में किसी अखलाक की दंगाई भीड़ से रक्षा करेगी, गुजरात में उन बेबस दलित लड़कों को बचाएगी जिनकी चमड़ी जिंदा ही उधेड़ दी गई थी. चूंकि आप प्रशिक्षित और अनुशासित हैं, इसलिए आपको सार्वजनिक जीवन से हर तरह की शारीरिक और शाब्दिक हिंसा को मिटाने का काम करना चाहिए.

मुझे इस बात का भी उतना ही दुख है कि आपने आधुनिक भारत के निर्माण में पंडित नेहरू के योगदान का भी कोई जिक्र नहीं किया. हालांकि आपने इस विकास यात्रा के कई अहम पड़ावों की जमकर तारीफ की, जो सही भी है. आगे बढ़ने से पहले मैं ईमानदारी से बताना चाहता हूं कि मैं नेहरू के समाजवाद से बेहद प्रभावित रहा हूं, और हां, आप मुझे नेहरू भक्त भी कह सकते हैं!

पंडित नेहरू ने भारतीय राष्ट्रवाद को अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया (भारत एक खोज) में बड़ी खूबसूरती से समझाया है, जिसे मैं यहां उन्हीं के शब्दों में बताना चाहता हूं-

मुझे यकीन है कि भारत में राष्ट्रवाद हिंदू, मुस्लिम, सिख और भारत के अन्य समुदायों के वैचारिक मेलजोल से ही मजबूत हो सकता है. इसका मतलब किसी समूह की मूल संस्कृति का खत्म होना नहीं है. इसका मतलब है, एक साझा दृष्टिकोण, जिसका स्थान बाकी सभी बातों से ऊपर है.

इसलिए आपके भाषण में बार-बार हिंदू समाज का जिक्र सुनकर मैं हैरान था. भारत में विविधता का क्या यही मतलब रह गया है कि सभी समुदायों को जबरदस्ती एक संगठित हिंदू समाज के नाम से पहचाना जाए? आपके हिंदू समाज के ढांचे में मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों, पारसियों का कहीं कोई जिक्र नहीं है? हम अपने सैकड़ों साल के इतिहास को इतनी आसानी से कैसे नकार सकते हैं? हां, मैं मानता हूं कि अशोक, मौर्य वंश, गुप्त वंश और दूसरे कई राजाओं ने भारत की नींव रखी, जब तक कि मुस्लिम....(यहां पीडी रुक जाते हैं- एक लंबा, पीड़ादायक, अधर में लटका हुआ ठहराव....मानो तय नहीं कर पा रहे हों कि आगे क्या कहें)....

नहीं...नहीं...मैं जानता हूं कि आपने मुझे अपने लिखित भाषण में मुस्लिम आक्रमणकारी जैसे शब्द का इस्तेमाल करने के लिए तैयार कर लिया था...लेकिन मुझे इसे बदलने की इजाजत दें. मैं मुस्लिम शब्द को यहां से हटाना चाहूंगा. एक हजार साल पहले हमला करने वाले किसी आक्रमणकारी से एक धर्म को जोड़ना उतना ही मूर्खतापूर्ण और खतरनाक है, जितना आज के दौर में किसी आतंकवादी से उसे जोड़ना. ऐसा करना तब तो और भी विनाशकारी हो जाता है, जब ऐसे गलत ढंग से पेश किए गए इतिहास का इस्तेमाल 1992 में बाबरी मस्जिद की इमारत को ढहाने जैसी घटनाओं में किया जा चुका है. उस घटना के वक्त उत्तर प्रदेश में आपसे जुड़े लोगों का ही राज था.

इसलिए प्लीज, मेरे इस भाषण की छपी हुई प्रतियां मीडिया को देने से पहले मुस्लिम शब्द इस लाइन से हटा दीजिएगा.

और आखिरकार, अपनी बात खत्म करने से पहले मैं कहना चाहता हूं कि काश, इस जमावड़े में महिलाएं भी बराबरी से शामिल होतीं. मुझे पता है कि ये अविवाहित लोगों का "संगठन" है, लेकिन सिर्फ इसी वजह से हमें भारतीय महिलाओं के असाधारण योगदान को स्वीकार करने और उसका जश्न मनाने से पीछे नहीं हटना चाहिए.

जय हिंद!

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