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MGNREGA: सरकारी योजना के ‘फरेब’ ने ले ली एक गरीब की जान

किसानों को अब भी मुआवजे का इंतजार

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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार/आशुतोष भारद्वाज

'मुझे अपनी पढ़ाई छोड़नी होगी क्योंकि अब मुझे खेती देखनी पड़ेगी'- ये कहना है 17 साल के सूरज का जो स्वर्गीय लखन महतो के बेटे हैं. 28 जुलाई 2019 को सूरज के परिवार को ये पता चला कि उनके पिता का शव कुएं में तैर रहा है.

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सूरज और उनकी मां विमला देवी को सारी कड़ी जोड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगा, किसी को उम्मीद नहीं थी कि 48 साल के लखन इस तरह का कदम उठा सकते हैं.

झारखंड, चान्हो ब्लॉक के पतरातु गांव में लखन महतो की खेत के पास MGNREGA (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत एक कुएं का निर्माण होना था. कुएं का निर्माण 2017 में शुरू हो चुका था, महतो को सरकार से पूरी राशि नहीं मिली.

'हम (पंचायत ऑफिस) 25 बार गए'

लखन की फोटो दिखाते हुए उनकी पत्नी विमला देवी कहती है कि उनके पति काफी तनाव में थे-

डेढ़ लाख रुपये अभी भी मिलने बाकी हैं, उन्हें चिंता थी कि उनका पैसा कब तक मिल पाएगा, ‘हमने लोन लिया हुआ था, हर किसी को खेती करनी पड़ती है, अब जिनसे पैसे लिए हैं वो अपने पैसे  मांगते हैं.
विमला देवी, स्वर्गीय लखन माहतो
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निर्माण राशि के लिए MGNREGA में दो चीजे हैं: 60% मजदूरों के लिए और बाकी 40% निर्माण सामग्री के लिए दिए जाते हैं. महतो के परिवार का आरोप है कि लगातार निवेदन करने के बाद भी स्थानीय पंचायत दफ्तर में, लखन को 40% राशि नहीं मिल पाई.

28 किसानों को अब भी मुआवजे का इंतजार

लखन के अलावा उनके गांव में 28 ऐसे किसान और हैं जिन्हें अब तक अपनी राशि नहीं मिल पाई है जिन्होंने MGNREGA स्कीम में हिस्सा लिया था, लखन की तरह ही उन्हें भी मुआवजे की राशि अब तक नहीं मिल पाई है, कई किसानों का कहना है कि पैसे जारी करने के लिए कई अधिकारी उनसे घूस मांगते हैं.

हर कोई पैसा मांगता है, पहली बार साइन करने के वक्त से पैसा मांगना शुरू कर देते हैं
किसान, पतरातू गांव

ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि मनरेगा के तहत 29 अगस्त 2019 तक 78 करोड़ रुपये की राशि लंबित है. सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल में 180 करोड़ रुपये लंबित हैं. इसके बाद आंध्र प्रदेश और राजस्थान में क्रमशः 179 करोड़ रुपये और 112 करोड़ रुपये लंबित हैं.

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