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Sammed Shikharji Vs मरांगबुरू: मिलकर रहते थे जैन-आदिवासी, विवाद क्यों शुरू हुआ?

2019 के केंद्र सरकार के फैसले पर इस वक्त हंगामा क्यों खड़ा हुआ. इसको 5 घटनाओं से समझते हैं.

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दिसंबर 2022 तक सबकुछ ठीक था. जैन तीर्थयात्री सालों से सम्मेद शिखर जी (Sammed Shikharji) की यात्रा करने आ रहे थे. आदिवासी मरांगबुरू की पूजा अपने तौर-तरीकों से करते आ रहे थे. अन्य लोग पारसनाथ पहाड़ घूमने, दर्शन करने और पिकनिक मनाने भी आते रहे थे. लेकिन जनवरी 2023 से ऐसा नहीं रहा.

साल 2019 में केंद्र सरकार के एक फैसले की चिंगारी साल 2023 के शुरूआती दिन में उठने लगी. झारखंड की तत्कालीन रघुवर दास सरकार की पहल को आगे बढ़ाते हुए मोदी सरकार के फैसले के मुताबिक पारसनाथ के इलाके को इको टूरिज्म क्षेत्र घोषित किया गया.

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आखिर 2019 के केंद्र सरकार के फैसले पर इस वक्त हंगामा क्यों खड़ा हुआ. इसको 5 घटनाओं से समझते हैं.

पहली घटना: पारसनाथ पहाड़ का इलाका मुख्य तौर पर झारखंड के गिरिडीह जिले में आता है. गिरिडीह के जिलाधिकारी नमन प्रियेक लकड़ा बताते हैं, इस पहल के तहत बीते साल अक्टूबर माह में पारसनाथ पर्यटन विकास प्राधिकरण का गठन होना था. नियम के मुताबिक, प्राधिकरण के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में दो दिगंबर जैन, दो श्वेतांबर जैन और दो स्थानीय आदिवासी समुदाय के सदस्य होने थे. बैठक में जैन समुदाय के लोगों ने यहां पर्यटन शब्द पर आपत्ति जताई थी.

2019 के केंद्र सरकार के फैसले पर इस वक्त हंगामा क्यों खड़ा हुआ. इसको 5 घटनाओं से समझते हैं.

पारसनाथ पहाड़ का इलाका जहां जैन समाज का तीर्थ स्थल सम्मेद शिखर जी है और आदिवासी समाज मरांगबुरू की पूजा-अर्चना करता है. 

(फोटो- क्विंट हिंदी)

दूसरी घटना: साल 2022 का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें यह दिख रहा था कि कुछ लोग पारसनाथ पहाड़ पर पिकनिक कर रहे हैं, जिसमें वह मांस पका रहे हैं. यही वीडियो देशभर में जैन समाज के लोगों के पास पहुंचा और वो खफा हो गए. इस वीडियो की पुष्टि के लिए केंद्र की कई एजेंसियों की चिट्ठी गिरिडीह जिलाधिकारी के पास पहुंची.

तीसरी घटना: पारसनाथ के स्थानीय व्यापारी मुकेश रजक बताते हैं, "28 दिसंबर 2022 को स्कूल छात्र-छात्राओं का एक दल पारसनाथ पहाड़ी चढ़ने जा रहा था. उसी वक्त नागपुर के एक जैन तीर्थयात्री संतोष जैन ने उन बच्चों को ऊपर जाने के रोक दिया. संतोष जैन का कहना था कि जूता-चप्पल लेकर ऊपर नहीं जा सकते हो. यह अपवित्र होता है. तुमलोग जैन नहीं हो, तो क्यों जा रहे हो?"

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एक और स्थानीय व्यापारी दिलीप श्रीवास्तव आगे बताते हैं, "हमलोगों ने इसका विरोध किया. पहाड़ पर तो कोई भी जा सकता है. आज से नहीं, हमेशा से सभी लोग जाते रहे हैं. इस घटना के विरोध में हमने कुछ देर बाजार भी बंद रखा.’"

चौथी घटना दो साल पहले की है. हजारीबाग के जैन कारोबारी कमल जैन विनायका बताते हैं, "साल 2021 के 13 दिसंबर को बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने आदिवासी पूजा स्थल, जिसे जाहेर थान कहा जाता है, वहां पूजा-अर्चना की. साथ ही वहां एक बोर्ड भी लगाया गया. यहीं से जैन समाज के अंदर कुलबुलाहट शुरू हुई."

पांचवी घटना: जैन धर्मगुरु विनम्रसागर जी महाराज का एक वायरल वीडियो. जिसमें उनका कहना है कि सरकार को यहां भगवान नहीं, रेवेन्यू दिख रहा है. अगर रेवेन्यू की ही आवश्यक्ता है, वो जैन समाज भरपूर रूप से  प्रदान कर सकता है. जो तीर्थ यात्री आएंगे उससे भी राजस्व आएगा.

2019 के केंद्र सरकार के फैसले पर इस वक्त हंगामा क्यों खड़ा हुआ. इसको 5 घटनाओं से समझते हैं.

मरांगबुरू को दर्शाता बोर्ड, झारखंड का गिरडीह जिला

(फोटो- क्विंट हिंदी)

मरांग बुरू की मांग क्यों

इंटरनेशनल संताल काउंसिल के अध्यक्ष नरेश मुर्मू क्विंट से कहते हैं, ‘मरांग’ का अर्थ होता है सबसे बड़ा और ‘बुरू’ का अर्थ होता है पहाड़ी. हम अपने देवता को भी ‘मरांग बुरू’ कहते हैं. पारसनाथ तो एक रेवेन्यू विलेज का नाम है. लेकिन आप देखिये हमारे नाम को ही मिटा दिया गया. केंद्र सरकार की चिट्ठी से लेकर अखबारों, चैनलों तक में पारसनाथ या सम्मेद शिखर जी के नाम का जिक्र है. कहीं भी मरांग बुरू लिखा गया क्या.

दूसरी बात, ‘जैन धर्म के लोग यहां अतिथि बनकर आए. क्या आप किसी अतिथि के घर जाते हैं, कुछ दिन ठहरते हैं और घर बनाने लगते हैं. लेकिन जैन समाज के लोग सीएनटी एक्ट का उल्लंघन करते हैं और कुल 36 धर्मशाला और मंदिर बनाते हैं. फिर कहते हैं कि मंदिर के 10 किलोमीटर के एरिया को जैन धर्म के लोगों के हवाले कर दिया जाए.’

वो आगे कहते हैं, ‘हमारी मांग है कि पूरी पहाड़ी को केंद्र सरकार लिखित तौर पर मरांग बुरू घोषित करे, आदिवासी जमीन पर जो निर्माण हुए हैं उसको ध्वस्त किया जाए. जैन समाज के लोग तीर्थ करने के लिए आते रहें, उससे हमें कोई दिक्कत नहीं है. बस अपना अधिकार न जमाएं.’

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सम्मेद शिखर जी केवल जैनियों के या सबके?

कमल जैन विनायका क्विंट से कहते हैं, "हम तो देश के 130 करोड़ लोगों से अपील करते हैं कि वो सम्मेद शिखर जी आएं. जैनियों के आस्था के अनुसार यात्रा करें."

मकर संक्रांति के एक दिन बाद यहां हजारों की संख्या में लोग आते हैं. वो पहाड़ चढ़ते हैं. इसमें अधिकतर जैन समाज से बाहर के लोग होते हैं. पहाड़ की तलहटी में मेला भी लगता है.

क्या इस बार वो मेला लगेगा?

गिरिडीह जिला के स्थानीय आदिवासी नेता सिकंदर हेम्ब्रम कहते हैं, "मेला लगेगा और पिछले साल की तरह ही लगेगा." वो कहते हैं, "जैन समाज से हमारा कोई विरोध नहीं है. लेकिन वो हमारी परंपरा को निभाने में बाधक न बनें. पहाड़ पर अपना कब्जा न बताएं."

अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बसंत कुमार मित्तल कहते हैं, "आदिवासियों के साथ सामंजस्य में कोई दिक्कत नहीं है. जो भी तीर्थयात्री आज तक आए हैं, उनकी सेवा आदिवासियों ने ही की है. उन्हीं की बदौलत तीर्थयात्रा संभव हो पाती है. लेकिन हमारा केवल इतना कहना है कि जैन धर्म के अनुसार उस स्थल की पवित्रता को बनाए रखना चाहिए. हम ये भी कहना चाहते हैं कि जैन समाज ने जनजातीय समाज की अवहेलना नहीं की है."

वो आगे कहते हैं, "समाज के बीच में कोई संघर्ष नहीं है. कुछ नेता इसमें राजनीति करना चाहते हैं. हमारे धर्मगुरू प्रमाणसागर जी महाराज गिरिडीह में ही हैं, झारखंड के नेताओं को उनके साथ बैठकर बातचीत करनी चाहिए."

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शुरू हो चुकी है राजनीति

वहीं अब इस मामले में राजनीतिक उग्रता भी शुरू हो गई है. जेएमएम के विधायक लोबिन हेम्ब्रम का कहना है कि, "हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं, लेकिन आस्था के नाम पर कब्जा नहीं करने दिया जाएगा. हालात ये हैं कि यहां 10 किमी के एरिया में बलि नहीं करने की बात हो रही है. जंगल से लकड़ी नहीं काटने दिया जाता है. जमीन हमारी है, पहाड़ हमारे हैं. सरकार इस पूरे स्थल को मरांग बुरू स्थल घोषित करे."

2019 के केंद्र सरकार के फैसले पर इस वक्त हंगामा क्यों खड़ा हुआ. इसको 5 घटनाओं से समझते हैं.

10 जनवरी को आदिवासियों के विरोध प्रदर्शन में लोबिन हेम्ब्रम

(फोटो: Accessed by Quint Hindi)

जेएमएम के महासचिव और गिरिडीह के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने भी साफ कहा है कि यह पहाड़ी आदिवासियों की है.
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वहीं, बीजेपी नेता इस पूरे मसले पर सीधे बात करने से बच रहे हैं. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि, "अभी हम बात करने की स्थिति में नहीं हैं. जो केंद्र का निर्णय होगा, वही हमारा निर्णय होगा."

कमल जैन एक बार फिर कहते हैं, "देश के गृहमंत्री भी जैन हैं, वो 7 दिसंबर को चाईबासा आते हैं, लेकिन इतने बड़े मुद्दे पर एक शब्द नहीं कहते हैं. देशभर में आंदोलन हुए, लेकिन पीएम मोदी ने एक शब्द तक कहना उचित्त नहीं समझा. क्या वो देख, सुन नहीं रहे थे."

एक तरफ झारखंड की मिलजुलकर कर रहने की परंपरा, सामाजिक ताना-बाना है. 10 जनवरी को लगभग 5000 आदिवासी इस जगह पर जुटे. मुख्य वक्ता के तौर पर जेएमएम विधायक लोबिन हेंब्रम ने कहा कि- "अपनी ही सरकार में अपने अधिकार के लिए भीख मांगनी पड़ रही है, 25 जनवरी तक अगर मरांग बुरू का अधिकार आदिवासियों को नहीं मिला तो हम ताकत दिखा देंगे. हेमंत मुझे पार्टी से निकाल सकते हैं, माटी से नहीं."

2019 के केंद्र सरकार के फैसले पर इस वक्त हंगामा क्यों खड़ा हुआ. इसको 5 घटनाओं से समझते हैं.

10 जनवरी को लगभग 5000 आदिवासियों ने अपना विरोध दर्ज करवाया

(फोटो: Accessed by Quint Hindi)

वहीं, पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि जैन धर्म के लोगों ने हमारे मरांग बुरू पर कब्जा करने के लिए देश भर में आंदोलन किया और केंद्र और राज्य सरकार पर दबाव बनाया. पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि मरांग बुरु हमारा है. हमें अपनी विरासत को बचाए रखने के लिए लड़ना होगा.

वहीं इस पूरे प्रकरण पर स्थानीय विधायक सुदिव्य कुमार सोनू का मंच से विरोध किया गया. हालांकि उन्होंने कहा कि आदिकाल से चली आ रही परंपरा में न कोई चीज जोड़ी जायेगी, न ही घटाई जायेगी. पारसनाथ पर्वत मरांग बुरू थे और रहेंगे.

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