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ऐड गुरु संतोष देसाई ने बताया कैसे करें वोटिंग का फैसला?

चुनावी मौसम में संजय पुगलिया के साथ संतोष देसाई की खास बातचीत.

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क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया के साथ कंज्यूमर बिहेवियर, एडवरटाइजिंग और मीडिया एक्सपर्ट संतोष देसाई की खास बातचीत

हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया में संतोष देसाई ने एक लेख लिखा था 'When in doubt, Vote against'. जब देसाई से इस लेख के बारे में पूछा गया तो वो कहते हैं कि वोट देने से पहले तय करना चाहिए कि आखिर देश की बुनियाद के लिए कौन सी स्थिति सबसे सही है.

मुद्दा है ये कि ‘मैं हूं, दूसरी तरफ अराजकता है’, ये जुबान बड़ी अलग है. एक तरफ अगर मैं नहीं हूं, तो गठबंधन है, कमजोर सरकार है, आतंकवाद है, हिंदू सबसे ज्यादा खतरे में है, तब है जब आप हैं. आतंकवाद की घटनाएं तब बढ़ी हैं जब आप हैं, पुलवामा तब हुआ है जब आप हैं. ये आपकी असफलता है जिसे आप सफलता बता रहे हैं, और दूसरी तरफ माना कि गठबंधन होगा. माना कि अस्थिरता होगी लेकिन अगर लोकतांत्रिक संस्थाओं को खतरे कम हैं वो अगर उन्हें क्षति की ओर नहीं जा रहे हैं तो आज वोटर को अगले लगभग 40 दिन में चुनना है, तो वोटर फैसला कैसे ले कि उसे किस पार्टी को वोट करना है?
संजय पुगलिय, एडिटोरियल डायरेक्टर, क्विंट

संतोष कहते हैं कि अगर किसी वोटर के दिमाग में ये चल रहा है कि वोट बीजेपी को करें या कांग्रेस को करें या दूसरी पार्टी को. इस स्थिति में उस वोटर को खुद से ये सवाल करना चाहिए कि देश की बुनियाद पर जो खतरा है वो कहां से है? इस सवाल के जवाब के मुताबिक ही वोट देना चाहिए.

आमतौर सुनने में आता है कि कुछ लोग हैं, जो ये सोच चुके हैं कि वो वोट करेंगे या नहीं करेंगे, लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो सोचते हैं कि मुझे पसंद नहीं है कि बीजेपी किस ओर जा रही है. लेकिन दूसरी तरफ अगर देखें. तो महागठबंधन है, अराजकता है, कौन वहां जाना चाहेगा? इस तरह के मुद्दे हम सुनते हैं. अगर आपको शक हो तो सबसे पहले बुरी से बुरी हालत के बारे में सोचिए दोनों पार्टियों के बारे में क्या हो सकता है? सबसे बुरा बीजेपी वापस आ जाएगी? क्या हो सकता है कि अगर विपक्ष सत्ता में आ जाए? और फिर आप पूछिए अपने आप से कि आप किस चीज को रोकना चाहेंगे? किस चीज पर आपको लगता है कि ये मौलिक आधार पर गलत हैं. 
संतोष देसाई, कंज्यूमर बिहेवियर, एडवरटाइजिंग और मीडिया एक्सपर्ट

संतोष देसाई कहते हैं कि कुछ लोग ये भी कह सकते हैं कि देश का फैब्रिक खराब हो रहा है, संस्थाएं खतरे में है या ये भी कह सकते हैं कि एक ही परिवार देश चला रहा था अब बदलना है. ऐसे में देसाई के मुताबिक, वोटर को सबसे पहले सोचना चाहिए कि किस चीज से देश की बुनियाद को सबसे ज्यादा खतरा है.

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पूरा इंटरव्यू देखें: ‘चुनाव और कंज्यूमर मार्केटिंग में फर्क मिट गया है’

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