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शाहीन बाग: SC के फैसले पर वकील करुणा नंदी की राय

क्या ये फैसला भारतीय कानून के मुताबिक सही है?

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्टूबर को सीएए विरोध के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रदर्शनकारियों के सार्वजनिक जगहों को अनिश्चित काल के लिए कब्जे में लेने से लोगों को दिक्कत झेलनी पड़ सकती है और ये उनके अधिकार का हनन है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से भी कहा है कि ऐसी जगहों पर से कब्जा हटाने के लिए प्रशासन को कोर्ट के ऑर्डर का इंतजार नहीं करना चाहिए.

कोर्ट ने कहा, "शाहीन बाग में या फिर कहीं और भी सार्वजनिक जगहों को अनिश्चित काल के लिए कब्जे में नहीं लिया जा सकता है. प्रशासन को ऐसी जगहों को अवरोध से दूर रखना चाहिए. इसके लिए कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं करना चाहिए."

क्विंट ने जनहित याचिका दायर करने वालीं प्रतिष्ठित वकील करुणा नंदी से बात की और समझा कि क्या कोर्ट के पास सार्वजानिक जगहों में प्रदर्शन पर इस तरह का प्रतिबंध लगाने की ताकत है.

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क्या ये फैसला भारतीय कानून के मुताबिक सही है?

करुणा नंदी ने कहा कि प्रदर्शन करने के अधिकार को पब्लिक ऑर्डर का हित ध्यान में रखते हुए कुछ हद तक ही सीमित किया जा सकता है. लेकिन पब्लिक ऑर्डर क्या है?

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की लंबी लिस्ट है जिनमें पब्लिक ऑर्डर को डिफाइन किया गया है. पब्लिक ऑर्डर ट्रैफिक को परेशानी नहीं है... पब्लिक ऑर्डर कानून के शासन को खतरा है, या तो दंगा या फिर राज्य पर बहुत बड़ा हमला. ऐसा कोई सबूत नहीं है कि शाहीन बाग में पब्लिक ऑर्डर का उल्लंघन हुआ था. 
करुणा नंदी

फैसला इंटरनेशनल कानून के कैसे खिलाफ है?

नंदी बताती हैं कि सार्वजानिक जगहों में प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाना यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स और इंटरनेशनल कोवेनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स के तहत शांतिपूर्ण तरीके से जमा होने के अधिकार का उल्लंघन है.

नंदी ने कहा कि एक हद तक ट्रैफिक या कमर्शियल गतिविधि में परेशानी सहनी होगी और इसलिए प्रशासन को स्थिति को सुधारने के लिए और तरीके ढूंढने चाहिए, जैसे कि दूसरी रोड खोल देनी चाहिए और यही शाहीन बाग में किया जा सकता था.

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हमें इस फैसले से क्यों परेशान होना चाहिए?

करुणा नंदी ने याद दिलाया कि प्रदर्शनों पर प्रतिबंध शांतिपूर्ण तरीके से जमा होने के अधिकार के खिलाफ नहीं जा सकता है क्योंकि इस तरह लोग अपनी बात रखते हैं और सरकार तक अपनी बात पहुंचाते हैं.

नंदी ने कहा, "राज्य को दिखना चाहिए कि कौन उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है. औसत नागरिक को पता होना चाहिए कि प्रदर्शनकारी क्या कह रहे हैं."

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