सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह समलैंगिक सेक्स को अपराध मानने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 पर पुनर्विचार करेगा. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बरकरार रखने वाले अपने पहले के आदेश पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है.
चीफ जस्टिस मिश्रा ने कहा, "हमारे पहले के आदेश पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है."
अदालत ने यह आदेश 10 अलग-अलग याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर दिया है जिसमें कहा गया है कि आईपीसी की धारा 377 अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है.
सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले अपने एक आदेश में दिल्ली उच्च न्यायालय के समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के फैसले के विरुद्ध फैसला सुनाया था. इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजते हुए न्यायालय ने कहा कि 'जो किसी के लिए प्राकृतिक है वह हो सकता है कि किसी अन्य के लिए प्राकृतिक न हो.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने संबंध में कहा है कि 'आर्टिकल 377 को असंवैधानिक करार देकर दिल्ली हाई कोर्ट ने सटीक फैसला सुनाया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलट दिया है. राइट टू प्राइवेसी का अधिकार मौलिक अधिकार है इसमें समलैंगिकता भी शामिल है. सुप्रीम कोर्ट के आर्टिकल 377 पर फिर गौर करने के मुद्दे का LGBT समुदाय ने स्वागत किया.
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि
संसद और न्यायपालिका का साथ आना जरूरी समलैंगिकता पर NDA का रुख निराशाजनक, बीजेपी में समलैंगिकता का समर्थन करने वालों को साथ आना होगासामाजिक कार्यकर्ता
लेकिन फैसले पर फिर विचार से हर कोई खुश नहीं है बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा, ‘ये एक प्राकृतिक दोष है, लेकिन इसका उत्साह मनाना और दूसरे बच्चों को इसमें लाना एक अपराध होगा.’
तो क्या भारत में समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता मिल पाएगी?
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