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वाराणसी : एक ही पौधे में तीन सब्जियां, आलू, टमाटर और बैगन

एक पौधे में तीन सब्जियां, भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान की सौगात, आलू, टमाटर और बैगन एक साथ

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी और मिर्जापुर जिले की सीमा पर स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने एक ऐसा प्रयोग किया है कि अब बैगन के तने में टमाटर और बैगन एक साथ उगाई जा रही है. इस तकनीक को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक ग्राफ्टिंग विधि बता रहे हैं. इस विधि से तीन प्रकार की खेती शुरू कराई गई है.

ग्राफ्टिंग तकनीक (कलमी पौधे) से एक साथ दो प्रकार की फसल का उत्पादन हो रहा है. उत्पादन क्षमता भी बेहतर है और बरसात के दिनों में खेतों में पानी भरने के बाद भी फसल नष्ट न होने का दावा वैज्ञानिक कर रहे हैं. उनका मानना है कि सब्जियों की खेती के संदर्भ में यह एक बड़ी सफलता है.

टमाटर की खेती करने वालों के लिए वरदान है ग्राफ्टिंग तकनीक

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ अनंत बहादुर सिंह ने बताया कि भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी में ग्राफ्टिंग तकनीक पर शोध कार्य वर्ष 2014 में शुरू किया गया. सर्वप्रथम बैगन के मूल वृंत पर टमाटर की उन्नत किस्मों की ग्राफ्टिंग की गई. इसमें टमाटर को बैंगन की जड़ों पर लगाने से तीन-चार दिन तक खेत में पानी भरा रहता है तो भी टमाटर के पौधे सुरक्षित रहते हैं. इस तकनीक का कई वर्षों तक मूल्यांकन करने के बाद किसानों को जानकारी दी जा चुकी है.

इस तकनीक से उन किसानों को सबसे ज्यादा लाभ होता है जो टमाटर की अगेती खेती करना चाहते हैं. और जहां जलभराव की समस्या होती है वहां यह तकनीक विशेष कारगर है. इस ग्राफ्टिंग तकनीक से संस्थान के आसपास गांव में किसानों को काफी लाभ हुआ है.

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संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनंत बहादुर सिंह ने देश में पहली बार एक नए ग्राफ्टिंग पौध ब्रीमैटो का प्रक्षेत्र स्तर पर सफल उत्पादन किया. .

इसमें बैगन की जंगली प्रजाति पर बैगन की उन्नत किस्म एवं टमाटर दोनों को ही एक पौधे में लगाया गया. जिससे लगभग 3 किलोग्राम तक बैगन और 2:5 से 3 किलोग्राम टमाटर का उत्पादन हुआ. इस तरह एक ही पौधे में कम खर्च पर हम टमाटर और बैगन दोनों की उपज ले सकते हैं.

यह तकनीक शहरी एवं अर्ध शहरी क्षेत्रों के लिए काफी लाभप्रद है जहां जमीन की कमी है और लोग सब्जियों को गमले में उगाना चाहते हैं

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संस्थान द्वारा 2018 में पहली बार पोमैटो का खेत में सफल उत्पादन किया गया. पोमैटो जिसमें नीचे आलू और ऊपर टमाटर का उत्पादन होता है. शहरी या टेरेस गार्डन के लिए काफी उपयुक्त है. उन्नत किस्म से उगाए गए एक पौधे (फौज) में लगभग 1.0 से 1.25 किलोग्राम आलू तथा 3.50 से 4 किलोग्राम टमाटर का उत्पादन होता है.
डॉ. अनंत बहादुर सिंह, प्रधान वैज्ञानिक

डॉ. अनंत ने बताया कि ग्राफ्टिंग तकनीक का प्रयोग पिछले 2 सालों से कद्दू वर्गीय सब्जियों में भी किया जा रहा है और इस तकनीक से काफी सफलता हासिल हुई है. करेला, खीरा, खरबूजा आदि के लिए नेनुआ तथा पेठा कद्दू का मूलवृंत बहुत उपयुक्त पाया गया है. इन मूलवृंतो के प्रयोग से उपज में 50 से 70% की वृद्धि देखी गई है. संस्थान के निदेशक डॉ तुषार कांति बेहेरा ने जड़-जनित बीमारियों तथा निमेटोड के नियंत्रण के लिए उचित मूलवृंतो की तलाश पर शोध करने पर जोर दिया है.

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कलमी पौधों के उत्पाद में स्वाद जस का तस

वाराणसी के शहंशाहपुर स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने शोध के बाद ऐसे पौधे उगाए हैं, जिसमें दो अलग-अलग पौधे लग रहे हैं. यहां बैगन और टमाटर एक ही पौधे में उगे हैं. एक ही पौधे में दो सब्जी लगी हैं। जमीन के अंदर जड़ में आलू और ऊपर तने पर टमाटर, इसको पोमैंटो नाम दिया गया है.

यानी पोटैटो के साथ टोमैटो. शोध के बाद ये कमाल ग्राफ्टिंग तकनीक से संभव हुआ है. जो सब्जियां इस तकनीक से उगाई जा रही हैं, उनके स्वाद में कोई अंतर नहीं है. वैज्ञानिकों का मानना है कि टमाटर के पौधे से जिस प्रकार के टमाटर का स्वाद होता है वह ग्राफ्टिंग तकनिक से होंने वाले सब्जियों के स्वाद भी जस के तस रहते हैं. उनमें कोई बदलाव नहीं आता है.

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के डायरेक्टर डॉ. तुषार कांति बेहेरा की देखरेख में प्रधान वैज्ञानिक डॉ अनंत बहादुर सिंह और उनकी टीम ने ये विज्ञान की मदद से ये करिश्मा करके दिखाया है. इस विशेष पौधे में बैंगन के रोग अवरोधी पौधे पर उसकी संकर किस्म काशी संदेश और टमाटर की काशी अमन की कलम बांधकर ग्राफ्टिंग की जाती है.

संस्थान ने पहले आलू के साथ टमाटर और अब बैगन के साथ टमाटर का सफल प्रक्षेत्र प्रदर्शन किया है. अब अगली कड़ी में एक ही पौधे में आलू, टमाटर और बैगन या फिर टमाटर, बैगन के साथ मिर्च उगाने पर शोध चल रहा है.

ऐसे विशेष पौधे तैयार करने के लिए 24-28 डिग्री तापमान में 85 प्रतिशत से अधिक आर्द्रता और बिना प्रकाश के नर्सरी अवस्था में तैयार किया जाता है. ग्राफ्टिंग के 15-20 दिन बाद इसे प्रक्षेत्र में बोया जाता है. ठीक मात्रा में उर्वरक, पानी और कांट छांट के बाद ये पौधे रोपाई के 60-70 दिन बाद फल देते हैँ
डॉ. अनंत बहादुर सिंह, प्रधान वैज्ञानिक
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संस्थान के डायरेक्टर ने बताया कि ग्राफ्टिंग तकनीक का प्रयोग 2013-14 में शुरू हुआ. इसका सबसे बड़ा फायदा किसानों को होगा. खासकर उन इलाकों के किसानों को, जहां बरसात के बाद काफी दिनों तक पानी भरा रहता है. फिलहाल शुरुआती तौर पर इस पौधे को शहर में रहने वाले उन लोगों के लिए तैयार किया गया है जिनके पास जगह कम है और वो बाजार की रसायन वाली सब्जियों से बचना चाहते हैं और घर में ही सब्जी उगाकर खाना चाहते हैं. या फिर टेरिस गार्डन के शौकीन लोगों के लिए इसके लिए अब शहर में मौजूद नर्सरी संचालकों को ट्रेनिंग देकर उनको ये विशेष पौधे दिए जाएंगे. ताकि आम लोगों को ये पौधे मिल सके.

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