राज्यसभा एक ऐसी लोकतांत्रिक संस्था है, जो अब भी मोदी सरकार को हताश करने की ताकत रखती है. हालांकि बीजेपी लोकसभा में पूर्ण बहुमत में है, लेकिन राज्यसभा में बीजेपी के पास सिर्फ 58 सांसद हैं. सहयोगी दलों को साथ मिलाकर एनडीए के पास 83 सांसद हैं.
ये एक ऐसी जगह है जहां मोदी सरकार को कई बार निराशा झेलनी पड़ी है, क्योंकि वो कई अहम कानूनों को पास कराने में नाकाम रहती है. जैसे- ट्रिपल तलाक बिल, ओबीसी कानून, जीएसटी, यहां तक कि भूमि अधिग्रहण विधेयक.
ये वो जगह है जहां बंटे होने के बावजूद विपक्ष की चलती है. ये देखते हुए कि साल भर के अंदर प्रधानमंत्री मोदी को आम चुनाव में जाना है, राज्यसभा चुनाव, इस बार बीजेपी के लिए एक अलग स्तर का खेल है.
23 मार्च को राज्यसभा की 59 सीटों के लिए चुनाव होने हैं. मतलब 16 राज्य की विधानसभाएं 59 नए राज्यसभा सदस्यों को चुनेंगी.
आजकल होता ये है कि ज्यादातर राज्यसभा सांसदों का निर्विरोध निर्वाचन हो जाता है. या हर पार्टी उसी उम्मीदवार का नामांकन करती है, जिसे वो जानती है कि वो उम्मीवार निश्चित रूप से चुना जा सकता है. लेकिन क्या आपको सचमुच लगता है कि सारे अंदाजे सही साबित होंगे? अगर ये उत्तर प्रदेश है तो नहीं. यूपी से,10 राज्य सभा सांसद चुने जाने हैं. जीतने वाले को 37 वोटों की दरकार होगी. बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए के पास 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 324 सदस्य. मतलब 324 विधायक/37 वोट = 8 सीटें. इसका मतलब कि बीजेपी 8 राज्यसभा सांसदों को निर्विरोध चुन सकती है. 8 विधायकों के लिए 296 वोट. बचे 33 वोट.
समाजवादी पार्टी के पास सदन में 47 विधायक हैं. इसका मतलब वो आसानी से एक राज्य सभा सांसद चुन सकते हैं. बीएसपी के पास सिर्फ 18 विधायक हैं. बीएसपी अपने दम पर एक भी सांसद नहीं चुन सकती है.
समझौते के मुताबिक, मायावती की पार्टी को समाजवादी पार्टी के 10 वोट मिलेंगे. तो हो गया 28. अभी भी नौ वोट कम. तो हिसाब ये बनता है कि मायावती की पार्टी भीमराव अंबेडकर को राज्यसभा भेजने के लिए 10 अतिरिक्त वोट एसपी से हासिल करेगी, 7 कांग्रेस से, 1 राष्ट्रीय लोक दल से.
लेकिन क्या आपको लगता है कि बीजेपी इतनी आसानी से मायावती के लिए रास्ते खुले छोड़ेगी? खासतौर पर तब जब बीएसपी ने गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को समर्थन दिया!
नरेश अग्रवाल कर सकते हैं बीएसपी का खेल खराब
12 मार्च को, बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव के लिए 3 और उम्मीदवारों की घोषणा की. ये एक तरह से एक्सट्रा कैंडिडेट हैं.
उसी दिन, राज्यसभा के लिए नामांकित न होने से नाराज समाजवादी पार्टी के नरेश अग्रवाल बीजेपी में शामिल हो गए. लेकिन, यहां कुछ ट्विस्ट है, जो मायावती के लिए नुकसानदेह हो सकता है. नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल समाजवादी पार्टी के विधायक हैं. अपने बागी पिता के निर्देश पर, नितिन अग्रवाल बीजेपी के लिए वोट कर सकते हैं
बीजेपी बाकी सीट जीत सके या नहीं, लेकिन नितिन अग्रवाल का वोट ये तय करेगा कि मायावती का उम्मीदवार राज्यसभा जाएगा या नहीं.
क्या बीजेपी बदले की भावना से भरी है?
अनैतिक? शायद? विपक्ष यही आरोप लगा रहा है. बीएसपी ने दावा किया कि बीजेपी पैसों का इस्तेमाल करेगी, ताकि विपक्ष के विधायकों को लालच दिया जा सके और वो अपनी पार्टी के खिलाफ वोट करें. आखिर पता लग ही जाएगा कि किस विधायक ने किसके लिए वोट किया.
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[क्विंट ने अपने कैफिटेरिया से प्लास्टिक प्लेट और चम्मच को पहले ही ‘गुडबाय’ कह दिया है. अपनी धरती की खातिर, 24 मार्च को ‘अर्थ आवर’ पर आप कौन-सा कदम उठाने जा रहे हैं? #GiveUp हैशटैग के साथ @TheQuint को टैग करते हुए अपनी बात हमें बताएं.]
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