वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम
उत्तर प्रदेश की राजधानी से महज 80 किमी. दूर बाराबंकी का परसावल गांव. इस गांव में पहुंचने के लिए न सड़क है, न कोई यातायात सुविधा. कई बार रास्ता भटकने के बाद क्विंट की टीम बाराबंकी के इस गांव में पहुंची.
परसावल में न बिजली की सुविधा है, न कोई स्कूल और न ही कोई स्वास्थ्य केंद्र. आइए समझते हैं यहां के लोग इन सभी जन सुविधाओं के अभाव में कैसे जीवनयापन कर रहे हैं?
क्विंट कैसे पहुंचा परसावल?
परसावल जाने के लिए कोई मुख्य मार्ग नहीं है. यहां का रास्ता गूगल मैप भी नहीं बताता. ऐसे में गांव पहुंचते पहुंचते क्विंट की टीम भटक गई और लगभग 15 किमी तक एक दूसरे रास्ते पर चली गई. इसके बाद वापस लौटना पड़ा और राहगीरों की मदद से रास्ता पूछते-पूछते कुछ दूर ट्रैक्टर की मदद से और कुछ दूर पैदल चल कर हम परसावल गांव पहुंचे.
अभी तक नहीं पहुंची मूलभूत सुविधाएं
गांव दोनों तरफ से घाघरा नदी से घिरा हुआ है. जब यहां पहुंच कर हमने निवासियों से बात की तो पता चला कि आज़ादी के 7 दशक बाद भी इस गांव में सड़क, बिजली, पानी, स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं.
हमने लोगों से बात की और जाना कि किस तरह से सुविधाओं के अभाव में ये लोग अपनी ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं और आने वाले चुनावों में उन्हें उम्मीदवारों से क्या उम्मीद है?
“यहा कोई सुविधा नहीं है. चुनावों के समय नेता कहते हैं कि सब बनवा देंगे लेकिन अब तक तो कुछ नहीं हुआ. किसी तरह बस मजबूरी में जी रहे हैं. अगर रात में कोई बात हो जाए तो जाने के लिए यहां कोई साधन भी नहीं मिलता.”-अर्जुन (ग्रामीण, परसावल गांव)
परसावल गांव में कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं है. यहां के लोगों को किसी भी तरह की बीमारी में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए मीलों दूर जाना पड़ता है.
राम मिलन कहते हैं “स्कूल, अस्पताल कुछ नहीं है. अगर दवा पानी की जरूरत पड़ती है तो काफी दूर जाना पड़ता है”
“हमारे बच्चे रायपुर में पढ़ने जाते हैं. जबकि गांव हमारा परसावल है ऐसे में कैसे पढ़ाया जाए? यहां किसी चीज़ की कोई व्यवस्था नहीं है”धनराजा, निवासी, परसावल
गांव की बुज़ुर्ग महिला नंदरानी बताती हैं कि “यहां कोई विधायक, कोई नेता नहीं आता. लोगों के लिए सुविधा नाम की कोई चीज़ नहीं है. बीमारी में मरने लगते हैं तो दूर दराज भागना पड़ता है.
आज़ादी के सात दशक बाद भी परसावल गांव के निवासियों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पाई है.
परसावल में स्कूल न होने के कारण यहां के बच्चों का भविष्य अधर में है
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