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लॉकडाउन: सूरत के प्रवासी मजदूरों का दर्द-‘न खाना है, न पैसा, न घर’

लॉकडाउन की वजह से सूरत में हीरा, टेक्सटाइल और कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों का काम छूट गया

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

‘हमारे पास केवल चावल बचा है, न हमारे पास दाल है और न आटा. गैस भी खत्म हो गया है’. ये कहना है गोविंद का, जो उत्तर प्रदेश का प्रवासी मजदूर है. वह हाल ही में काम की तलाश में सूरत आया था, लेकिन उसकी यूनिट शुरू होने के दो दिन बाद ही बंद हो गई. अब उसके पास न नौकरी है और न ही खाने के लिए पैसे.

'भूखे मरने के लिए सूरत नहीं आया'

गोविंद के पास अब कोई काम नहीं है और अब उसे भविष्य की चिंता है. उसका कहना है,

“हम भूख से मरने के लिए यहां नहीं आए थे. हम गांव वापस जाएंगे और खेती करेंगे. हम वहां बच जाएंगे, लेकिन मैं सूरत वापस नहीं आएंगे.”
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लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही मजदूरों का काम छिन गया

सूरत में हीरा, टेक्सटाइल और कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों का काम छूट गया, जब पीएम मोदी ने देशव्यापी 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया. इन लोगों को नहीं पता था कि जनता कर्फ्यू इतने लंबे समय तक चलने वाला है, जिससे उनकी आजीविका ही छीन जाएगी. अब उनके पास न खाना है और न ही घर.

अधिकांश लोगों ने तो अपने पैतृक गांव जाने का फैसला किया था. लेकिन तब तक राज्यों में सार्वजनिक परिवहन को बंद कर दिया गया. रेलवे ने भी सभी ट्रेनों को रोक दिया. ऐसे में कई मजदूर शहर में फंस गए और कई मजदूर तो पैदल ही अपने गांव के लिए निकल गए.

सूरत में हीरा, टेक्सटाइल और कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने वालों के साथ स्थिति समान है. जबकि हीरा उद्योग में काम करने वाले लोग खुद को ट्रकों में लाद कर गुजरात के सौराष्ट्र में अपने पैतृक गांव के लिए रवाना होने में कामयाब रहे. लेकिन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दूसरे राज्यों के मजदूर फंस गए जो राज्यों की सीमाओं को पार नहीं कर सकते थे. कुछ ने पैदल सीमा पार करने की कोशिश की लेकिन उन्हें वापस भेज दिया गया.

‘हम पैदल ही यहां से निकल चुके थे काफी दूर पहुंचने के बाद हमें वापस लौटने को मजबूर होना पड़ा. पुलिस ने हमें मारा और वापस जाने को कहा, हम अपने गांव वापस नहीं जा सके.’
रमेश कुमार, ट्रेक्सटाइल कंपनी का प्रवासी मजदूर

रमेश ने कहा, वह तीन दिनों से ठीक से खा नहीं पाया है. भोजन हमारे लिए एक बड़ी समस्या बन गई है. आज तीन दिनों बाद मुझे ठीक से खाने को मिला. उसने कहा, मुझे मेरा परिवार बुला रहा, मैं कोशिश कर रहा हूं लेकिन मैं असमर्थ हूं. मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा है. मैं तीन दिनों से बिस्कुट खा कर रह रहा हूं.

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'न खाना है, न पैसा और न घर'

संतोष जो हीरा कंपनी में काम करता था, उसने कहा, उसके पास न खाना है, न काम है और न ही रहने के लिए घर है. उसने कहा, हम लोग एक मजदूर है.अब मेरे हाथ में कुछ भी नहीं है. अगर हमें पैसे नहीं दिए गए तो क्या करूंगा.

उसने कहा, संदीप जो मेरा साथी प्रवासी मजदूर है उसने भी घर जाने की सोची, लेकिन बताया गया कि एक दिन का ही लॉकडाउन होगा. हमें किसी ने नहीं बताया कि इतने लंबे समय तक ये जारी रहेगा. पता होता तो हम समय पर वापस घर चले गए होते.

नेपाल के रहने वाले भीम का कहना है कि उनके पास अब पैसा नहीं बचा है और जब तक उनका भुगतान नहीं हो जाता, वे वापस नहीं जाएंगे. पिछले 10 दिनों से उनका वेतन लंबित है. उसे बताया गया है कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद उसे भुगतान किया जाएगा.

‘कैसे चलेगी इंडस्ट्री?'

रत्न कलाकर विकास संघ (कार्यकर्ता निकाय) के उपाध्यक्ष आशीष भद्रधर का कहना है कि पूरे इंडस्ट्री में 20 प्रतिशत मजदूर ही अपने घर गए हैं. हालांकि वह रह सकते थे. उनका कहना है कि तत्काल लॉकडाउन होने की वजह से छोटे यूनिट की सैलरी नहीं दी जा सकी है और न ही कोई व्यवस्था की जा सकी है.

'मजदूरों को भुगतान किया गया है'

हालांकि, सूरत डायमंड एसोसिएशन के उपाध्यक्ष दामजी मवानी का दावा है कि,

हीरा उद्योग में जो कार्यात्मक इकाइयों में काम कर रहे थे उनका भुगतान कर दिया गया है, जिन्हें पहले भुगतान नहीं किया जा सकता था उन्हें अब भुगतान किया जा रहा है. जो लोग अपने गांव चले गए हैं वह जल्द ही लॉकडाउन खत्म होने पर वापस लौटेंगे.

वहीं, आशीष भद्रधर को चिंता है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद हीरा कारोबार कैसे चलेगा, क्योंकि जो मजदूर वापस गए हैं वह तुरंत वापस नहीं लौट पाएंगे. उन्होंने अपील करते हुए कहा कि, मजदूरों को तुरंत भुगतान किया जाना चाहिए, जिससे वह शहर में रह सकें और काम फिर से शुरू हो सके.

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