वीडियो प्रोड्यूसर: शोहिनी बोस
वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
"मैं सलाखों के पीछे इन पिछले 100 दिनों के दौरान कई लोगों द्वारा दिखाई गई जबरदस्त एकजुटता की दिल से सराहना करता हूं. कई बार, इस तरह की एकजुटता की खबरों ने मुझे बहुत ताकत और साहस दिया है, खासकर जब जेल में केवल अनिश्चितता ही तय होती है. यहां जिंदगी हर एक दिन के मुताबिक चलती है. दूसरी ओर हम 16 सह-आरोपी एक ही जेल में रहने के बावजूद एक-दूसरे से नहीं मिल पाए हैं. लेकिन हम फिर भी कोरस में गाएंगे. एक पिंजरे में बंद पक्षी अभी भी गा सकता है."– फादर स्टेन स्वामी ने जनवरी 2021 में जेल से लिखा यह खत
पिंजरे में बंद पंछी आखिरकार आजाद है...
ये कुछ आखिरी शब्द थे जेल में बंद उस पादरी के जो गरीबों से प्यार करता था और उनके लिए जीता था, लंबी बीमारी, बिगड़ती सेहत, कई जमानत खारिज, सहानुभूति की गंभीर कमी से संघर्ष करते हुए मर गया.
फादर स्टेन स्वामी बिना ट्रायल का कैदी जो अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा था. अब दुनिया को अलविदा कह गया.
'एक सरल और निस्वार्थ आदमी'
फादर स्टेन स्वामी के मित्र उन्हें एक सरल और निस्वार्थ व्यक्ति के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने 'अपने लिए या भौतिक लाभ के बारे में कभी नहीं सोचा' और गरीबों की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया.
"एक दिन, उन्होंने जेल में एक पैंट और शर्ट के लिए कहा. मुझे पता था कि ये उनके लिए नहीं था. वो कभी भी भौतिक जरूरत की चीजें नहीं मांगेंगे जब मैंने खोजबीन की, तो उन्होंने कबूल किया कि ये एक साथी कैदी के लिए था, जो गरीब था और उसके पास कपड़े खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. ये फादर स्टेन स्वामी को परिभाषित करता है"जो जेवियर, स्वर्गीय स्टेन स्वामी के दोस्त
यूएपीए (UAPA) ने सुनिश्चित किया कि वह जेल में 'पीड़ित' रहें
स्टेन स्वामी को भीमा कोरेगांव मामले में 8 अक्टूबर 2020 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा झारखंड के रांची स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किया गया था. उन पर अन्य आरोपों के अलावा गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत आरोप लगाया गया था और उन्हें मुंबई की तलोजा जेल में रखा गया था.
उन्हें नक्सलियों और प्रतिबंधित संगठन - CPI (माओवादी) के साथ कथित संबंधों के लिए गिरफ्तार किया गया था. वह भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार होने वाले 16वें और सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे. वो पहले से ही कमजोर और बीमार थे. वह पार्किंसन रोग से बुरी तरह पीड़ित थे. रोजमर्रा के कामों के लिए साथी कैदियों पर निर्भर थे.
खबरों के मुताबिक तलोजा जेल मेडिकल इमरजेंसी से निपटने में पूरी तरह सक्षम नहीं था यहां तक कि बुज़ुर्ग को एक सिपर और स्ट्रॉ देने से भी मना कर दिया गया था. वो कांपते हाथों से प्लास्टिक के कप से पीने के लिए मजबूर थे. एक अस्सी साल के बूढ़े व्यक्ति जो न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी से पीड़ित थे उन्हें कोर्ट के आदेश के बाद ही सिपर दिया गया.
बेहतर स्वास्थ्य सेवा के लिए फादर स्टेन स्वामी की बार-बार की गई गुहार अनसुनी हो गई. एक भयंकर महामारी के कारण चिकित्सा आधार पर उनकी बार-बार जमानत याचिका खारिज कर दी गई.
'अगर चीजें ऐसी ही चलती रहीं तो मैं यहां बहुत जल्द मर जाऊंगा...'
और फिर भी, फादर स्टेन स्वामी ने शायद ही अपने स्वास्थ्य के बारे में शिकायत की हो. तलोजा जेल से हर 10 दिन में चार मिनट की कॉल और "मैं यहां सब संभाल रहा हूं" ने उनके दोस्तों के लिए उम्मीद को जिंदा रखा.
"स्टेन एक सरल और निस्वार्थ व्यक्ति था. वो कपड़े या पैसे जैसी भौतिक चीजों की परवाह नहीं करता था. वो कभी भी अपने बारे में कोई शिकायत नहीं करता था."जो जेवियर, स्वर्गीय स्टेन स्वामी के दोस्त
बहरे कानों तक गुजारिश के बीच मई 2021 में फादर स्टेन स्वामी की हालत बिगड़ी. 21 मई को जब वो बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष अपनी जमानत याचिका की वर्चुअल सुनवाई के लिए उपस्थित हुए तब उनके वकील मिहिर देसाई याद करते हैं कि कैसे 'वो बहुत कमजोर थे' और उन्हें अदालत के सवालों के बारे में सोचने या यहां तक कि जवाब देने में बहुत मुश्किल हो रही थी. फिर भी उन्होंने दृढ़ता से कहा कि वो अपने इलाज के लिए जेजे हॉस्पिटल नहीं जाना चाहते उसकी जगह वो कष्ट सहना पसंद करेंगे.
"मैं वहां दो बार जा चुका हूं. मैं जेजे हॉस्पिटल में भर्ती होने के पक्ष में नहीं हूं. इसमें सुधार नहीं होगा, ये चलता रहेगा. स्थितियां जैसी हैं, वैसी रहीं तो मैं बहुत जल्द यहां मर जाऊंगा"फादर स्टेन स्वामी ने बॉम्बे हाई कोर्ट से कहा
'मेरी तबियत में गिरावट उन छोटी गोलियों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है जो वे देते हैं'
भीड़-भाड़ वाली तलोजा जेल में इस कमजोर बुज़ुर्ग की कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई, लेकिन इसके बावजुद, 10 दिनों बाद 30 मई 2021 को उन्हें मुंबई के होली फैमिली हॉस्पिटल ले जाया गया वो भी बॉम्बे हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद.
फादर स्टेन स्वामी जेल में इतना कुछ भुगत रहे थे फिर भी NIA और तलोजा जेल के अधिकारियों ने उन्हें निजी अस्पताल में शिफ्ट करने का कड़ा विरोध किया.
"आठ महीने पहले, मैं खुद खा सकता था, कुछ लिख सकता था, चल सकता था. मैं खुद नहा सकता था. लेकिन ये सब एक के बाद एक गायब हो रहे हैं. तो, तलोजा जेल ने मुझे ऐसी स्थिति में ला दिया है जहां मैं न तो लिख सकता हूं और न ही अकेले टहलने जा सकता हूं. किसी को मुझे खिलाना पड़ता है. दूसरे शब्दों में, मैं आपसे अनुरोध कर रहा हूं कि आप इस पर विचार करें कि ये गिरावट क्यों और कैसे हुई. मेरी गिरावट (स्वास्थ्य में) उन छोटी गोलियों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है जो वे देते हैं"फादर स्टेन स्वामी ने बॉम्बे हाई कोर्ट से कहा
'एक बुज़ुर्ग को ऐसी कैद से दंडित नहीं किया जाना चाहिए जो अमानवीय और अनावश्यक है'
फादर स्टेन स्वामी को 4 जुलाई 2021 को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। उनके 'बिगड़ते स्वास्थ्य' पर प्रकाश डालते हुए, एक अधिकार समूह ने बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक खुला पत्र लिखा.
"ये समझ से परे है कि एक बूढ़े ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट के साथ, जो कई बीमारियों से पीड़ित है, उसे इस तरह से भुगतने पर मजबूर किया जा रहा है, जबकी मामले में अभी तक अदालत में जांच नहीं हुई है. वो पहले ही नौ महीने हिरासत में बिता चुके हैं, और 2018 में दर्ज इस मामले में मुकदमे के जल्द खत्म होने की बहुत कम उम्मीद है. हमारा मानना है कि एक उम्रदराज व्यक्ति को अमानवीय और अनावश्यक कैद से दंडित नहीं किया जाना चाहिए."पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स
फादर स्टेन स्वामी कि 5 जुलाई को कार्डियक अरेस्ट के बाद मौत हो गयी, ठीक एक दिन पहले बॉम्बे हाई कोर्ट उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करने वाला था.
फादर स्टेन स्वामी ने झारखंड में आदिवासियों के अधिकारों के लिए तीन दशक से अधिक समय तक काम किया था.
उन्होंने जेल में रहते हुए UAPA की धारा 43D (5) को चुनौती दी थी जिसके तहत आरोपी बनाए गए व्यक्ति की जमानत पर सख्त शर्तें हैं.
"आर्टिकल 14- समानता का अधिकार, आर्टिकल 21- जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार का गंभीर उल्लंघन, ये आरोपी के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का हनन करती है, जिसकी गारंटी संविधान में दी गई है. आम फौजदारी न्याय प्रक्रिया का सिद्धांत है कि अभियोजन द्वारा लगाए गए आरोप जब तक साबित नहीं हो जाते तब तक उसे निर्दोष माना जाता है."फादर स्टेन स्वामी, बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष याचिका में
भारी आक्रोश के बावजूद फादर स्टेन स्वामी अपने आखिरी दिनों तक सब कुछ झेलते रहे...आजाद बाहर घूमने के इंतजार में...सहानुभूति के इंतजार में...उनकी मौत हो गयी.
"मैं जेल जाकर अपने प्रतिरोध का अंतिम हिस्सा दर्ज कर सकता हूं ताकि मैं संतुष्ट हो सकूं कि मैं उस कारण के लिए खड़ा हुआ हूं जिसके लिए मैं लड़ रहा हूं. मैंने अपना जीवन पहले ही जी लिया है."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)