प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम
कैमरा : शिव कुमार मौर्य
चुनाव 2019 के नतीजों की उलटी गिनती के बीच हर तरफ चर्चा है कि ‘किंग कौन बनेगा’? लेकिन ज्यादा बहस इस बात की है कि ‘किंगमेकर’कौन बनेगा? और इस बहस में जो तीन नाम सबसे पहले आते हैं वो हैं जगन मोहन रेड्डी, के. चंद्रशेखर राव और नवीन पटनायक.
कथा जोर गरम है कि सरकार बनाने के लिए बीजेपी को दूसरी पार्टियों के साथ की जरूरत पड़ सकती है. ये मैं नहीं कह रहा. खुद बीजेपी के महासचिव राम माधव ने न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू में ये बात कही. ये उस पार्टी के एक बड़े नेता का चौंकाने वाला बयान है जो 300 से ज्यादा सीट का दावा कर रही है. लेकिन करीब 80 फीसदी चुनाव बीत जाने के बाद जानकार इस बात से इनकार नहीं कर रहे कि किसी एक पार्टी या गठबंधन के लिए 272 का जादुई आंकड़ा छूना मुश्किल होगा.
फेज दर फेज बढ़ता सस्पेंस
चुनाव शुरु होने से पहले किए गए सीएसडीएस-सी वोटर के सर्वे के मुताबिक एनडीए को 260 सीटें मिल सकती हैं. लेकिन पांच फेज की वोटिंग के बाद ज्यादातर जानकार इस आंकड़ें में कटौती देख रहे हैं. अगर एनडीए 240 या उससे नीचे सिमटा तो जगन, केसीआर और नवीन पटनायक की भूमिका अहम हो जाएगी.
जगन मोहन रेड्डी
वाइएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष जगन रेड्डी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के नारे के साथ चुनाव लड़ रहे हैं. राज्य में उनकी पहली लड़ाई चंद्रबाबू नायडू से है लेकिन बीजेपी भी आंध्रा में पैर जमाने की कोशिश में है. तो आप कह सकते हैं कि राज्य में अपने दुश्मन नंबर दो यानी बीजेपी से हाथ मिलाकर जगन अपने वोटरों को क्या जवाब देंगे?
लेकिन जनाब, जगन को अगले पांच साल तक जवाब देना ही नहीं है. उनके साथ सुविधा ये है कि आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के चुनाव भी निपट चुके हैं. आंध्रा को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाने के नाम पर जगन आसानी से बीजेपीसे हाथ मिला लेंगे. सवाल बस ये है कि सौदेबाजी किस लेवल की होगी. यानी सरकार में मंत्रालय कितने मलाईदार मिलेंगे.
केसीआर
केसीआर यानी के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना में सीधी टक्कर कांग्रेस से है लेकिन वो केंद्र की राजनीति में खुद को गैर-कांग्रेस, गैर-बीजेपी के धड़े के हिस्से के तौर पर पेश करते हैं. मुश्किल ये भी है कि मुस्लिम और दलित को अपना कोर वोटर मानने वाली टीआरएस बीजेपी से हाथ कैसे मिलाए. लेकिन केसीआर के साथ भी सुविधा वही है. दिसंबर 2018 में तेलंगाना का विधानसभा चुनाव निपट चुका. उस चुनाव में बंपर जीत हासिल करने के बाद केसीआर राज्य में ‘कम्फर्ट जोन’ में हैं.
अपनी कल्याणकारी योजनाओं के लिए केंद्र से पैसा जुटाने के नाम पर वो बीजेपी से हाथ मिलाने में नहीं हिचकेंगे. राज्य के लोगों की भलाई के नाम पर मलाईदार मंत्रालय भी मिल जाए तो कहना ही क्या?
क्या करेंगे नवीन बाबू?
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को आप देश की राजनीति का सबसे ‘साइलेंट’ नेता कह सकते हैं. इसलिए उनके रुख को भांपना जरा मुश्किल है. वो बीजेपी को सांप्रदायिक पार्टी कहकर हमेशा उससे दूरी दिखाते रहे हैं. लेकिन विरोध की बारी आने पर वो बीच का रास्ता अपनाते ही दिखते हैं. संसद में वोटिंग के ज्यादातर मौकों पर उनके सांसद सरकार के खिलाफ वोट देने के बजाए वॉकआउट करते रहे हैं. जुलाई 2018 में अविश्वास प्रस्ताव के वक्त भी बीजेडी सांसदों ने वॉकआउट ही किया था.
ओडिशा को विशेष राज्य की मांग तो चल ही रही है. उसके नाम पर भी केंद्र से समझौता हो ही सकता है.
हाल में ‘फानी’ तूफान से हुए नुकसान का जायजा लेने ओडिशा गए पीएम नरेंद्र मोदी ने जमकर नवीन बाबू की तारीफ की, केंद्र और राज्य के बीच तालमेल को सराहा और 1000 करोड़ रुपये की अतरिक्त मदद दी. यानी जरूरत पड़ने पर यारी-दोस्ती की जमीन तैयार हो गई है.
ये भी हो सकता है कि सौदेबाजी पर्दे के पीछे हो. यानी नवीन बाबू सरकार में शामिल ना हों और बाहर से समर्थन देकर ‘चित्त भी मेरी, पट्ट भी मेरी’ का अंदाज दिखा दें. यानी राज्य की भलाई के लिए मैं केंद्र का साथ दे रहा हूं लेकिन विचारधारा के स्तर पर खिलाफ हूं सो सरकार में शामिल नहीं हो रहा.
यूपीए के किंग मेकर कौन?
आप कह सकते हैं कि ये हालात तो यूपीए के साथ भी हो सकते हैं. तो उस सूरत ‘किंग मेकर्स’ की लिस्ट बदल जाएगी. यूपीए की First Choiceहोंगे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और ममता बनर्जी की टीएमसी. लेकिन उनकी बात फिर कभी.
तो इंतजार कीजिए 23 मई का. पॉलिटिक्स की पिच पर कई टेल एंडर्स करेंगे गेम को Change और कई पिंच हिटर्स की परफॉर्मेंस देख सब कहेंगे That’s so strange.
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