एक वायरल वीडियो महाराष्ट्र (Maharashtra) के नासिक जिले के उमराने गांव से सामने आया है. यहां पर पूरे गांव की सहमति से सरपंच का चुनाव तो हो रहा है लेकिन किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से नहीं बल्कि बोली लगाकर और वो भी 2 करोड़ रुपये की ! उमराने और नंदुरबार के खोंडमाली गांव में सरपंच की सीटें नीलाम होने का वीडियो वायरल हुआ तो चुनाव आयोग ने चुनाव पर रोक लगाई (Panchayat Election on hold). लेकिन हमने सोचा कि जरा मामले की तह में जाना चाहिए कि आखिर इन गांव वालों ने ऐसा क्यों किया?
जनता ही नेता से वसूल रही थी पैसे
वजह जानना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि यहां कोई नेताओं के बीच साठगांठ नहीं हो रही थी कि किसी विपक्षी को चुनाव मैदान से हटने के लिए पैसे दे दिए गए हों? यहां तो जनता ही नेता जी से पैसे वसूल रही थी. तो हमने अपनी पड़ताल उमराने गांव को लेकर की.
मामले की तह तक पहुंचने के लिए हमने कुछ अधिकारियों, पॉलिटिशियन, स्थानीय पत्रकार और सबसे अहम उस गांव के कुछ लोगों से बात की. तब पता चला कि ऐसी बोलियां तो सालों साल लग रही थीं. लेकिन इस बार सोशल मीडिया ने ‘स्यापा’ किया.
इस बार की कहानी जो पता चली वो कुछ यूं है - उमराने में महादेव मंदिर निर्माण 8 साल से अटका है. दो करोड़ से ज्यादा का खर्च है. तो तय हुआ कि जो मंदिर के लिए ये दो करोड़ देगा वही सरपंच बनेगा.
इस बार तो मंदिर का मसला था. लेकिन ये लोकतंत्र ऑन सेल के सिस्टम के पीछे क्या सोच है. हमें बताया गया कि गांवों में चुनावों को लेकर हिंसा और शराब आम बात हो गई है. अक्सर किसी एक समुदाय की रसूख होती है और ज्यादातर उम्मीदवार भी उसी समुदाय से होते हैं. ऐसे में परिवार और बिरादरी में दरार पैदा हो जाती है. तो बड़े-बूढ़ों ने तय कर दिया कि मिल बैठकर निर्विरोध सरपंच चुन लिया जाए. सोच तो सही है और थ्योरी भी सही लगती अगर बीच में पैसा न आता.
हमें कुछ लोगों ने ये भी बताया कि गांवों में सरपंच की सीट की सब से ज्यादा बोली लगाने की प्रतियोगिता चलती है. जिस गांव की सीट ज्यादा में गई उसकी ज्यादा इज्जत
कोई सोच सकता है कि आखिर क्यों?
- सरपंच बनने के लिए दो करोड़ क्यों खर्च करेगा?
- क्या सरपंच पद पर इतनी कमाई है?
तो आपको बता दें कि महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्य में जहां हाइवे, इंडस्ट्रीज और इंफ्रा प्रोजेक्ट्स धड़ल्ले से बन रहे हैं तो उनसे सटे गावों की ग्राम पंचायत अब नगर पालिकाओ पर भी भारी पड़ रही है. वहां आईं कंपनियों में रोजगार, निर्माण की अनुमति और हर छोटे मोटे काम के लिए सरपंच अहम भूमिका में रहते हैं. इसीलिए सरपंच पद पर बैठनेवाले को इतना महत्व प्राप्त हुआ है. साथ ही जिस गांव में हमने तफ्तीश कि वो प्याज की बंपर पैदावार मशहूर नासिक का ऐसा गांव जहां से करोड़ों का प्याज विदेश जाता है.
ऐसा नहीं कि गांव में लोकतांत्रिक पदों की नीलामी का विरोध नहीं किया. लेकिन जो भी आवाज उठाने की कोशिश करता है उसका बहिष्कार कर दिया जाता है. प्रशासन ऐसी परंपरा पर रोक लगा सकता है लेकिन अक्सर वो सबूत न होने और बहुमत के एक तरफ हो जाने पर बेअसर हो जाता है.
कुछ साल पहले नासिक के मुंडे गांव मे पंचायत चुनाव में खड़े सदस्यों को हेलीकॉप्टर से लाया गया था. चुनाव से पहले हुई मुंबई और गोवा की उनकी सैर सुर्खियां बन गई थीं.
फिलहाल चुनाव आयोग ने उमराने और नंदुरबार के खोंडमाली गांव में चुनाव पर रोक लगा दी है लेकिन इस इलाके में सरपंच पद की नीलामी क्या एक बड़ी समस्या की ओर इशारा नहीं कर रही है? और क्या ये समस्या देशव्यापी नहीं है? क्या वोटर के ऐसे बर्ताव के पीछे से ये सोच नहीं है कि नेता चुनाव जीतने के बाद कोई काम नहीं करने वाला. वो अपने वादे तो पूरे करेगा नहीं तो एडवांस में वसूली कर लो.
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