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PM केयर्स फंड को RTI में क्यों आना चाहिए ? 5 कारण

पीएम केयर्स फंड को इतना सीक्रेट बनाकर क्यों रखा गया है?

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

27 मार्च को पीएम मोदी ने पीएम केयर्स फंड बनाने का ऐलान किया. मकसद था - कोरोना महामारी में जरूरतमंदों की मदद करना. हर तरफ से इस फंड में दान आए, लेकिन क्या इस देश के नागरिक होने के नाते हम जानते हैं कि इस फंड में कितना पैसा आया? जवाब है नहीं.

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20 मई को इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया कि इस फंड में 9,677 करोड़ रुपए जमा हुए. ये हिसाब अलग-अलग सरकारी प्रेस रिलीज में बताई गई रकम के आधार पर लगाया गया. लेकिन आधिकारिक तौर पर इस इसकी कोई पुष्टि नहीं की गई है.

अब दूसरा सवाल- क्या हम जानते हैं कि इस फंड का अब तक कैसे इस्तेमाल किया गया है- जवाब है नहीं.

तो चलिए अब मूल सवाल पूछते हैं - पीएम केयर्स फंड को सूचना के अधिकार यानी RTI के तहत क्यों नहीं आना चाहिए? कई RTI आवेदन डाले गए, लेकिन सबको यही कहकर नकार दिया गया कि पीएम केयर्स फंड जन कल्याण कोष है, न कि कोई सरकारी अथॉरिटी....ठीक है तो पहले यही देखते हैं कि RTI एक्ट के तहत सरकारी अथॉरिटी की परिभाषा क्या है- ''कोई भी अथॉरिटी या संस्थान जिसे सरकार ने बनाया हो या किसी सरकारी नोटिफिकेशन के जरिए बनाया गया हो''- इस परिभाषा से चलें तो एक नहीं 4 वजहें हैं, जिससे पीएम केयर्स फंड को सरकारी अथॉरिटी मानना चाहिए और RTI एक्ट के तहत इसकी जानकारी शेयर की जानी चाहिए.

1. पीएम केयर्स फंड की स्थापना सरकार ने की थी

हम ये क्यों कह रहे हैं? क्योंकि पीएम केयर्स फंड को बनाने की सूचना 28 मार्च को वाणिज्य मंत्रालय के एक नोटिफिकेशन के जरिए दी गई थी. कहा गया था- 'भारत सरकार ने नागरिकों की मदद और राहत के लिए प्रधानमंत्री आपात स्थिति फंड बनाया है.' इसका मतलब है - इसपर भारत सरकार का कंट्रोल है.

दूसरी बात ये है कि पीएम केयर्स फंड का दफ्तर दिल्ली स्थित पीएमओ में है. तीसरी बात - जिस तरह से पीएम प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष यानी PMNRF के चेयरपर्सन हैं, उसी तरह वो पीएम केयर्स फंड के चेयरपर्सन हैं.

2007 में तब के सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने पीएम रिलीफ फंड पर एक रोचक आदेश जारी किया था. उन्होंने कहा था - ''चूंकि PMNRF पर जानकारी एक पब्लिक अथॉरिटी के तौर पर PMO के पास है इसलिए वो RTI एक्ट के तहत नागरिकों से सूचना शेयर करने के लिए बाध्य हैं''. अगर इसी तर्क से चलें तो चूंकि पीएम केयर्स फंड भी पीएमओ के अंडर है तो इसे भी RTI एक्ट के तहत आना चाहिए

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2. पीएम केयर्स फंड के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल

30 मार्च को दुनिया भर में भारतीय मिशन्स के साथ पीएम ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस की थी. उन्हें सलाह दी थी कि इस नए पीएम केयर्स फंड का प्रचार करें ताकि विदेशों से भी दान मिल सके. तो सवाल ये है कि अगर पीएम केयर्स फंड सिर्फ एक चैरिटेबल फंड है तो इसके प्रचार के लिए सरकारी अफसरों और मशीनरी का इस्तेमाल किया जा सकता है?

जरा देखिए सिंगापुर में भारतीय हाई कमिशन ने RTI कार्यकर्ता लोकेश बत्रा को क्या जानकारी दी- कि सिंगापुर सरकार ने पीएम केयर्स फंड के प्रचार के लिए सरकारी तंत्र के इस्तेमाल से इंकार कर दिया, क्योंकि इसे एक चैरिटेबल ट्रस्ट कहा गया. लेकिन मास्को में भारतीय दूतावास ने बत्रा को बताया कि उसने अपने सोशल मीडिया पेज और वेबसाइट पर पीएम केयर्स फंड का प्रचार किया. क्या किसी और चैरिटेबल ट्रस्ट का किसी भारतीय दूतावास की वेबसाइट पर प्रचार किया जा सकता है? जाहिर है नहीं.

3. डोमेन नाम में GOV.IN का इस्तेमाल

पीएम केयर्स फंड का वेब एड्रेस है Pmcares.gov.in लेकिन सरकारी गाइडलाइंस के मुताबिक GOV.IN का इस्तेमाल सिर्फ 6 तरह के दफ्तरों या सरकारी अथॉरिटीज कर सकती हैं.

  • राष्ट्रपति का दफ्तर या पीएम का दफ्तर
  • सरकारी मंत्रालय या विभाग
  • राज्य या केंद्र शासित प्रदेशों के दफ्तर
  • भारतीय संसद
  • जुडिशियल कस्टडी
  • और-बाकी सारी कार्यपालिकाएं और सरकारी संस्थान.

तो फिर पीएम केयर्स फंड को GOV.IN का डोमेन नाम कैसे मिल गया, जबकि ये इनमें से किसी कैटेगरी में नहीं आता?

4. पीएम केयर फंड में दान पर टैक्स रियायत

पीएम केयर्स फंड बनाने के बाद 31 मार्च को सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए इनकम टैक्स एक्ट में बदलाव किए. इस बात की व्यवस्था की गई कि फंड में दिए गए दान पर 100% टैक्स का लाभ मिलेगा. ये साफ तौर पर पीएम केयर्स को बढ़ावा देने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल था.

5. पीएम केयर्स के तहत मान्य हैं सीएसआर फंड

पीएम केयरस लॉन्च होने के सिर्फ एक दिन बाद Ministry of Corporate Affairs ने एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा- ‘’अगर कोई कंपनी पीएम केयर्स फंड के तहत चंदा दोती है तो वो कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी यानी सीएसआर के तहत माना जाएगा..’’

उसके बाद, कई पब्लिक सेक्टर यूनिट्य यानी पीएसयू ने पीएम केयर्स को बड़ी रकम चंदे के तौर पर दी. जैसे कि.. पॉवर फाइनेंस कॉर्पोरेशन ने 200 करोड़ का चंदा दिया.

वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले की सरकारी बैंकों और संस्थानों ने सीएसआर फंड के तौर पर पीएम केयर्स को 200 करोड़ का चंदा दिया. इसी तरह, पॉवर मंत्रालय को रिपोर्ट करने वाले कई पीएसयू ने प्रैस रिलीज जारी कर पीएम केयर्स को 925 करोड़ रुपये देने का भरोसा दिलाया.

अब हमें पता है कि पीएसयू आरटीआई के तहत आते हैं और उन्हें आरटीआई के तहत जानकारी साझा करनी पड़ती है. तो पीएम केयर्स क्यों ना करे? पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबिबुल्लाह ने क्विंट से कहा-

पीएम केयर्स आरटीआई के तहत आता हो या ना आता हो लेकिन अगर कोई पीएसयू पीएम केयर्स को चंदा देता है कतो वो आरटीआई के तहत आता है.

आखिर में कई मंत्रालयों और सरकारी विभागों ने पीएम केयर्स फंड को पैसा दिया है - जैसे रक्षा मंत्रालय ने अपने सभी कर्मचारियों का एक दिन वेतन फंड में दिया, जो कि 500 करोड़ होता है. पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन ने दो सौ करोड़ रुपए दिए. स्टील क्षेत्र की पब्लिक सेक्टर कंपनियों ने 500 करोड़ रुपए दिए. ये जनता का पैसा है. सारा का सारा. लेकिन चूंकि पीएम केयर्स फंड RTI के तहत जवाब देने के लिए बाध्य नहीं है, इसलिए कोई पारदर्शिता नहीं है. और कोई नहीं जान पाएगा कि जनता का कितना पैसा इसमें दिया गया और कैसे इसका इस्तेमाल किया गया. क्या ये सही है- एकदम नहीं!

तो क्या कोई इस सवाल का जवाब देगा कि - पीएम केयर्स फंड को इतना सीक्रेट बनाकर क्यों रखा गया है?

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