वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
देश के छोटे और सीमांत किसानों को 'मिनिम इनकम सपोर्ट' देने के लिए मोदी सरकार 'पीएम किसान सम्मान निधि योजना' लेकर आई थी. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले फरवरी, 2019 में लॉन्च हुई इस योजना में बड़े पैमाने पर अपात्रों को भी पैसे बांट दिए गए हैं. ये खुलासा महाराष्ट्र से जुड़े एक पड़ताल के दौरान हुआ. अब वसूली के लिए नोटिस भेजा जा रहा है जिसमें पैसे न लौटाने पर कार्रवाई की बात है. उदाहरण के तौर पर बात करें तो धुलिया जिले के साखरी तालुका में हजारों किसानों को वसूली की नोटिस जारी किया गया है. इसी तरह देशभर में सरकार ने वसूली के लिए कोशिशें शुरू कर दी हैं.
'टारगेट पूरा करने के चक्कर में हुई गड़बड़ी'
आखिर ऐसी गड़बड़ी क्यों हुई? इसका कारण समझने के लिए जब हमने कुछ अधिकारियों से बात की तो एक अलग ही ‘थ्योरी’ पता चली. कुछ अधिकारियों ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि ज्यादातर किसानों के खाते में पैसे डलवाने का उन्हें टारगेट दिया गया था. इसी टारगेट को पूरा करने की हड़बड़ी में किसानों के नाम रजिस्टर करवाए गए. जिसमें एक परिवार में दो लोग या फिर इनकम टैक्स भरनेवाले अपात्र किसानों को योजना का लाभ मिला.
योजना लागू करने के टाइमलाइन पर गौर कीजिए
पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत सरकार द्वारा तय पैमाने पर फिट बैठने वाले किसानों को हर साल 6 हजार रुपये खाते में ट्रांसफर कराए जाते है. 2 हजार की 3 किश्तों में ये पैसा जमा होता है.
- लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी ने 24 फरवरी, 2019 को योजना लॉन्च की गई.
- लोकसभा चुनाव की गैजेट नोटिफिकेशन 18 मार्च 2019 को जारी हुआ.
- चुनावों की तारीख 11 अप्रैल से 19 मई तक 7 चरण में तय की गई. 23 मई को नतीजे थे.
यानी ठीक लोकसभा चुनावों की घोषणा से एक महीना पहले इस योजना को लॉन्च किया गया. पीएम मोदी ने यूपी के गोरखपुर में बड़े जोरशोर से इस योजना का शुभारंभ किया था. 18 मार्च को नोटिफिकेशन निकलने के बाद 'code of conduct' लागू हो गया. जिसकी वजह से योजना का स्थगन हुआ.
लेकिन अब 10 महीनों के बाद जब सम्मान निधि की छह किश्तें किसानों को मिल चुकी है, केंद्र सरकार ने जांच पड़ताल के बाद उन्हें अपात्र लाभार्थी बताकर वसूली की नोटिस जारी कर दी है.
नोटिस मिलने वाले किसानों की अलग-अलग दिक्कतें हैं
अब जिन्हें नोटिस मिला है, वो किसान या तो कोरोना की मार से बच गए हैं तो सूखा और बाढ़ की मार झेल रहे हैं. धुलिया की रहने वाली अर्चना हिरे को 12 हजार लौटाने के लिए कहा गया है. अर्चना के पति का कहना है,
“सरकार ने किश्त में 2 हजार दिए तो अब 12 हजार इकट्ठा कैसे मांग रही है? इसके लिए कोई ब्याज भी नहीं दिया जा रहा. पिछले साल एक एकड़ में लगाई गई मेरी प्याज की फसल भी बाढ़ में बह गई. तहसील के अधिकारियों ने तब जमीन से जुड़े कागज मांगे, तो हमने दे दिए. उसके बाद हमें सरकार से सैलरी मिलने लगी. हम खुद तो पैसे मांगने नहीं गए थे. लेकिन अब चुनाव में मोदी को वोट डालने के बावजूद सरकार हमें पैसे लौटाने को कह रही है.”
'कैसे लौटाएं पैसे?'
किसान परिवार से आने वाली अरुणा खैरनार का साफ कहना है कि, "भले ही हमे पैसे मिले है, लेकिन फसल खराब होने की वजह से हम ब्याज के पैसे भी नहीं चुका पा रहे. तो 12 हजार रुपये कैसे लौटाएं."
इन किसानों की बहाली को मद्देनजर रखते हुए अब कुछ संगठन सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. इसी जिले में किसानों के मुद्दों पर आवाज उठानेवाली और 'कृषि कन्या' नाम से जानी जाने वाली प्रियंका जोशी ने धुलिया के कलेक्टर संजय यादव से इस वसूली को रोकने की मांग की है.
सभी पैमाने पर फिट कई लाभार्थियों को नहीं मिला फायदा
योजना लागू हुई तब राज्य में बीजेपी की सरकार थी. लेकिन उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में पासा पलट गया. अब यहां महाविकास अघाड़ी की सरकार है और शिवसेना के कोटे से दादाजी भूसे कृषि मंत्री बने हैं. हालांकि, राज्य सरकार मान रही है कि योजना के गड़बड़ी के कारण कई गलत लाभार्थियों को लाभ मिला. लेकिन कई किसान ऐसे भी है जो सभी पैमाने में फिट होने के बावजूद योजना के लाभ से वंचित रहे. अब ऐसे किसानों के नाम जोड़ने के लिए राज्य का कृषि विभाग जिला स्तरीय ड्राइव शुरू कर रहा है.
कुल मिलाकर इस योजना की बड़ी खामी ये रही कि सरकार तो डिजिटल सिस्टम पर बहुत आश्वस्त नजर आई लेकिन उसी सिस्टम के तहत सही लाभार्थियों को पैसे बांटने में गड़बड़ी नजर आई और अब सुधारने के नाम पर कार्रवाई की तलवार कुछ लोगों पर लटकी हुई है.
आखिर में ये समझिए कि कैसे किसानों को नहीं मिलता है इस योजना का लाभ
- किसान परिवार में एक से ज्यादा को नहीं मिलता है ये लाभ
- इनकम टैक्स भरनेवाले
- सेवारत या सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी
- मौजूदा या पूर्व सांसद, विधायक या मंत्री
- पेशेवर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट और वास्तुकार
- 10 हजार से ज्यादा पेंशन लेनेवाले
- संस्थागत भूमि मालिक
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