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मोदी जी,सिर्फ मुस्लिम इलाकों में नहीं हो रहे CAA के खिलाफ प्रदर्शन

जामिया और शाहीन बाग ही नहीं, पूरा देश CAA के खिलाफ सड़कों पर है  

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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

देश में नागरिकता कानून का विरोध कौन कर रहा है? अगर पीएम मोदी की मानें तो ये सिर्फ तीन जगहों पर हो रहा है. और वो तीनों जगह हैं दिल्ली में. शाहीन बाग, सीलमपुर और जामिया.दिल्ली में वोटिंग की उलटी गिनती के बीच कड़कड़डूमा इलाके में 3 फरवरी को एक रैली में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा कि ये विरोध संयोग नहीं प्रयोग है.

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लेकिन सब जानते हैं कि सीएए के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन सिर्फ सीलमपुर, जामिया या शाहीन बाग में ही नहीं हो रहे. और अगर पीएम ये कहने की कोशिश कर रहे हैं कि ये विरोध सिर्फ मुस्लिम इलाकों तक महदूद है तो वो भी सही नहीं है.

मिसाल के तौर पर देश भर के वो इलाके जहां मुस्लिम आबादी का ‘दबदबा’ नहीं है लेकिन वहां CAA  के खिलाफ झंडा बुलंद है. पंजाब, जहां किसान और सिख प्रदर्शन कर रहे हैं. कुछ किसान तो शाहीन बाग भी आए थे. LGBTQ प्रदर्शनों में CAA के खिलाफ नारेबाजी, जाहिर तौर पर वो सिर्फ मुस्लिम नहीं हैं. केरल की मानव-श्रृंखला, जिसमें तमाम समुदाय के लोग शामिल थे. असम, जहां समाज के हर वर्ग के लोग सड़क पर उतरे. मुंबई, जहां गेटवे ऑफ इंडिया बन गया विरोध का प्रतीक. वाराणसी की बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी.

अमेरिका समेत कई देशों में नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. हाल ही में, 26 जनवरी को वॉशिंगटन डीसी में व्हाइट हाउस के पास भारी संख्या में लोग इकट्ठा हुए और भारतीय दूतावास तक मार्च किया. भारतीय स्टूडेंट्स और सुमदाय इन देशों में सीएए के खिलाफ सड़कों पर हैं: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका; बर्लिन, जर्मनी; कनाडा, नीदरलैंड, ऑक्सफोर्ड, यूके.

आप कह सकते हैं कि ये दिल्ली विधानसभा के लिए एक चुनावी रैली थी. तो जाहिर है कि अपनी बात साबित करने के लिए पीएम मोदी का दिल्ली की उन जगहों के बारे में बात करना सही है, जहां लोग सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हों. लेकिन दिल्ली में, उन जगहों पर भी प्रदर्शन हो रहे हैं, जो मुस्लिम बहुल इलाके नहीं हैं. जैसे,जंतर मंतर, जेएनयू, इंडिया गेट. तो आप सिर्फ शाहीन बाग और जामिया को ही निशाने पर क्यों ले रहे हैं?

इस ‘बड़े सवाल’ का जवाब आसान है. इससे ये दिखाया जा रहा है कि सीएए के खिलाफ केवल मुस्लिम हैं. इसे साफ-साफ समझिए. किसी मुद्दे पर सिर्फ मुस्लिमों की असहमति होना, इसमें कुछ भी गलत नहीं है, खासकर भारत जैसे लोकतंत्र में. नागरिकता संशोधन अधिनियम और एनआरसी के खिलाफ देशभर से अपने आप आवाज उठी है. नए कानून के तहत, प्रवासियों को नागरिकता धर्म के आधार पर देने की बात है, जो संविधान की भावना का उल्लंघन है, और सरकार ने अभी भी देशभर में एनआरसी लागू करने को लेकर अपनी योजनाओं को साफ नहीं किया है. तो अगर पूरे भारत में सीएए का विरोध ज्यादातर मुस्लिम भी कर रहे हैं, तो भी इससे कोई समस्या नहीं होनी चाहि- क्योंकि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि ये अल्पसंख्यक समुदाय के लिए लड़ी जा रही एक लड़ाई है.

समस्या तब होती है जब “सिर्फ मुस्लिमों में असहमति” को किसी बड़े षड्यंत्र के तौर पर पेश किया जाता है. जब सीएए के खिलाफ विरोध को “देश के गद्दार” से जोड़ा जाता है. उदाहरण के लिए, दिल्ली में इसी भाषण में, पीएम मोदी ने कहा कि ये लोग उन लोगों को बचा रहे हैं जो भारत को टुकड़ों में तोड़ना चाहते हैं. जामिया और शाहीन बाग सहित इन सभी विरोधों के पीछे एक राजनीतिक डिजाइन है. एक कानून के खिलाफ 2 महीने से देशभर में चल रहे विरोध को खारिज करना. ध्रुवीकरण के मकसद से सिर्फ एक समुदाय पर निशाना साधना, क्या ये जायज है? भले ही मौसम चुनाव का क्यों ना हो?

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