वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
अमेरिका में पत्रकारों ने राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी से जो 5 सवाल किए उनमें से 3 सवाल सिर्फ पाकिस्तान पर थे. भारत और अमेरिका से जुड़े बाकी जरूरी मुद्दों को छोड़कर हमारे मीडिया ने अपना ज्यादातर वक्त हमारे पड़ोस में बसे एक नाकाम होते देश पर बर्बाद कर दिया. जिसकी आबादी हमसे करीब 6 गुना कम है, जिसकी इकनॉमी हमसे 9 गुना छोटी है. जिसकी सेना हमारी सेना की एक तिहाई भी नहीं है.
क्या हमने कभी चीन को देखा है कि वो विश्व मंच पर सब कुछ छोड़ हांगकांग या ताइवान पर बात करता है? नहीं
जब भी हमारे प्रधानमंत्री दुनिया के सामने अपनी बात रखते हैं...तो पाकिस्तान का जिक्र कर ही देते हैं और फिर हम शुरू हो जाते हैं. न्यूज चैनल जीत के जश्न का शोर मचाने लगते हैं, कई दिन तक यही हेडलाइन रहती है, नफरत का ये जुनून हमें कूटनीतिक रूप से नुकसान पहुंचा रहा है.
पिछली कई सरकारों की विदेशी नीति ये रही है कि विश्व मंच पर भारत की पाकिस्तान से अलग भी कोई बात हो, इसमें हमें कामयाबी भी मिली. आप कह सकते हैं कि 'पाकिस्तान हम पर हमले नहीं रोक रहा, हम उसे नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं.'
ये ठीक है लेकिन....हम जो कर रहे हैं, पाकिस्तान भी वही चाहता है, और इसकी वजह भी है. जब पाकिस्तान भारत-भारत करता है, तो यह समझ में आता है-
पाकिस्तानी आर्मी की मजबूरी
ये पाकिस्तानी आर्मी को देश में मौजूं बने रहने में मदद करता है, जिस ताकतवर पड़ोसी ने कभी पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए उससे पाकिस्तानी डरते रहें तो वहां की आर्मी ताकतवर बनी रहती है, ये एक आम तरकीब है जो शासक अपनाते हैं.
पाकिस्तान का बढ़ता है कद
ये उनकी इस चाल की मदद करता है कि पाकिस्तान भी भारत के बराबर है और हम एक बड़ी वर्ल्ड पावर के बजाय सिर्फ आतंक को पनाह देने वाले एक असफल पड़ोसी से झगड़ा करते रहने वाला देश बन जाते हैं. 'दो झगड़ा करने वाले देश' के नैरेटिव से पाकिस्तान को भी फायदा होता है, जब वो कश्मीर पर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग करता है और यह चीन को भी मदद करता है क्योंकि भारत का ध्यान भटकता है.
तो फिर क्यों भारत पाकिस्तान के खेल में उलझ रहा है? खैर, यह किसी भी सरकार के लिए एक आसान जीत है. हम अपनी कूटनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर किसी विश्व मंच पर पाकिस्तान को पटखनी तो दे सकते हैं-और इससे वोटर संतुष्ट भी होता है. लेकिन ये वैसी ही संतुष्टि है जो पूरा पिज्जा खाने से मिलती है. जायकेदार होता है, लेकिन ये बीमार भी कर सकता है.
कई दशकों की कोशिश के बाद हमने भारत के वजूद को पाकिस्तान से अलग किया, वापस आते हैं कि भारत को हमेशा पाकिस्तान से जोड़कर देखने में क्या घाटा है?
ये जानना जरूरी है कि हमेशा पाकिस्तान की बात, क्यों नुकसानदेह है, सबसे पहले, एटमी हथियारों को छोड़ दें तो भारत पाकिस्तान की कोई तुलना नहीं हो सकती. पाकिस्तान के साथ बराबरी भारत को छोटा करना है. भारत का असली प्रतियोगी चीन है, या होना चाहिए
लेकिन पाकिस्तान-पाकिस्तान की लत हमें आनंद तो दे सकती है, लेकिन हमें चीन दिखना बंद हो जाएगा. चीन हमें पीछे छोड़ता जा रहा है और हम पाकिस्तान पर पूरा ध्यान लगाए बैठे हैं, लेकिन अफसोस हम विश्व मंच पर पाकिस्तान को पछाड़ कर सस्ती वाली किक ले रहे हैं
अब भी वक्त है कि हम अपने नुकसान को कम कर सकते हैं. चीन से मुकाबले के लिए हमारे पास कम संसाधन हैं - मानसिक और सैन्य दोनों. इस वक्त भारत दो-दो मोर्चों पर लड़ने के लिए मजबूर है. इसका मतलब है कि हमारे पास एक और जरूरी चीज पर खर्च करने के लिए कम पैसा है - समुद्री सुरक्षा
चीन पहले ही समुद्र में भारत के पारंपरिक क्षेत्रों में घुसपैठ कर चुका है और अब अमेरिका को बाहर धकेल रहा है. तो क्या सच में भारत को पाकिस्तान के उकसावे में फंसने की जरूरत है? जब सामने पाकिस्तान का दोस्त और हमारा मुख्य प्रतियोगी चीन हमें चुनौतियां दे रहा है?
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