वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
नारों से लेकर गानों तक, नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ प्रदर्शन में लोगों की रचनात्मकता खूब दिख रही है.
ओशो कबीर की नज्म ‘जिन्हें नाज है हिंद पर...’ इन विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे दिख रहीं महिलाओं और छात्रों के लिए है. इस गाने को मूल रूप से साहिर लुधियानवी ने लिखा है.
क्यों सहमी है धरती?
क्यों चुप आसमान है?
क्यों सहमी है धरती?
क्यों चुप आसमान है?
जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं?
दहकती हैं गलियां
रंगी हैं दीवारें
ये किसका लहू हर तरफ बह रहा है?
है छाया ये कैसा कुहांसा जहर का?
ये चीखें, ये आंसू, ये जुल्मों का पहरा...
ये गोली है किसकी, जो मुझ पर चलेगी?
ये गोली है किसकी, जो मुझ पर चलेगी?
ये किसने दिया है?
ये फरमान क्या है?
है कैसी ये महफिल जो खून की है प्यासी?
ये क्या मुआशरा है, जो सर मांगता है?
क्यों सहमी है धरती?
क्यों चुप आसमान है?
जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं?
मैं लेके चला बस कलम और इरादे
मेरे हाथ खाली, मेरे लब पे नारे
क्यों डरता है तू मेरी आवाज तक से?
क्यों डरता है तू मेरी आवाज तक से?
मेरी उठती मुट्ठी, मेरे परचमों से?
तेरे पास तो है वो पूरा इदारा
है गोली भी तेरी, है मसनद भी तेरा
मैं आया हूं मक्तल में तेरे निहत्था
बता मेरे कातिल! तू क्यों कांपता है?
क्यों सहमी है धरती?
क्यों चुप आसमान है?
जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं?
तो बोलो अभी, ना जुबान फिर रहेगी!
तो बोलो अभी, ना जुबान फिर रहेगी
जो आंधी चली है, ये सब ले उड़ेगी!
अंधेरा है यारों, मशालें जलाओ
कफन में कोई रौशनी ना मिलेगी!
ये मेरा जिस्म, कि है बस खाक-ए-फानी
ये मेरा जिस्म, कि है बस खाक-ए-फानी
ये जमुना की मिट्टी, ये गंगा का पानी
मैं ऐलान करता हूं तब तक लड़ूंगा
कि जब तक कफस में रहे जिंदगानी
कि सफदर हूं मैं, मैं ही अशफाक भी हूं
कि सफदर हूं मैं, मैं ही अशफाक भी हूं
भगत सिंह हूं, बिस्मिल हूं, आजाद भी हूं
मैं मंदिर की खूशबू, अजान की सदा हूं
मैं काशी से काबा को बहती सबा हूं
है मेरा वतन जो हिंदुस्तान है
है मेरा वतन जो हिंदुस्तान है
मेरा खून इस सरजमीं नें रवां है
ऐ मेरे वतन मैने तुझको है चाहा
सवाल आज ये है, तू क्या चाहता है?
सवाल आज ये है, तू क्या चाहता है?
क्यों सहमी है धरती?
क्यों चुप आसमान है?
जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं?
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