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10 Cr. नौकरियां बनाने का मौका है कोरोना संकट-मनीष सभरवाल EXCLUSIVE

इंटरव्यू में सभरवाल ने कुछ चौंकाने वाले इनसाइट्स दिए हैं

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'कोरोना वायरस को मारने के लिए हम जो कर रहे हैं उससे हमारी अर्थव्यवस्था मर रही है.' ये कहना है टीमलीज सर्विसेज के को-फाउंडर और चेयरपर्सन मनीष सभरवाल का. सभरवाल RBI बोर्ड के सदस्य हैं, साथ ही CAG बोर्ड में भी सदस्य हैं. द क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से लॉकडाउन के असर और इससे उबरने के उपायों पर बात करते हुए सभरवाल ने कहा कि जहां तक अर्थव्यवस्था का सवाल है- कोरोना एक संकट भी है और एक अवसर भी है.

इस इंटरव्यू में सभरवाल ने कुछ चौंकाने वाले इनसाइट्स दिए हैं. जैसे सभरवाल ने बताया कि जो लोग सोच रहे हैं कि लॉकडाउन के बाद भी वर्क फ्रॉम होम जारी रहेगा तो वो गलत हैं. लॉकडाउन के बाद कंपनियों को ज्यादा सैलरी पर कर्मचारी रखने पड़ सकते हैं. जॉब मार्केट के बारे में भी उन्होंने विस्तार से बताया है कि कहां नौकरियां जाएंगी और कहां पैदा होंगी.

लंबा लॉकडाउन बर्बाद कर देगा

लॉकडाउन को क्या 3 मई के बाद भी जारी रखना चाहिए? इस सवाल के जवाब में मनीष सभरवाल ने कहा कि ‘अभी हमें यही नहीं पता कि हम कोरोना संकट की शुरुआत में हैं, बीच में हैं या फिर आखिर में. ऐसे में अगर लॉकडाउन लंबा चला तो इकनॉमी खत्म हो जाएगी. हम उन देशों से अपनी तुलना नहीं कर सकते जहां प्रति व्यक्ति आय 50 हजार डॉलर है, हमारे यहां तो ये 2000 रुपए है. उन देशों की नीति अपनाना भ्रम में जीने जैसा है. सभरवाल के मुताबिक अगर लॉकडाउन मई के बाद जून तक खिंचा तो गरीब आदमी ही नहीं, ढेर सारी कंपनियों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा हो जाएगा.’

अर्थव्यवस्था बचाने के लिए क्या करे सरकार?

सभरवाल की सलाह है कि जहां भी ग्रीन जोन है, यानी जहां कोरोना हॉटस्पॉट नहीं हैं, वहां तुरंत कारोबार को शुरू करना चाहिए. सभरवाल के मुताबिक-'एक साथ राहत पैकेज न लाना समझदारी का काम था, लेकिन राहत पैकेज की जरूरत है और कई चरणों में लाने की जरूरत है. सरकार से लेकर कॉरपोरेट को समझना होगा कि सबसे पहले गरीब आदमी को मदद चाहिए, समाज के आखिरी पायदान पर बैठे शख्स को मदद चाहिए.'

अगर लॉकडाउन 3 मई के बाद भी जारी रहता है तो सभरवाल की सलाह है कि सरकार सबसे पहले गरीबों को, फिर मिडिल क्लास, फिर छोटे कारोबारी और फिर बड़े कॉरपोरेट्स को राहत दे और आखिर में वित्तीय बाजार को भी दुरुस्त करे. सरकार को एक काम जरूर करना चाहिए कि कंपनियों को इज ऑफ डुइंग बिजनेस दे. सरकार छोटे कारोबारियों को अपनी गारंटी पर कर्ज दिलाए.

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'RBI को कॉमर्शियल बैंक न बनाएं'

बतौर आरबीआई बोर्ड मेंबर सभरवाल ने एक बड़ी बात कही है. उन्होंने कहा है कि ‘सेंट्रल बैंक क्रेडिट गारंटी नहीं दे सकता. अब गरीब और कारोबारियों के लिए सरकार को राहत पैकेज लाना चाहिए. आरबीआई ने दो बार राहत पैकेज दिए हैं. लेकिन सेंट्रल बैंक को कर्मशियल बैंक न बनाएं, नहीं तो पिछले तीन-चार साल में जितनी इस बैंक की ताकत बनी है, वो खत्म हो जाएगी. इसके बहुत बुरे परिणाम देखने को मिल सकते हैं.’

अभी नौकरी नहीं, आगे मिलेगी ज्यादा सैलरी

सभरवाल के मुताबिक 'सैलरी कंपनियां नहीं देती, सैलरी देता है ग्राहक और अभी ग्राहक नहीं है. लेकिन अगर 3 मई को लॉकडाउन खुलेगा या तो कंपनियों को ज्यादा सैलरी पर कर्मचारी रखने होंगे, क्योंकि तब काम करने वाले लोग तुरंत मिलेंगे नहीं. लोग बड़े शहरों से बड़े पैमाने पर गांव चले गए हैं. ये लोग आएंगे, लेकिन उसमें वक्त लगेगा.'

वर्क फ्रॉम होम टिकेगा नहीं


सभरवाल ने कहा कि लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम ने क्लास डिवाइड को और सामने ला दिया है. जो लोग दिमाग से काम कर सकते हैं वो घर से काम कर सकते हैं, लेकिन जिन्हें हाथ पैर चलाना है कि उनके पास ये विकल्प नहीं है. 90% नॉन ग्रेजुएट घर से काम नहीं कर सकते. जिन्हें लग रहा है कि लॉकडाउन के बाद भी कंपनियां वर्क फ्रॉम होम जारी रखेंगी, वो गफलत में हैं. क्योंकि इसमें उत्पादकता बहुत कम हो जाती है.

कोरोना संकट भी, मौका भी

सभरवाल का मानना है कि कोरोना हमारी इकनॉमी के लिए संकट तो लेकर आया है लेकिन भारत में जैसा कि होता है, हम तभी कदम उठाते हैं जब और कोई रास्ता नहीं बचता. सभरवाल के मुताबिक, 'चीन से बहुत सारी कंपनियों का मोहभंग हुआ है, अब वो दूसरी जगहों पर जाएंगी. इसके कारण चीन को जैसा मौका 1978 में मिला था, ठीक वैसा ही मौका अब भारत के पास है. इसका फायदा भारत को मिल सकता है, लेकिन शर्त ये है कि तुरंत नीतिगत बदलाव करने होंगे. नहीं तो बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश मौका लूट लेंगे. कोरोना ने हमारी कमियों को उजागर किया है. अगर हम इसे मौके के तौर पर लें तो 10 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं. हमें एक साल में रिलीफ, रिकवरी और रिफॉर्म तीनों करना होगा. पूंजी और साधनों की कमी आड़े नहीं आएगी, बस राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए.’

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