वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा/मोहम्मद इरशाद आलम
बहुत कम लोग जानते हैं कि बाबरी मस्जिद विवाद मामले में मुस्लिम याचिकाकर्ताओं के प्रमुख वकील जफरयाब जिलानी का जन्म पाकिस्तान में हुआ होता, अगर विभाजन के बाद 1948 में उनके पिता का हृदय परिवर्तन नहीं हुआ होता.
जिलानी अपने पिता के बारे में बताते हुए कहते हैं, "मेरे पिता, अब्दुल कयूम जिलानी रेलवे में काम करते थे. बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए थे. वो 1948 में शादी करने के लिए वापस भारत आए. वो परिवार में अकेले लड़के थे. जब मलिहाबाद से वापस जा रहे थे, तो हमारी दादी ने कुछ कहा होगा, तो स्टेशन पर उन्होंने अपना विचार बदला और पाकिस्तान नहीं जाने का फैसला किया."
क्विंट हिंदी से बेबाक बातचीत में 68 साल के जिलानी ने बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद के बारे में और हिंदुत्व विचारधारा से जुड़े लोगों के साथ गहरी दोस्ती के बारे में बात की.
बाबरी मामले को लेकर बॉलीवुड सुपरस्टार दिलीप कुमार से मिलने से लेकर जाने-माने वकील नानी पालखीवाला तक को बोर्ड में शामिल करने के असफल प्रयास तक, जिलानी ने अपने जीवन के लगातार चार दशक पूरा ध्यान एक ऐसे केस पर लगाया, जो सांप्रदायिक और बंटे हुए भारत का प्रतीक बन रहा था.
जफरयाब जिलानी क्विंट को बताते हैं,
“जब डिमोलिशन हुआ, हमारी जिंदगी में उससे बुरा दिन नहीं है. उस दिन एकदम से झटका लगा, लेकिन उसको भी एक दिन बाद बर्दाश्त कर लिया. ऐसा नहीं था कि हम रोने लगे हों. हमने सोचा कि इसका सामना कैसे करेंगे.”
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने कहा कि बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर बनेगा, तब भी 68 साल के इस वकील ने मामले पर कभी कड़वाहट जाहिर नहीं की.
लेकिन अयोध्या मुद्दे से जिलानी का संबंध कब शुरू हुआ? इसके जवाब के लिए 35 साल पहले 1984 में जाना होगा, जब साइकिल पर सवार एक 36 साल का नौजवान पहली बार बाबरी मस्जिद की इमारत से रूबरू हुआ.
“इस मुकदमे के पिटीशनर हाशिम अंसारी ने 22/23 दिसंबर, 1984 की रात एक खत लिखा. जब मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखी गईं. ‘प्रकटोत्सव’ यानी उस दिन भगवान प्रकट हुए थे, तो इससे हाशिम को बुरा लगा. हाशिम अयोध्या से मुझसे मिलने आए. वो आए तो मैनें कहा कि मुझे बाबरी मस्जिद देखनी है.”जफरयाब जिलानी
जिलानी ने एएमयू से कानून की पढ़ाई की. छात्र राजनीति में सक्रिय रहे. इकबाल की कविताओं से प्रेरणा लेते रहे. वो बताते हैं कि इकबाल उनके पसंदीदा शायर हैं. जिलानी उनका एक शेर सुनाते हैं-
“ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है”. जिलानी इसका मतलब बताते हुए कहते हैं कि खुद्दारी को बहुत ऊंचा करो. खुद खुदा तुमसे पूछे कि बताओ तुम क्या चाहते हो.
अपनी भविष्य की योजनाओं और रिटायरमेंट पर बात करते हुए उन्होंने कहा: “वकालत में कोई रिटायरमेंट नहीं है. जब तक मैं कर सकता हूं, मैं काम करता रहूंगा. ”
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