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रेवाड़ी की छोरियों ने हॉकी को बनाया हथियार, छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं

हाॅकी ने दिया है इन ‘धाकड़’ लड़कियों को आत्मविश्वास.

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क्या करेंगी आप जब कोई अनजान आपका लगातार पीछा और छेड़छाड़ कर रहा हो? क्या करेंगी अगर बार-बार समझाने के बावजूद आपको परेशान किया जा रहा हो? रास्ता बदल देंगी या परिवार से शिकायत करने पर घर बैठने की मिली सलाह मान लेंगी? बेशक.. ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेंगी आप...

और ऐसा हरियाणा के रेवाड़ी की इन लड़कियों को भी मंजूर नहीं था और उन्होंने इससे लड़ने के लिए हाॅकी को चुना है.

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राजधानी दिल्ली से 100 किलोमीटर दूर है रेवाड़ी. हरियाणा के बड़े शहरों में से एक. देश में पीतल के बर्तनों के लिए भी पहचाना जाता है रेवाड़ी.

दरअसल, मई की चिलचिलाती धूप में ये जगह सुर्खियों में आ गई थी. 10 मई को रोज की तरह लड़कियां स्कूल तो गईं लेकिन वापस नहीं आईं. एक तो पहले ही लड़कियों के घर से निकलते ही, जब तक वो घर वापस ना आ जाएं मां-बाप को चिंता सताए रहती थी और उस दिन तो कुछ ज्यादा ही देर हो गई.

लेकिन इधर इन लड़कियों को ये डर नहीं सता रहा था कि घर नहीं पहुंचे तो मां-बाप के सवालों का जवाब कौन देगा? डांट से कैसे बचा जाएगा? क्योंकि उन्हें पता था कि जिस वजह से वो घर नहीं पहुंची हैं उसके पीछे उनकी जायज मांग है. चाहे डांट पड़े या मार पड़े, लोग हंसे या ताने दें...

पता है उनकी मांग क्या थी?

एक ऐसे स्कूल को अपग्रेड कराना जहां उन्होंने 10वीं तक की पढ़ाई की थी और आगे 12वीं तक वहीं पढ़ना चाहती थीं.

ऐसा इसलिए क्योंकि वो लगातार स्कूल आते-जाते रास्ते में छेड़छाड़ का शिकार नहीं होना चाहती थीं. 2,000 की जनसंख्या वाले इस गांव में सिर्फ एक सरकारी स्कूल है जिसमें 10वीं तक की पढ़ाई होती थी. गांव से 3 किलोमीटर दूर दूसरा गांव है कंवाली, जहां 10वीं के बाद 12वीं तक की पढ़ाई के लिए लड़कियों को जाना पड़ता था. पैदल या साइकिल के अलावा आने-जाने का कोई दूसरा साधन नहीं था. लड़कियों को स्कूल आने -जाने से तो कोई दिक्कत नहीं थी, दिक्कत थी तो रास्ते में होनेवाली छेड़छाड़ की घटनाओं से. लड़के आसपास बाइक से मंडरातें, फब्तियां कसते, दुप्पटा उतार लेते.

मजबूरन लड़कियां अपने गांव के स्कूल को अपग्रेड कराने की मांग के साथ भूख हड़ताल पर बैठ गईं. ऐसा करने का आइडिया सबसे पहले निकिता को आया. उसने अपनी सहेलियों से बात की. 12 और सहेलियों ने हिम्मत दिखाई. सभी कंवाली के स्कूल से लौटकर अपने गांव के स्कूल के बाहर कड़ी धूप में जमीन पर बैठ गईं. आते-जाते लोगों की नजर पड़ी तो लोगों ने पूछा-क्यों बैठी हो? तो सीधा जवाब दिया कि हमें दूसरे गांव में पढ़ने नहीं जाना हमें अपने गांव के स्कूल में ही पढ़ना है. स्कूल को अपग्रेड कर 12वीं तक करवाया जाए.

लोग हंसने लगे कि 17 सालों से ये मांग मानी नहीं गई तुम्हारे ऐसा करने से क्या बदल जाएगा. मां-बाप को पता चला, सरपंच आए लेकिन लड़कियों ने हाथ जोड़कर कहा कि हमें बस अपना स्कूल चाहिए. हम यहां से नहीं हटेंगे, न ही खाएंगे-पिएंगे. दूसरे दिन कई लड़कियां साथ देने पहुंच गईं. 83 लड़कियां धरनास्थल पर बैठ गईं.

2-3 दिन तक ये सिलसिला चला, लेकिन लड़कियां जिद पर अड़ी रहीं. मां-बाप से देखा नहीं गया. मांए भी एक-एक हाथ का घूंघट टांगे धरनास्थल पर बेटियों का साथ देने पहुंचीं. लड़कियों की हालत बिगड़ने लगी, उन्हें हाॅस्पिटल ले जाना पड़ रहा था.

लेकिन सरकार तक बात पहुंचने में 7 दिन का समय लगा. लड़कियों ने अपनी जिद नहीं छोड़ी हरियाणा सरकार ने आठवें दिन नोटिफिकेशन जारी कर दिया कि स्कूल को अपग्रेड कर दिया जाएगा. गांव के लोगों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा. कल तक जो मजाक बना रहे थे उन्होंने भी जश्न मनाया कि अब गांव की लड़कियां सुरक्षित गांव में ही पढ़ सकेंगी.

लेकिन इतनी छोटी उम्र में अपनी मांग के आगे सरकार को झुका देने वाली इन लड़कियों की दिक्कतें इतनी सी ही नहीं थी. उनके मां-बाप अभी भी चिंतित हैं क्योंकि हॉकी खेलने के लिए लड़कियों को कंवाली के ही फील्ड में जाना पड़ता है. ऐसे में छेड़छाड़ का खतरा अभी भी वैसा ही बना हुआ है.

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हालांकि लड़कियां तेजी से इस डर से बाहर निकल रही हैं. कुछ लड़कियों ने अपनी कहानियां बताई कि उन्होंने कैसे उन लड़कों का सामना किया जो उन्हें कमजोर समझ परेशान करते थे. इन्हें देखकर लगता है कि हॉकी इनके लिए आत्मविश्वास और आत्मरक्षा का हथियार बन रहा है.

हाथ में हॉकी उठा कर ये लड़कियां शायद कह रही हैं कि अब अगर किसी लड़के ने इनकी तरफ बुरी निगाह उठाई तो--- इक हॉकी दूंगी मैं रख के. वीडियो में खुद मिलिए इन ‘धाकड़’ लड़कियों से.

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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

कैमरा: आकिब रजा खान

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