वीडियो एडिटर: विशाल कुमार और पूर्णेन्दु प्रीतम
6 नवंबर 2019 को झारखंड के गिरिडीह जिले में रहने वाली 48 साल की सावित्री देवी की कथित तौर पर भूख से मौत हो गई. उन्हें राशन कार्ड के लिए आवेदन भेजे हुए लगभग 15 महीने बीत चुके थे.
उनकी बहू रिंकी देवी बताती हैं, “घर में चावल नहीं था और 2 दिन से चूल्हा नहीं जला था .”एक सदियों पुरानी परंपरा को निभाते हुए, रिंकी की मां ने सावित्री की मौत के बाद कुछ अनाज भेजा, और तब जाकर कई दिनों बाद घर में चूल्हा जला और खाना बना.
सावित्री देवी की मौत राज्य के लिए एक और संख्या बनकर रह गई. वो राज्य, जहां 2016 और 2019 के बीच भूख से 22 मौतें हुई हैं.भूख की वजह से जान गंवाने वाली सावित्री 23वां आंकड़ा थीं. फिर भी जिला प्रशासन ने उनकी मौत के पीछे भूख को कारण मानने से इनकार कर दिया.
हर महीने 1470 रुपये की किश्त चुकाने में खर्च हो जाती थी सारी कमाई
सावित्री के पति रामेश्वर तुरी गिरीडीह में ही दिहाड़ी मजदूर हैं. उन्होंने एक स्थानीय एक्टिविस्ट को बाताया कि उन्होंने एक माइक्रोफाइनेंस संस्था से 25 हजार रुपये का कर्ज लिया है. इसके लिए दोनों पति-पत्नी को मई 2020 तक हर महीने 1470 रुपये की किश्त जमा करनी होती थी. रामेश्वर रोज की जो दिहाड़ी कमाते थे वो सभी किश्त चुकाने में खत्म हो गई.
बीपीएल परिवारों की मदद के लिए बनी सरकार सुविधाएं जब काम नहीं आईं तो सावित्री और रामेश्वर के पास कोई चारा नहीं था, सिवाय इसके कि वो पैसा मुहैया कराने वाली निजि कंपनियों के पास जाते.
नरेगा के मैनेजमेंट इनफोर्मेशन सिस्टम के जरिए पता चलता है कि सावित्री ने नवंबर 2017 तक काम किया और रामेश्वर को साल 2011 तक दिहाड़ी मिली.
लेकिन असलियत में उनको नरेगा का कार्ड ही नहीं मिला तो दिहाड़ी मिलनी तो दूर की बात है.
बीपीएल योजनाओं की तरह पीडीएस स्कीम में भी खामियां
एक्टिविस्ट रामदेव विश्वबंधू बताते हैं सावित्री के पास राशन कार्ड नहीं था इस वजह से उनके परिवार को 1 साल से ज्यादा समय तक हर महीने मिलने वाला 35 किलो राशन नहीं मिल पाया.
‘‘उनके पास राशन कार्ड नहीं था, यहां तक की राशन कार्ड बनाने के लिए 2 हजार रुपये की रिश्वत भी मांगी गई थी. रामेश्वर तुरी ने रिश्वत नहीं दी. अब अगर आवेदन करने के 15 महीने बाद भी राशन कार्ड जारी नहीं होता तो ये राइट टू सर्विस एक्ट 2011 और राइट टू फूड एक्ट का उल्लंघन होगा.’’रामदेव विश्वबंधू(एक्टिविस्ट)
एक और एक्टिविस्ट विश्वनाथ सिंह का कहना है कि गरीब होने के बावजूद केंद्र सरकार की योजनाएं भी सावित्री के परिवार को नहीं मिलती. सिंह ने बताया कि वो लोग पास के बाजारों में मजदूर हैं, लेकिन कोई जॉब कार्ड नहीं है. अगर वो बीमार भी पड़ जाता है तो आयुष्मान भारत के अंतर्गत इलाज नहीं करवा सकता.
जिला प्रशासन ने मौत का कारण भूख को मानने से किया इंकार
सावित्री के पति रामेश्वर और बाकी के घरवाले ये कहते रहे कि उनकी मौत भूख से हुई है, लेकिन फिर भी प्रशासन ने मानने से इंकार कर दिया. सावित्री के दाह संस्कार से पहले उनके शव को पोस्टमॉर्टम के लिए नहीं भेजा गया, ताकि मौत की असली वजह को छुपाया जा सके.
झारखंड में काम कर रहे राइट टू फूड एक्टिविस्ट सिराज दत्ता का कहना है कि राज्य में भूख से होने वाली मौतों में एक पैटर्न देखा गया है, लेकिन इसबार मौत सरकारी कर्मचारियों का कठोर रवैया मौत की वजह है.
झारखंड में काम कर रहे एक्टिविस्ट नई सरकार से ये मांग कर रहे हैं कि राज्य के खाद्य विभाग में जो भी कमियां हैं उनको दूर किया जाए.
रामेश्वर की दूसरी बहू कुंती देवी ने इस दौरान 2000 रुपये रिश्वत देकर राशन कार्ड बनवा लिया है. इसबार कुंती देवी ने रिश्वत के लिए पैसे उधार लेकर राशन कार्ड बनवा लिया है ताकि वो कम से कम भूख से तो न मरें.
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