(यह स्टोरी पहली बार 9 मार्च 2020 को प्रकाशित हुई थी और होली 2023 के मौके पर दोबारा पब्लिश की गई है.)
साल के इस वक्त में हम रंगों के साथ भारत की विविधता का जश्न मनाते हैं. हर साल होली (Holi) अपने साथ बहुत सारी सकारात्मकता और खुशियां लेकर आती है, लेकिन इस साल त्योहार वैसा नहीं रहने वाला है क्योंकि कहीं न कहीं देश को धर्म के नाम पर बंटता हुआ दिख रहा है. इस वीडियो के जरिए आप भी होली के असल मायनों को याद कीजिए.
आपा की सुर्ख बिरयानी में
वो सैफरन साफ-साफ दिखता था
हरा-भरा कबाब शर्मा का
अक्सर, अनवर के तवे पे पकता था
मजहब में जब बांटा न था
हर रंग में देश रंगा था
होली अबकी पूछ रही
तेरा शहर क्यूं इतना बेरंगा था?
मोहल्ले के बच्चों ने वो दीवार जो मिलकर रंगी थी
किसी ने फूलों में रंग भरा था, उस पर डाली किसी की टंगी थी
भरकर एक दिन रंग अपना, कोई नफरत की पिचकारी मार गया
रंग पुराने बिखेर के कोई, नक्शा अपना उतार गया
पूछें बच्चे ये रंग कौन सा?
हमारी तो पहचान तिरंगा था
होली अबकी पूछ रही
तेरा शहर क्यूं इतना बेरंगा था?
गर्म-गर्म गुजियाओं से जब
सौहार्द का रस टपकता था
पिस्ता अफगानी या किशमिश देसी?
कहां किसी को कोई फर्क पड़ता था
नहाकर फिर गली में सबका
जब होली मिलन होता था
काला रंग जो छूटा नहीं
बस वही एक विलेन होता था
अबकी किसी ने सियासी गुब्बारों के निशाने ऐसे लगाए हैं
तन भिगोए नहीं पानी ने, जलते घर बुझाए हैं
जिस सड़क पे सब नाचते गाते
उसपे मौत का नाच क्यूं नंगा था?
होली अबकी पूछ रही
तेरा शहर क्यूं इतना बेरंगा था?
हां रिवाज है, होली पर, और मोहल्लों के लोग आते हैं
रंगों में जो चेहरा पोतकर, चुपके से रंग जाते हैं
पर अबकी होली से पहले, कुछ रंगों के कारोबारी आए
लाल नहीं जिन्हें लहू पसंद था, रिश्ते फूंके, घर जलाए
जब तक रंग उतरा मजहब का
समझे, कोई रंग नहीं वो दंगा था
होली अबकी पूछ रही
तेरा शहर क्यूं इतना बेरंगा था?
स्क्रिप्ट और टैलेंट: अभिनव नागर
कैमरा: संजॉय देब और अथर राथर
एडिटर: वीरू कृष्ण मोहन
कैमरा असिस्टेंट: गौतम शर्मा
प्रोड्यूसर: दिव्या तलवार
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