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CAA-किसानों का प्रदर्शन, आज वाजपेयी PM होते तो क्या करते?

लेखक और वाजपेयी के पूर्व निजी सचिव शक्ति सिन्हा से खास बातचीत 

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

देश अटल बिहारी की 96 वीं जयंती मना रहा है, वाजपेयी के पूर्व निजी सचिव शक्ति सिन्हा ने इस मौके पर अपनी किताब Vajpayee: The Years That Changed India’ लॉन्च की. जिसमें वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल की बातों का जिक्र है.

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पीएम पद के लिए वाजपेयी की कौन सी खूबियां उन्हें स्वीकार्य नेता बनाती थी?

वाजपेयी को देशभर में स्वीकार किया जाता था. बहुत लोग उनको कहते थे कि सही इंसान गलत पार्टी में है. वो बिल्कुल इस बात को नकारते थे. कहते थे कि जब फल मीठा है तो पेड़ भी मीठा होगा, खराब पेड़ से मीठा फल तो निकलेगा नहीं. जहां तक बीजेपी की कोर कमेटी तक वर्कर्स थे, वो एकदम बीजेपी के वोट देते थे लेकिन अगर बीजेपी को वो एक लेवल तोड़कर आगे बढ़ना था उसके लिए वाजपेयी जी की आवश्यकता थी.

क्या अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री काल RSS से प्रभावित था?

वाजपेयी जी संघ से थे. आरएसएस के जितने भी सिद्धांत थे वो उनमें थे. हां, समय के साथ थोड़ा बदलाव आता है. कई मुद्दों पर उनमें ( आरएसएस) और वाजपेयी जी में जरूर भेद रहा होगा. ये पब्लिक में था. हर चीज पर सहमत नहीं थे इसका मतलब ये नहीं है कि वो साथ नहीं थे. जैसे वो कहते थे मतभेद है मनभेद नहीं है.

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पोखरण परमाणु परीक्षण के दिन कैसा माहौल था?

35 साल से वाजपेयी जी कह रहे थे कि भारत को न्यूक्लियर टेस्ट करनी चाहिए. भारत को न्यूक्लियर पावर बनना है. चीन बन चुका है . चीन पाकिस्तान को न्यूक्लियर पावर बनने में मदद कर रहा है, हमको इन दोनों के साथ रहना है.

पाकिस्तान को लेकर वाजपेयी और मोदी के नजरिया में कितना अंतर है?

सभी प्रधानमंत्री ने कोशिश किए हैं. सभी पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहते थे. हरदम, सभी को नकारा गया. कई बार नकारा गया है- युद्ध की दौरान, आंतकवाद के दौरान. वाजपेयी जी लाहौर जरूर गए, आगरा जरूर बुलाया मुशर्रफ को, और इंडियन मिलिट्री का मोबिलाइजेशन भी पूरा किया. इसलिए अगर देखेंगे परिस्थिति अलग थी उस वक्त. भारत आज के हिसाब से काफी कमजोर था. इतना शक्तिशाली देश नहीं था. वाजपेयी जी के पास जो विकल्प थे, वो बहुत कम थे. अभी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास ज्यादा विकल्प हैं. भारत की इकनॉमी और पाकिस्तान की इकनॉमी देखें , हमारा मिलिट्री स्ट्रेंथ देखिए, फर्क हो गया है.

वाजपेयी आज होते तो प्रदर्शन को लेकर सरकार का रवैया कैसा होता?

अगर मैं सोचूं, डेढ़ हजार-दो हजार सड़क पर बैठकर दिल्ली को ऑफ कर दें, क्या ऐसा होता कि सरकार चुप बैठती, उनको रास्ते से हटा देती.  हमें भी सोचना चाहिए. लोग उससे आपत्ति कर रहे हैं कोई बात नहीं, गलत भाषा नहीं इस्तेमाल करनी चाहिए , यह तो मैं मानने को तैयार हूं. अभी जो हो रहा है मेरे ख्याल से वो खेती को लेकर कम पॉलिटिक्स ज्यादा है.अब लोग कहते हैं कि वाजपेयी जी कितना अच्छे थे, हम सबके लिए ब्रॉड थे , लिबरल थे. आज मानते हैं, उस समय उन्हें भी गाली देते थे.

वाजपेई जी के साथ कौन सा वो पल है जब आपको लगा कि आपको उसपर गर्व है?

अगर मैं कहूंगा तो लाहौर होगा ,परमाणु होगा , कारगिल होगा. मैं कहूंगा उसमें भी कारगिल होगा. बहुत दबाव आया कि गड़बड़ हो सकता है. सीजफायर कराइए. वाजपेयी जी अड़े रहे की नहीं, सीजफायर तभी हम कर पाएंगे, जब पाकिस्तानी फौज एलओसी से क्रॉस करके जाएंगे. उस समय मुझे लगा वाजपेयी के आने से, भारत में बदलाव आया है. भारत में पहले जब कॉन्फिडेंस नहीं था, अब भारत भारत बदल गया है. दुनिया भारत को दूसरे नजर से देख रही है और वाजपेई जी के नेतृत्व की इसमें बहुत बड़ी भूमिका रही है. तो मेरे ख्याल से उस समय मुझे लगा था, हां अब मैं भारतीय होकर दुनिया में खड़ा हो सकता हूं.

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