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ये ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता’ है क्या? इसे खत्म करना सही क्यों है?

ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को लेकर ट्विटर पर छिड़ी बहस के मायने क्या हैं?  

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‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता' ये वो दो शब्द हैं, जिन्हें लेकर इन दिनों जोरदार बहस छिड़ी हुई है. दरअसल, ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी की ट्विटर पर एक तस्वीर शेयर हुई, जिसमें वो एक पोस्टर पकड़े नजर आ रहे हैं. इस पोस्टर पर लिखा था, 'ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को तोड़ दो.'

इसके बाद इन दो शब्दों को लेकर जोरदार चर्चा शुरू हो गई. कुछ लोगों ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई. लेकिन इन दो शब्दों का मतलब क्या है? और इससे लोगों में नाराजगी क्यों है?

आखिर, ये ब्राह्मणवादी पितृसत्ता है क्या?

पहले इन दोनों शब्दों को अलग करते हैं. ब्राह्मणवाद और पितृसत्ता. ब्राह्मणवाद, माने जो समाज में जातिवाद को बनाए रखना चाहता है और पितृसत्ता, माने जो महिलाओं पर अपना अधिकार जमाए रखना चाहता है. अब इन दोनों शब्दों के भाव को मिला दें तो आप 'ब्राह्मण पितृसत्ता' का मतलब समझ पाएंगे.

इतिहासकार उमा चक्रवती ने साल 1993 में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने इस शब्द का मतलब बताते हुए लिखा, ‘ महिलाओं पर इफेक्टिव सेक्सुअल कंट्रोल के लिए पितृसत्ता ही नहीं, बल्कि जातिवाद बनाए रखने के लिए भी इसकी जरूरत है.’

मतलब, एक तीर से दो निशाने. माने एक शब्द, जो जाति व्यवस्था और दमनकारी पितृसत्ता दोनों को बनाए रखने की कोशिश करता है.

हम इसे कहां देखते हैं?

हर जगह. सच में, हर जगह. बीते 2 नवंबर को गुजरात के राजकोट में एक 45 साल की महिला जब पानी भरने के लिए बोरवेल पर गई तो ऊंची जाति के शख्स ने उसे थप्पड़ जड़ दिया. दरअसल, ऊंची जाति से ताल्लुक रखने वाला शख्स बोरवेल पर अपनी जीप धोना चाहता था, महिला ने जब उसे अपनी बारी का इंतजार करने को कहा, तो ऊंची जाति का शख्स भड़क गया और उसने उस महिला को पीट दिया.

यही है, 'ब्राह्मणवादी पितृसत्ता'.

इतना ही नहीं, इससे भी ज्यादा बुरे हालात हैं. जब आप सुनते हैं कि एक दलित महिला के साथ रेप किया किया और फिर उसकी हत्या कर दी गई. इस 'सिस्टम' के मुताबिक, हिंसा के लिए आप ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि आप दलित हैं...महिला हैं. और आपको उसी हाल में रखना ही जाति व्यवस्था और पितृसत्ता को जिंदा रखने का तरीका है.

तो फिर, कौन इसे तोड़ सकता है और कैसे?

ब्राह्मणवादी पितृसत्ता, दलित और महिलावादी साहित्य के लिए नया शब्द नहीं है. ये कई सालों की रिसर्च के बाद सामने आया शब्द है.  डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी इस शब्द का इस्तेमाल किया था. अंबेडकर ने अपनी 'अगेंस्ट द मैडनेस ऑफ मनु' किताब में ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के बारे में लिखा है.

लेखिका शर्मिला रेगे लिखती हैं, 'अंबेडकर ने जातिवादी हिंसा और महिलाओं पर अत्याचार देखे, इसकी वजह से ही जातिवाद बढ़ा.' डॉ. बीआर अंबेडकर ने ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के दमन के लिए सबसे शक्तिशाली प्रस्ताव दिया था, और वो है इंटर-कास्ट मैरिज.

ऐसा करके ही महिलाएं सगोत्रीय जाति व्यवस्था को खत्म कर सकती है, जो ऊपरी जातियों को मजबूत रखने के लिए जरूरी है.

इसीलिए ज्यादातर जातिवाद संबंधी हिंसा की घटनाएं इंटर-कास्ट मैरिज से जुड़ी होती हैं; जब एक दलित लड़का, किसी ऊंची जाति की लड़की से शादी कर लेता है.

इसलिए अगर अब भी आप भी ट्विटर का बहिष्कार करने वाली कोई मुहिम देखें या इससे जुड़ी कोई बहस सुनें, तो रुकें और उन लोगों को ब्राह्मणवादी पितृसत्ता का मतलब समझाएं. ये सिर्फ एक शब्द नहीं है, यह हमारे आसपास घट रही घटनाओं से जुड़ा है. अब वो वक्त आ गया है, जब इस ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को तोड़ने की जरूरत है.

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