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उमर खालिद पर हमले का जश्न- क्या ये देशद्रोह नहीं है?

शर्मिंदगी होती है ये देखकर कि ये हिंदुस्तानी होकर भी एक हिंदुस्तानी पर गोली चलाने का जश्न मना रहे हैं.

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वीडियो एडिटर- मोहम्मद इरशाद आलम

कैमरामैन- शिव कुमार मौर्या

मेरे अंदर जो एडिटर है, वो कहता है कि ओवर-रिएक्ट मत करो. लेकिन मेरे अंदर जो आम इंसान है वो कहता है कि जो कहना है अभी कह दो या फिर तैयार हो जाओ हमेशा चुप रहने के लिए

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उमर खालिद NDA सरकार का सख्त आलोचक है. यहां तक कि अगर सरकार कांग्रेस की भी होती तो वो उनका भी आलोचक होता. उसकी अतिवादी लेफ्ट पॉलिटिक्स का मैं कोई बड़ा फैन भी नहीं हूं. जब उमर खालिद को एंटी-नेशनल कहा जाता है, जब उसे गालियां पड़ती हैं.

सोशल मीडिया पर मार डालने की धमकियां मिलती हैं और जब इस सब के बारे में पुलिस कुछ नहीं करती तो गुस्सा आते हुए भी मैं जाने देता हूं. रोजाना, न्यूज चैनल उसे जमकर गालियां सुनाते हैं तो हम घटना के बारे में खालिद की प्रतिक्रिया अपनी वेबसाइट पर चला लेते हैं ये सोचते हुए कि यही ठीक है. और ये फेयर है, मैं निष्पक्ष मीडिया एडिटर हूं. चीजों को हमेशा बैलेंस करने की कोशिश में लगा हुआ हूं.

सच पूछिए तो जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में जूते, अंडे या स्याही फेंकी जाती है, चिदंबरम से केजरीवाल तक... तो मैं उसके भी खिलाफ हूं. लेकिन, अचानक अंडे, स्याही और जूते की जगह गोली आ जाती है, जी हां गोली! और मुझे ये एहसास होता है कि कुछ है जो बदल गया है, जिसके बारे में बात होनी ही चाहिए. अभी या कभी नहीं!

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ये परेशान करने वाला है, जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता कि हम एक ऐसे मुल्क में रहते हैं जहां संसद से महज एक किलोमीटर की दूरी पर कोई बंदूक निकालता है और किसी पर गोली चला देता है.

उसका कसूर? सिर्फ अपनी बात रखने की कोशिश. जबकि कोई बेवकूफ सोचता है कि वो किसी को भी शूट करने के लिए आजाद है, फायरिंग करने वाला ये शख्स सोचता है कि खालिद ये गोली खाने के लायक है, उसे कानून का कोई डर नहीं है. क्या ये कोई साजिश है, जी हां, बिलकुल है!

और जैसे गोली चलाना ही काफी नहीं था. देखिये ट्रोल्स क्या कहते हैं...

बिस्वजीत रॉय कहते हैं कि, " मैं इस असफल कार्य की निंदा करता हूं. अगली बार इसे लिंच कर देना. इस तरह के एंटी-नेशनल लोगों को जल्द से जल्द खत्म करना चाहिए."

मैं इस असफल कार्य की निंदा करता हूं. अगली बार इसे लिंच कर देना. इस तरह के एंटी-नेशनल लोगों को जल्द से जल्द खत्म करना चाहिए.

आदित्य शर्मा कहते हैं...

खालिद हम शर्मिंदा हैं..तुम जैसे अभी भी जिंदा हैं

अभिषेक द्विवेदी एक कदम और बढ़ा कर कहते हैं-

खालिद हम शर्मिंदा हैं, जो तुझे मार न सके वो अभी जिंदा हैं

तो इन लोगों को कौन चुप करेगा? शर्मिंदगी होती है ये देखकर कि ये हिंदुस्तानी होकर भी एक हिंदुस्तानी पर गोली चलाने का जश्न मना रहे हैं. सच पूछिए तो ये गुस्सा हैं कि, गोली मिस कैसे हो गयी.

पुलिस ऑफिसर साहब... क्या ये हेट स्पीच नहीं है? क्या ये मर्डर के लिए उकसाना नहीं है? आपको कार्रवाई के लिए और क्या चाहिए? कहीं आपसे कोई ये तो नहीं कह रहा कि, 'कुछ मत करो'

देशद्रोह क्या है. हमें पूछना चाहिए! किसी को चुप करने की लिए कत्ल करना?... फ्री स्पीच के आइडिया को मारना?..क्या ये देशद्रोह नहीं है?

इस केस में...कौन हुआ देशद्रोह का गुनहगार? जिन्होंने उमर खालिद पर गोली चलाई, जिन लोगों ने ट्रोल किया और उसे मरा हुआ देखना चाहते हैं. वो चेनल उसे गद्दार बताते हैं. क्या ये सब देशद्रोही नहीं हैं?

उमर खालिद फ्री स्पीच में यकीन करता है. मैं भी वही करता हूं, जैसे इस देश के करोड़ों लोग करते हैं तो ये देशद्रोह कैसे हो गया?

उस बंदूक को दूर रख दो दोस्त...चलो बात करते हैं..."Let's even Agree to Disagree". जिंदगी में सिर्फ बात करना आखिर कितना मुश्किल हो सकता है?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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