उत्तर प्रदेश में चुनावी गरमा-गरमी के बीच कैराना सीट आने वाले चुनाव में सबसे अधिक चर्चा का विषय बनी हुई है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पलायन करने वालों की घर वापसी की बात कर रहे हैं, तो वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं. यूपी चुनावों में हॉट सीट बने इस शहर में पलायन की हकीकत जानने के लिए क्विंट पहुंचा कैराना.
कैराना के लोगों ने बताया कि वहां कभी भी हिंदू-मुस्लिम दंगे नहीं हुए और न ही बाबरी मस्जिद के समय कोई हिंदू-मुस्लिम तनाव हुआ था. हालांकि, कुछ लोगों का कहना था कि साल 2014 में हालात कुछ और थे उस समय यहां सरेआम लोगों को मार दिया जाता था.
कैराना के व्यापारियों ने बताया कि कैराना से पलायन का मुद्दा हिंदू-मुस्लिम तनाव नहीं, बल्कि कुछ सालों पहले व्याप्त गुंडागर्दी थी.
"जब यहां एसपी की सरकार थी, तब यहां काफी बदमाशी थी. कई बदमाश ग्रुप यहां काम कर रहे थे और वो व्यापारियों से रंगदारी मांगते थे. रंगदारी न देने पर कई का मर्डर भी हुआ, जिस कारण से काफी दहशत हो गई थी."अनिल कुमार गुप्ता, व्यापार मंडल अध्यक्ष
पलायन करने वाले परिवार से बातचीत
साल 2016 में कैराना से बीजेपी सांसद हुकुम सिंह ने पलायन करने वाले 346 परिवारों की एक लिस्ट जारी की थी, जिसपर काफी विवाद हुआ था. क्विंट ने एक पलायन करने वाले परिवार से बातचीत की, जिन्होंने बताया कि उन्होंने साल 2014 में कैराना से पलायन कर लिया था, क्योंकि परिवार के एक सदस्य को धमकी भरे फोन आ रहे थे. कुछ सालों बात परिवार वापस कैराना लौट आया है. परिवार ने कहा कि उनके पलायन का कारण हिंदू-मुस्लिम तनाव नहीं था.
"हिंदू कोई पलयान नहीं कर रहा था. जो व्यापारी वर्ग है, फिर उसमें सब लोग आते हैं, फिर चाहे हिंदू हों या मुस्लिम. व्यापारी वर्ग को परेशानी थी और वो लोग पलायन कर रहे थे."राहुल, व्यापारी
व्यापारी राहुल ने बताया कि कुछ लोग, जिनका बाहर काम नहीं चल सका, वो वापस भी लौट आए हैं.
कुछ व्यापारियों ने कहा कि बदमाश एक तबके से ताल्लुक रखते थे, इसलिए ऐसी बातें कहीं गई, लेकिन कैराना में सांप्रदायिक कुछ नहीं था.
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