क्या ये नेता वोटर को मूर्ख समझते हैं? ऐसा न होता तो एक बार फिर क्यों जिन्ना, पाकिस्तान का शोर हो रहा है लेकिन उस चुभने वाली सच्चाई पर कोई चर्चा तक नहीं कि बिहार, यूपी जैसे राज्य आज भी घोर गरीबी में जी रहे हैं.
अब ये वीडियो देखते हुए आप वॉट्सएप यूनिवर्सिटी वाले मैसेज का हवाला देंगे और कहेंगे कि हम कहां गरीब हैं? आटा से सस्ता तो मोबाइल में डाटा मिल रहा है.. और क्या चाहिए..? लेकिन सच तो ये है कि आप कितने गरीब हैं इसका ताजा डेटा आया है. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, मेघालय में डेटा तो दूर आटा के लिए भी जद्दोजेहद हो रही है. कमाल है जिस राज्य के सीएम चुनाव से पहले वोटरों को जिन्ना का डर दिखा रहे हैं, वो उत्तर प्रदेश लिस्ट में तीसरे नंबर पर है. इसलिए जब गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई छोड़ पाकिस्तान, हिंदू-मुसलमान और जिन्ना में उलझाया जाएगा तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?
नीति आयोग ने देश का पहली मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (MPI) रिपोर्ट जारी की है. मतलब बिहार, झारखंड उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, मेघालय भारत के सबसे गरीब राज्यों में हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में 51.91% जनता गरीब है, मतलब आधी से ज्यादा आबादी गरीब. वहीं, झारखंड में 42.16% तो उत्तर प्रदेश में 37.79% आबादी गरीब है. इस लिस्ट में चौथा नंबर मध्यप्रदेश का आता है. एमपी में 36.65% आबादी गरीब है. और मेघालय 32.67% गरीब आबादी के साथ 5वें नंबर पर है.
अच्छे दिन आ गए?
बात करते हैं बिहार की. जहां बीस महीने मतलब नीतीश-लालू गठबंधन की सरकार को हटा दें तो पिछले 16 साल से बीजेपी और जेडीयू की सरकार है. लेकिन गरीबी देखिए. झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन की सरकार है. लेकिन ये भी जान लीजिए कि जिस झारखंड को बने 21 साल हुए हैं वहां 17 साल बीजेपी के CM थे. मध्य प्रदेश में भी साल दिसंबर 2018 से मार्च 2020 छोड दें तो 2003 से लगातार बीजेपी की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान 2005 से मुख्यमंत्री हैं.
चलिए ये तो हुई नीति आयोग के ताजा डेटा की. अब आपको थोड़ा फ्लैशबैक में ले चलते हैं. और आंकड़े दिखाते हैं.
केंद्र सरकार की थिंक टैंक यानी नीति आयोग ने इसी साल जून में सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) इंडिया इंडेक्स 2020-2021 की रैंकिंग जारी की थी. इस लिस्ट में केरल पहले नबंर पर रहा, वहीं बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब रहा. बिहार, झारखंड और असम सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं. यहां भी तीन में से दो राज्य बीजेपी के पास हैं.
एसडीजी इंडिया इंडेक्स में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के क्षेत्र में राज्यों की प्रगति के आधार पर उनके प्रदर्शन को आंका जाता है और उनकी रैंकिंग की जाती है.
अब एक और रिपोर्ट देखिए. नीति आयोग ने "जिला अस्पतालों के कामकाज की बेस्ट प्रैक्टिस" नाम से एक स्टडी की थी. जिससे पता चले कि देश के जिला अस्पतालों में एक लाख की आबादी पर कितने बेड हैं.
स्टडी में सामने आया है कि बिहार में एक लाख की आबादी पर जिला अस्पताल में सिर्फ 6 बेड हैं. जबकि Indian Public Health Standards 2012 के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रति 1 लाख जनसंख्या पर 22 बेड होने चाहिए. बिहार के बाद झारखंड हैं, जहां एक लाख की आबादी पर 9 बेड हैं. तेलंगाना में 10, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में एक लाख की आबादी पर जिला अस्पताल में सिर्फ 13 बेड हैं.
क्राइम का हाल भी देख ही लीजिए
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB ने 2020 में हुए अपराधों का डेटा जारी किया था. जिसके मुताबिक देश में सबसे ज्यादा हत्या के मामले उत्तर प्रदेश में आए. उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा हत्याएं बिहार (3,150), महाराष्ट्र (2,163), मध्य प्रदेश (2,101) में हुए. लेकिन क्राइम चुनावी मुद्दा नहीं बनता है. अब दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध की बात करें तो इन दो समुदायों के खिलाफ यूपी और मध्य प्रदेश में अपराध के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं. उसके बाद बिहार फिर राजस्थान और फिर मध्य प्रदेश.
एक और रिपोर्ट देखिए, ताकि राज्यों के सुशासन की कहानी समझ आए.
बेंगलुरु स्थित थिंक टैंक पब्लिक अफेयर्स सेंटर की पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश को सबसे खराब शासन वाले बड़े राज्य का दर्जा दिया गया है. पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स - 2021 में इक्विटी, ग्राेथ और सस्टेनबिलिटी के तीन पिलर के आधार पर राज्यों का मूल्यांकन होता है.
ग्रोथ पिलर के आधार पर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार ने सबसे खराब प्रदर्शन किया है और सबसे निचले पायदान पर है.
सस्टेनबिलिटी यानी स्थिरता का पैमाना देखें तो पश्चिम बंगाल 16वें, बिहार 17वें और उत्तर प्रदेश 18वें स्थान पर है.
पिलर ऑफ इक्विटी में गुजरात का नंबर सबसे ऊपर है. इसके बाद है केरल और राजस्थान. इक्विटी पिलर में खराब प्रदर्शन करने वालों में पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा और उत्तर प्रदेश हैं.
अब सरकार, राजनीतिक दल को और जनता को समझना होगा कि असल मुद्दे समाज में नफरत फैलाने, 'अब्बा जान', 'चाचा जान' के कटाक्ष और जिन्ना को याद करने से हल नहीं होंगे. स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा, बिजली, सड़क, पानी, समानता अगर चुनावी मुद्दा नहीं है तो समझ लीजिए जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है. क्यों भारत के किसी राज्य में चुनाव से पहले पाकिस्तान की एंट्री होती है? क्यों किसी चुनाव से पहले शमशान-कब्रिस्तान होता है? एक बार फिर वोटर के पास मौका है खुद को साबित करने का, मुद्दों पर चुनाव कराने का और अगर फिर भी आपके नेता आपको असली मुद्दों से भटकाते हैं तो आप भी पूछिए जनाब ऐसे कैसे?
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