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100 साल बाद हाड़ कंपाती ठंड में ठिठुर रहा 'हल्कू'

पूस की रात: सर्द रात में भी खेतों में फसल ताक रहें किसान

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मुंशी प्रेमचंद्र जी ने एक कहानी लिखी थी 'पूस की रात', और इस कहानी का मुख्य पात्र एक किसान 'हल्कू' था जो अपने कुछ कपड़ो की बदौलत सर्द रातों में अपनी फसल की रखवाली करता था. ठीक उसी तरह के हालात आज फिर किसानों के हो गए हैं. दरअसल, निराश्रित मवेशियों से अपनी फसलों को बचाने के लिए खेतों खुले आसमान के नीचे सर्द रातें काट रहे हैं.

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गेंहूं, जौं, सरसों की फसल आज भी इन किसानों के लिए उनकी आजीविका का मुख्य साधन हैं. लेकिन अन्ना मवेशियों के झुंड उनकी फसल को एक ही रात में चरकर खत्म कर देते हैं. कई बार ये जानवर इन किसानों पर भी हमलावर हो जाते हैं.

रात के अंधेरे में आपको बड़ी संख्या में किसान हाथ में टोर्च और डंडा लेकर खेतों की रखवाली करते दिख जाएंगे. दो दिन पूर्व ही पास के गांव के रहने वाले किसान नन्हे की खेत पर रखवाली करते समय सर्दी लगने से मौत हो गई थी. इन किसानों का कहना है ऐसे तो हम ही अकेले मरेंगे अगर फसल न बचाई तो बच्चों सहित पूरा परिवार मर जायेगा. किसानो के इसी दर्द और मजबूरी को जानने हम भी सर्द रातों में खेतों के लिए निकले. ठंढ का आलम ऐसा था कि जिस सर्दी वाली रात में हम आप अपने घरों की रजाइयों से निकलना भी पसंद नहीं करते वैसें में ये किसान पूरी रात खेतों में रुककर फसल ताकते हैं.

सर्द रात में जानवरों से फसल बचाने को मजबूर किसान

इस कड़ाके की सर्दी वाली रात में किसानों की मुसीबतें थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं. एक तरफ इन सर्द रातों में हम आप सभी अपने घरों की रजाइयों में दुबके हुए नजर आते हैं. लेकिन वहीं दूसरी ओर देश का अन्नदाता यानी किसान पूरी रात अपने खेतों में रहकर अपनी फसल की रखवाली करने को मजबूर हैं. किसानों की मजबूरी का आलम ये है कि यदि एक दिन भी वो अपने खेत नहीं जाते हैं, तो उनके खेत में खड़ी पूरी फसल अन्ना मवेशी पूरी तरह से चट कर जाते हैं.

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सौ साल बाद भी पूस की रात में रखवाली करने को मजबूर हैं  चंद्रेश और कमलेश

किसानों के लिए उनकी फसल ही पूरे साल के लिए उनकी आजीविका का एक बड़ा साधन रहती हैं. इसीलिए फसल को बचाने के लिए अपनी जिंदगी को भी किसान दांव पर लगा रहे हैं.

साहब बहुत होगा तो ऐसे हम ही मरेंगे और अगर फसल खराब हो गई तो पूरा परिवार मर जायेगा भूख से.
किसान कमलेश

खेत में घूमने के दौरान हमें बार-बार टोर्च की रोशनी दिख रही थी, जिसके बाद हम और आगे पहुंचे तो वहां एक किसान चंद्रेश टोर्च और डंडा लेकर कंडे पर कंबल ओढ़कर अपनी फसल की रखवाली करते दिखें.

साहब सर्दी से ज्यादा भूख लगती है, और उसके आगे सबकुछ छोटा पड़ जाता है. साहब हम लोगों के पास जूते मोजे तक नहीं हैं, पास के नन्हे दो दिन पहले खेत पर सर्दी लगने से मर गए, लेकिन बच्चों और परिवार की खातिर अपनी जान को दांवपर लगाये हैं. ऐसे तो सिर्फ हम ही मरेंगे, अगर जानवर फसल चर गए तो पूरा परिवार मर जाएगा.
किसान चंद्रेश

थोड़ा आगे बढ़ने पर हमें हर खेत मे मचान मिलें जिसपर बैठकर किसान अपनी फसलों की रखवाली करते दिखे. इसी दौरान मचान पर बैठकर रखवाली कर रहे किसान रामप्रकाश ने बताया कि साहब क्या करें सर्दी तो लगती है लेकिन भूख उससे ज्यादा लगती है. बच्चों का पेट पालने के लिए मजबूरी है.

कई बार अन्ना जानवरों को लेकर शिकायत की गई लेकिन सब हवा हवाई है. अधिकारी सर्द रातों में अपने घरों में दुबके रहते हैं. वो तो सभी जिम्मेदारी भूल गए हैं और कंबल ओढ़कर घी पी रहे हैं.
किसान रामप्रकाश

उन्होंने कहा कि, यहां किसान फसलों की रखवाली करते हुए अपनी जान दे रहे हैं, लेकिन अधिकारी सिर्फ बयानबाजी में लगे हैं.

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