आस्था के केंद्र वाराणसी (Varanasi) में आने वाले सैलानियों के लिए यहां का स्थानीय प्रशासन मनोरंजन के पूरे इंतजाम कर रहा है. हॉट एयर बैलून और क्रूज शिप के बाद अब घाट के उस पार टेंट सिटी का निर्माण हो रहा है. इस टेंट सिटी में रिवर कॉटेज के साथ रेस्तरां, बैंक्वेट हॉल, योग सेंटर, आर्ट गैलरी, क्राफ्ट बाजार सहित कई अन्य सुविधाएं होंगी.
इसके अलावा यहां पर्यटक वॉटर स्पोर्ट्स, कैमल और हॉर्स राइडिंग का मजा भी ले सकेंगे. इस टेंट सिटी में कई तरह के टेंट लगाए जाएंगे और सुविधाओं के हिसाब के किराया होगा. बताया जा रहा है कि 5 हजार से लेकर 20 हजार तक का किराया इसे तैयार करने वाली फर्में पर्यटकों से वसूलेंगी.
हालांकि टेंट सिटी के निर्माण से पर्यावरणविद और विशेषज्ञ खुश नहीं दिखाई दे रहे हैं. कई बिंदुओं पर उन्होंने टेंट सिटी निर्माण को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. लेकिन बनारस का स्थानीय प्रशासन इन सब आपत्तियों को दरकिनार करते हुए बनारस आने वाले पर्यटकों के मनोरंजन के नए-नए साधन उपलब्ध कराने का भरपूर प्रयास कर रहा है.
विशेषज्ञों की मानें तो टेंट सिटी के निर्माण से गंगा नदी के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ होगी. एक और समस्या सॉलिड वेस्ट डिस्पोजल को लेकर है. अनट्रीटेड सीवेज गंगा में सीधे प्रवाहित हो रहा है और ऐसे में घाट की दूसरी ओर टेंट सिटी के आ जाने से यह समस्या और बढ़ जाएगी.
"बनारस में जिस तरफ शहर बसा हुआ है उसे वेस्ट बैंक कहते हैं. वेस्ट बैंक में सीवेज की समस्या अभी पूरी तरीके से सुलझी नहीं है और गंगा के पानी की क्वालिटी का स्तर भी गिरता जा रहा है. जब आप वेस्ट बैंक में ही अभी तक सीवेज नहीं मैनेज कर पाए हैं तो अब दूसरी तरफ बताए जा रहे टेंट सिटी के सीवेज ट्रीटमेंट का प्लान कैसे तैयार हो जाएगा?"विश्वंभर नाथ मिश्रा, प्रोफेसर IIT, बीएचयू
टेंट सिटी के निर्माण को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा नदी के मूल स्वरूप से किसी भी तरीके से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए. घाटों पर कटान को रोकने के लिए बनारस के स्थानीय प्रशासन ने नदी के बीच नहर के निर्माण का काम शुरू किया था. तब भी विशेषज्ञों ने आपत्ति उठाई थी. वाराणसी प्रशासन ने नदी में नहर बनाने पर तकरीबन 12 करोड़ रुपए खर्च किए और अंत में यह नहर नदी में समा गई.
"अभी की जो सरकार है वह विशेषज्ञों की बात को नहीं सुनना चाहती क्योंकि हम उनके मन की बात तो करेंगे नहीं. हम उन्हें सच्चाई से अवगत कराएंगे. जब गंगा नदी में नहर का निर्माण हो रहा था तब मैंने यहां के प्रशासन से बात की थी और उन्हें बताया था कि यह संभव नहीं है. प्रशासन ने तर्क दिया था कि वेस्ट बैंक में कटान को रोकने के लिए किया जा रहा है. अंत में वही हुआ जिसका हमें अंदेशा था वह नहर खत्म हो गई"विश्वंभर नाथ मिश्रा, प्रोफेसर IIT, बीएचयू
विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा के मूल स्वरूप से अगर प्रयोग बंद नहीं हुए तो पर्यावरण से छेड़छाड़ के ठीक वैसे ही विनाशकारी परिणाम देखने को मिलेंगे जैसा कि जोशीमठ में दिखाई दे रहा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)