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रिमोट कंट्रोल से कैसे सरकार चलाते थे बाल ठाकरे?

सत्ता से बाहर रहकर भी सिंहासन के सिरमौर क्यों थे बाल ठाकरे?  

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

“बाल ठाकरे रिमोट कंट्रोल है, हां है”

ये शब्द शिवसेना की नींव रखने वाले बाल ठाकरे के हैं. बाल ठाकरे ने हमेशा ही सत्ता को बाहर से ही कंट्रोल किया था. लेकिन 28 नवंबर 2019 को इतिहास ने करवट ली और उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई.

उद्धव ठाकरे ने उसी शिवाजी पार्क में CM पद की शपथ ली जहां 1966 में शिवसेना की नींव रखी गई थी. इस पार्टी को बनाने वाले थे बाला ठाकरे.

कौन थे बाल ठाकरे?

बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को पुणे में हुआ था. वो पेशे से कार्टूनिस्ट थे. सिगार और बीयर पीने के शौकीन ठाकरे ने भाई श्रीकांत के साथ मिलकर मराठी अखबार ‘मार्मिक’ शुरू किया था.

कट्टर हिंदुत्ववादी छवि वाले बाल ठाकरे ने ‘मराठी मानुष’ का मुद्दा उठाकर शिवसेना की राजनीति चमकाई थी लेकिन खुद कभी चुनाव नहीं लड़ें थें.

वो मुंबई में दक्षिण भारतीय लोगों की उपस्थिति के खिलाफ थे.उनके खिलाफ 'पुंगी बजाओ और लुंगी हटाओ' अभियान चलाया था.

राम मंदिर आंदोलन को लेकर भी वो काफी मुखर थे. ठाकरे ने 1975 में इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी का साथ दिया था.

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बाल ठाकरे और राजनीति

1971 के नगरपालिका चुनाव में मुसलमानों के वंदे-मातरम न गाने के मुद्दे पर चुनाव लड़ा, लेकिन स्थाई समिति के अध्यक्ष के चुनाव के लिए जब समर्थन की जरूरत पड़ी तो इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का समर्थन ले लिया.

  • 1984 में बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन
  • 1988 में शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' का प्रकाशन शुरू किया
  • 1992-93 के मुंबई दंगों में शामिल होने का आरोप
  • 1995 में बीजेपी-शिवसेना ने महाराष्ट्र में मिलकर सरकार बनाई
  • केंद्र की वाजपेयी सरकार में भी शामिल रही शिवसेना
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ऐसा माना जा रहा था कि बाल ठाकरे भतीजे राज ठाकरे को विरासत सौपेंगे, लेकिन 2003 में उन्होंने बेटे उद्धव ठाकरे को उत्तराधिकारी बनाया.

2006 में राज्यसभा चुनाव के लिए एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ भी शिवसेना ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था. इसके अलावा 2007 में राष्ट्रपति के लिए UPA उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था. उन्होंने 2012 में भी कांग्रेस के बिना कहे प्रणब मुखर्जी को समर्थन दिया.

2012 में बाल ठाकरे के निधन के साथ ही महाराष्ट्र की राजनीति के एक दौर का अंत हो गया.

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