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RBI से इस्तीफा: विरल आचार्य का सरकार से किन मुद्दों पर था मतभेद?

विरल आचार्य का कार्यकाल खत्म होने में अभी 6 महीने का वक्त बचा था

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रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कार्यकाल खत्म होने के 6 महीने पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया. जुलाई के आखिर में उनकी सेवा खत्म हो रही थी. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बयान जारी कर ये जानकारी दी. इसकी अटकलें पहले से ही लगनी शुरू हो गईं थीं कि विरल ज्यादा दिन RBI में नहीं टिकेंगे? ऐसा क्यों है ये समझा रही हैं कि बिजनेस जर्नलिस्ट इरा दुग्गल

सरकार से किन मुद्दों पर मतभेद

दरअसल कई मुद्दों पर सरकार और विरल आचार्य के मतभेद थे. एक मुद्दा ये था कि आरबीआई अपने बैलेंसशीट पर कितना कैपिटल रखेगा. वो मुद्दा अब तक सुलझ नहीं पाया है. उम्मीद की जा रही ही कि इस हफ्ते तक इस मामले में कमेटी की रिपोर्ट आ जाएगी.

लेकिन इसके अलावा भी कई चीजों की वजह से विरल आचार्य और सरकार के बीच मतभेद हो गए थे. जिसमें एक था बैंकिंग रेगुलेशन. विरल आचार्य का मानना था कि सरकार को कमजोर आर्थिक हालात वाले सरकारी बैंको को खुद अपने पैर पर खड़ा होने देना चाहिए. उनको सरकारी सहायता नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया.

इस बार की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग को देखें तो विरल आचार्य ने महंगाई और फिस्कल डेफिसिट पर चिंता जताई थी.

दिसंबर 2018 में रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने भी इस्तीफा दे दिया था. उर्जित पटेल ने सरकार और आरबीआई के बीच मतभेदों को लेकर इस्तीफा दे दिया था. जाते वक्त उन्होंने कहा था कि व्यक्तिगत कारणों से वो इस्तीफा दे रहे हैं. लेकिन असली मामला ज्यादातर लोगों को पता है. सरकार और आरबीआई के बीच काफी मतभेद हैं.

विरल आचार्य का कहना था कि सरकारी कंपनियों के बैलेंसशीट पर जो इतने कर्ज हो रहे हैं उसको केंद्र के फिस्कल डेफिसिट के साथ देखना चाहिए. और तब देखना चाहिए कि सरकार फिस्कली कितनी प्रुडेंट हैं. लेकिन शक्तिकांत दास का मानना था कि दोनों चीजें अलग-अलग हैं. और मौजूदा सरकार फिस्कली प्रुडेंट है. ये ऐसा मामला नहीं है जिसमें रिजर्व बैंक को इतना परेशान होने की जरूरत है.

इन सब चीजों की वजह से विरल आचार्य आरबीआई में अकेले हो गए थे. उनकी बातों को उतना महत्व नहीं दिया जा रहा था. शायद इसी वजह से उन्होंने वापस न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी जाकर पढ़ाने का फैसला लिया है.

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