एड्स के साथ जीना कैसा लगता है? मणिपुर के प्रदीप कुमार सिंह से ये सवाल हर दूसरे दिन पूछा जाता है. एड्स से पीड़ित व्यक्ति को हमेशा बीमार और नाजुक शख्स के तौर पर देखा जाता है, लेकिन प्रदीप वैसे नहीं दिखते. उनका मजबूत शरीर और मजबूत मसल्स देख शायद ही किसी को अंदाज होगा कि उन्हें 18 साल की उम्र से एड्स है
पहले ड्रग्स, फिर एड्स
प्रदीप मणिपुर के हैं. वह बताते हैं कि बॉर्डर पार से आसानी से उपलब्ध होने वाले ड्रग्स से मणिपुर ग्रस्त है. 90 के दशक में ड्रग्स लेना यहां एक फैशन था.
'मैंने अपने शहर के ही कुछ लड़कों के साथ ड्रग्स लेना शुरू किया था. उस समय ये काफी आकर्षित करने वाली चीज थी. कुछ समय बाद मुझे ड्रग्स की लत लग गयी थी और हम लोग आपस एक दूसरे की सीरींज का इस्तेमाल करते थे.
प्रदीप को इस बात का पता कुछ समय बाद चला कि उन्हें पहले से इस्तेमाल की गयी सिरींज से ये वायरस लगा है. सन 2000 उनके एचआईवी स्टेटस की जांच गुवाहाटी में हुई. वह कहते हैं, मेरे आंसू निकल आये. मुझे लगा मेरे पास सिर्फ एक से दो हफ्ते हैं. मुझे न तो एचआईवी न ही एड्स के बारे में कुछ पता था
बिस्तर से बेंच प्रेस तक
पहले कुछ हफ्ते प्रदीप के लिए काफी मुश्किल थे. उनके दोस्तों ने उनसे मिलना बंद कर दिया सिर्फ यही नहीं एड्स की वजह से उनका वजन भी काफी कम हो गया था. वो अपने डिप्रेशन से लड़ रहे थे, डॉक्टरों ने भी उन्हें अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए और लगातार दवाई लेने को कहा. पहले प्रदीप को अपने वजन को बढ़ाने की जरूरत थी तभी उन्होंने बॉडीबिल्डिंग शुरू की. प्रदीप मणिपुर में अब एक लीजेंड के तौर पर देखे जाते हैं, लगभग सभी को उनकी दास्तान पता है. प्रदीप को इस बात की खुशी है कि वो लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं.
सच तो ये है कि मैं आम जिंदगी जी सकता हूं. हमें अपने खाने का ध्यान रखना चाहिए, अच्छे खान-पान के साथ अपनी दवाइयां टाइम से लेनी चाहिए.प्रदीप कुमार सिंह, मिस्टर वर्ल्ड, ब्रॉन्ज मेडलिस्ट (2012)
इस दौर में प्रदीप ये बताते हैं कि एड्स के साथ भी जिया जा सकता है. वो 18 साल की उम्र से इस वायरस के साथ जी रहे हैं. हालांकि वह बार-बार इस बात पर जोर नहीं देते.
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