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कोरोना संकट के बीच जिंदा रहने का संघर्ष करते रोहिंग्या शरणार्थी

वर्ल्ड रिफ्यूजी डे पर समझिए लॉकडाउन में रोहिंग्या रिफ्यूजियों के जिंदा रहने का संघर्ष

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कोरोना वायरस की मार न केवल स्वास्थ्य, बल्कि आर्थिक नजरिए से भी लोगों पर पड़ी है. ऐसी स्थिति में रोहिंग्या रिफ्यूजियों की हालत भी खराब है. परेशान होकर अपनी जगह से भागकर दूसरे देश में शरण लेने पर मजबूर रोहिंग्याओं पर इस महामारी में दोहरी मार पड़ी है.

भारत में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, इनमें भी महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद सबसे ज्यादा मार दिल्ली राज्य पर पढ़ी है.

दिल्ली के कालिंदी कुंज के इलाके में बड़ी संख्या में रोहिंग्या रहते हैं. पूरे दिल्ली में करीब 1000 की आबादी वाले इन शरणार्थियों में से कुछ लोग छोटा-मोटा बिजनेस करते हैं, तो कुछ लोग होटल में काम करने समेत कुछ मजदूरी के काम करते हैं.

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कोरोना महामारी के दौर में इनका काम रुक गया है. इसके चलते इन लोगों पर रहने-खाने की बड़ी मुसीबत आ गई है.

ऐसे में द क्विंट ने इनकी बस्तियों में जाकर वर्ल्ड रिफ्यूजी डे पर रोहिंग्याओं की समस्याएं समझने की कोशिश की. इस दौरान हमने इनमें से कुछ लोगों से बात की.

कालिंदी कुंज में रहने वाले अब्दुल्ला 2012 में भारत आए थे. वे कपड़ों की खरीद-बिक्री का काम करते थे. वे अपना डर बताते हुए कहते हैं कि रोहिंग्या कम्यूनिटी के लोग एक साथ रहते हैं, ऐसे में किसी एक को होने पर बड़ी संख्या में लोगों के संक्रमित होने का डर है.

ई रिक्शा चलाने वाले मोहम्मद अब्दुल्ला ने किस्तों पर ई रिक्शा लिया था. लॉकडाउन के चलते काम बंद होने से वे किस्त चुकाने में भी नाकाम रहे हैं. उनकी बेटी को किडनी में पथरी है. लेकिन कोरोना वायरस के चलते उसका भी ट्रीटमेंट रुका हुआ है.

जन्नातारा और जावेद को अपने मकान मालिकों की तरफ से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लॉकडाउन में काम न होने के चलते दोनों की आय बंद हो चुकी है. ऐसे में मकान मालिक किराया न देने पर घर खाली करने का दबाव बना रहे हैं.

इस रिफ्यूजी डे पर क्विंट की ग्राउंड रिपोर्ट में समझिए लॉकडाउन और कोरोना महामारी के दौर में रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्याएं.

बता दें दिल्ली सरकार की तरफ से सभी रोहिंग्या शरणार्थियों की कोरोना टेस्टिंग की गई थी. इनमें से एक भी पॉजिटिव नहीं पाया गया.

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