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बीफ, बिरयानी, पोहे से बंटवारा... योगी जी, ऐसे तो न हो पाएगा

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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

ठक-ठक... कौन है?

जी बांग्लादेशी!

बांग्लादेशी कौन?

अरे वो बांग्लादेशी जो पोहा खाता है. वही जिसको बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने पहचान लिया कि वो बांग्लादेशी है, पोहे के कारण.

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आज कल लोगों को कपड़ों से तो पहचान ही सकते हैं लेकिन अब लोगों को ये देखकर भी पहचाना जा सकता है कि वो क्या खाते हैं.

और पोहा, सादा और सेहतमंद लेकिन मजेदार और लज्जतदार.वो पोहा जो मुझे, मेरी वाइफ, मेरे बच्चों, मेरे परिवार और मेरे दोस्तों को पसंद है, जो गरीबों की जान है, अमीरों की शान है.जिसे पूरा देश पसंद करता है और शायद बांग्लादेशी भी, वो एक बेस्वाद विवाद के केंद्र में है.

सबसे मजेदार बात ये है कि जिस इंदौर से कैलाश विजयवर्गीय आते हैं, वहां पोहा बेहद पसंद किया जाता है. ये वहां का पसंदीदा नाश्ता है.

ये जो इंडिया है ना, यहां के लोग पोहा खाते हैं

कुछ और लोग हैं, जिनका दिमाग कैलाश विजयवर्गीय के दावे से इंदौरी जलेबी की तरह चक्करघिन्नी खा रहा है. ये हैं महाराष्ट्र के लोग.अरे भाई... महाराष्ट्र में लाखों लोग सुबह-सुबह पोहा खाते हैं. स्कूली बच्चे, दफ्तर जाने वाले लोग, सबलोग.

मैं बांग्लादेशी नहीं हूं, मुझे तो इंडियन एक्स्प्रेस के कौशिक दास गुप्ता का एक जबरदस्त लेख भी मिला, जिसमें गजब की रिसर्च है कि कैसे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग पोहे मशहूर हैं.

  • ओडिशा में पोहा छोटे चावल से बनता है और ओड़िया अपने पोहे में ज्यादा गाजर और अदरक का इस्तेमाल करते हैं
  • मुंबई और इंदौर के पोहे में प्याज, मूंगफली और मसाले का भरपूर तड़का होता है
  • बंगाली पोहा भी है जिसे चीरेर पुलाव कहते है. इसमें अक्सर किशमिश मिलाया जाता है.
  • गोवा वाले तो इसमें दूध, शक्कर और इलायची डालते हैं. दूधांचे फोव नाम की ये डिश दिवाली में बनाई जाती है.

लेकिन मैं क्यों इतना पोहा-पोहा कर रहा हूं? क्योंकि मुझे लगता है कि कैलाश विजयवर्गीय का पोहा पुराण यूं नहीं आया है.उन्होंने ऐसे ही नहीं बोल दिया है. ये एक सोची समझी रेसिपी है ताकि देश को हम और वो में बांटा जा सके.

वो जो वहां पोहा खा रहा है ना, वो बांग्लादेशी है.

वो हम रोटी खाने वाले शुद्ध देशी भारतीय वासियों से अलग है.

वो अलग तरह के कपड़े पहनते हैं, उनकी टोपी अलग है. उनके तो मर्द भी आंखों में काजल लगाते हैं. देशद्रोहियों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है. उनकी बोली अलग, उनका खाना अलग-बीफ, पोर्क, अंडे और अब पोहा.

तुम्हें जो समझ आए, वही पकड़ो. वो इबादत अलग तरह से करते हैं, उनके बच्चे ज्यादा पैदा होते है. वो तुम्हारी नौकरियां खा रहे हैं. वो तुम्हारा कारोबार छीन रहे हैं. वो लव जिहाद कर रहे हैं. उन्हें जानना जरूरी है, पहचानना जरूरी है. उन्हें अलग करो, उन्हें निकालो.

सही पकड़े हैं. सोची समझी साजिश के तहत हमें और उन्हें सिर्फ अलग नहीं किया जा रहा, हमें उनसे डराया भी जा रहा है. इसकी रेसिपी कुछ ऐसी है.

  1. पहचान अलग बताओ- वो पोहा खाता है, तुम नहीं
  2. अंतर का इस्तेमाल कर डर पैदा करो- वो पोहा खाता है तो तुम्हें डरना चाहिए.
  3. इस डर की आड़ में कानून बदलो- ऐसे कानून जो उस नागरिक को टारगेट करते हों, जिनसे आपको बेजा डरने के लिए कहा गया है, उनका मताधिकार छीन लो. उनकी नागरिकता छीन लो. उनका रोजगार छीन लो. उन्हें गरीबी में धकेल दो, उन्हें अलग-थलग कर दो. उन्हें डिटेंशन कैंपों में झोंक दो. दोयम दर्जे के नागरिक बना दो. जिनके पास कोई अधिकार नहीं हों.

और हां, ये सब शुरू होता है उसे सीधे-सादे पोहे वाले बयान से.वो पोहा खाते हैं, हम नहीं. लेकिन ये पोहा वाला बयान सीधा नहीं है, टेढ़ा है. अगली बार कोई कहे कि वो पोहा खाते, हम नहीं.तो सावधान रहिएगा.

और कोई ये सोचकर सुरक्षित महसूस कर रहा है कि भाई मेरे कपड़े, मेरा खान-पान, मेरा तिलक, मेरी बिंदी, मेरा सरनेम मुझे विजयवर्गीय वाली साइड का बनाते हैं तो मैं उन्हें बता दूं. हम और वो की कई कैटेगरी है-तुम्हारा भी नंबर आएगा.

क्या आप किसी प्रदर्शन में आजादी के नारे लगाते हैं? अब ये देशद्रोह है. क्या आप दूर दराज वाले बीदर के स्कूल में एंटी CAA नाटक में हिस्सा लेने वाले बच्चे हैं? ये राष्ट्रद्रोह है... मेरे नन्हें दोस्त. क्या आप शाहीन बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाली महिलाओं का समर्थन करते हैं? हां, तो आप बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर के लिए आप गद्दार हैं. और आपके लिए नारा है- “गोली मारो गद्दारों को”

लेकिन ये जो इंडिया है ना... ये विविधता और अनेकता को गले लगाता है. इसे आजादी पसंद है और हम सबको पोहा तो पक्का पसंद है.

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