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बाबा रामदेव, ऑक्सीजन के लिए तड़पते लोगों का मजाक मत बनाइये

क्या हम कोरोना से मरने वाले लोगों को बचा सकते थे, क्या हम अगले राहुल वोरा की जिंदगी बचा पाएंगे?

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वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह, शोहिनी बोस

वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम

कैमरा: अतहर राथर

“इसमें (ऑक्सीजन मास्क) कुछ भी नहीं आ रहा. अटेंडेंट आई थी, मैंने उसको बोला...कोई नहीं सुन रहा है... उनको आवाजें लगाओ.. आते ही नहीं हैं. एक-डेढ़ घंटे बाद आते हैं, तब तक मैनेज करो...”

बाबा रामदेव... आप जरा ये वीडियो देखें... ये हैं अभिनेता राहुल वोहरा.. मौत से पहले हम सब से उनकी आखिरी बात क्या कहते हैं. आप राहुल वोहरा को बाबा रामदेव...? जो आईसीयू में मुश्किल से सांस ले पा रहे हैं… चलो राहुल .. अपना ऑक्सीजन सिलेंडर इस्तेमाल करो… ??

क्या कहते हैं आप राहुल वोहरा से... क्या आप उसे डांटते... कि वो मरते-मरते नेगेटिविटी क्यों फैला रहा था?

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क्या डॉ. डिंपल अरोड़ा का भी आप मजाक उड़ाते रामदेव जी ..? 7 महीने की गर्भवती महिला .. जिनकी जान कोविड ने ले ली. अपनी मौत से कुछ ही पहले के इस वीडियो में, क्या डॉ. डिंपल भी नेगेटिविटी फैला रही थीं?

रामदेव जी ... डॉ. डिंपल जैसी हजारों मौतें .. एक भयानक असलियत है, मजाक का विषय नहीं. जिस ऑक्सीजन की कमी की वजह से राहुल वोहरा की जान गई, वो असलियत है, मजाक का विषय नहीं. एक और बार सुनिए..देखिए...

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बाबा रामदेव... जिस गंगा जी को आप, हम, पूरा देश पवित्र मानता है...उस गंगाजी की ये तस्वीरें देखी हैं...? बक्सर और गाजीपुर में 100 से ज्यादा शव तैर रहे हैं. हमीरपुर में यमुना में 25 शव और मिले हैं..क्या ये आम बात है? क्या ऐसे दृश्य रोजाना दिखते हैं रामदेव जी?

क्या मजबूरी रही होगी उन परिवारों की जिन्होंने अपने प्रियजनों के शव, गंगाजी में बिना अंतिम संस्कार के बहा दिए? जिनकी लाश नदी में तैर रही है, वो हर एक गुमनाम बॉडी एक बताती है - या तो अस्पताल की सुविधा नहीं मिली. या फिर एंबुलेंस, ऑक्सीजन सिलेंडर, या दवाएं वक्त पर नहीं मिलीं. या फिर श्मशान पर उनके अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं मिली.

लेकिन बाबा रामदेव उनका मजाक उड़ा रहे हैं. बाबा रामदेव उनका भी मजाक उड़ाते हैं, जो सरकार की खराब योजना पर सवाल उठा रहे हैं. जो 4000 लोग रोजाना भारत में मर रहे हैं, शायद वो भयानक आंकड़ा भी बाबा के लिए मजाक ही है. Amit Phansalkar @asuph ने एकदम सही ट्वीट किया है - योगा से कम से कम एक चीज नहीं हो सकती, कि वो आपको अच्छा इंसान नहीं बना सकती, ये इस बात का सबूत है.

लेकिन बाबा रामदेव अकेले नहीं हैं, जो त्रासदी से ध्यान हटाने या इसे कम दिखाने की कोशिश में हैं. 11 मई को ‘the Daily Guardian’ ने एक आर्टिकल छापा. शीर्षक - ‘’पीएम मोदी कड़ी मेहनत कर रहे हैं, विपक्ष के जाल में मत फंसिए’’.
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एक वेबसाइट जिसका नाम सुनने में इंग्लैंड के जाने-माने अखबार द गार्जियन के जैसा था. ऐसा लगा कि जिन प्रधानमंत्री की इंटरनेशनल मीडिया में काफी आलोचना हुई है, आखिरकार उनको विदेशी मीडिया से तारीफ मिल रही है. बीजेपी मिनिस्टर- अनुराग ठाकूर, किरण रिरिजू, जी किशन रेड्डी और कईयों ने इस आर्टिकल को रिट्वीट और शेयर किया.

लेकिन कुछ ही घंटो में ये बात उभर के आई कि इस आर्टिकल को किसी सुदेश वर्मा ने लिखा है... जो कि बीजेपी की नैेशनल मीडिया टीम का हिस्सा हैं. और 'डेली गार्जियन' विदेशी नहीं, बल्कि भारतीय वेबसाइट है, जिसका मालिक हरियाणा के एक नेता का बेटा है.

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यानी सरकार की नाकामियों पर पर्दा डालने की ये एक बचकानी कोशिश थी. ये दिखाने के लिए... कि सब चंगा सी. लेकिन क्या आज, जब हजारों लोग मर रहे हैं, क्या सरकार को ऐसी इमेज मैनेजमेंट में टाइम गंवाना चाहिए? आज अनुपम खेर जैसे सरकार के समर्थक कह रहे हैं- ''सरकार से कहीं न कहीं चूक हुई है. उनके लिए ये वक्त महज इमेज बनाने से ज्यादा कुछ ठोस करने का है... मेरी राय में, इस वक्त जनता को गु्स्सा जरूर आना चाहिए.'' लेकिन क्या सरकार हमारी या अनुपम खैर की बात सुन रही है... हम नहीं जानते.

आज की वास्तविकता ये है कि चाहे वो बाबा रामदेव हो या सरकार.. नागरिकों पर क्या गुजर रही है इसका एहसास किसी को नहीं है. कही ना कहीं इनमें सहानुभूति और संवेदना अब नहीं रही. नताशा नरवाल का केस देखिए - जो कि नॉर्थ ईस्ट दिल्ली की हिंसा उकसाने के लिए UAPA के तहत तिहाड़ जेल में एक साल से बंद हैं.

जब नताशा ने कोविड से जूझते हुए अपने पिता महावीर से मिलने के लिए बेल मांगी तो उसे रिजेक्ट कर दिया गया. 9 मई को अपने पिता की मौत के बाद ही नताशा को बेल मिली. पिता से मिलने की जगह, उनसे उनका पार्थिव शरीर ही मिला. ये साफ दिखाता है कि हमारा सिस्टम कितना असंवेदनशील हो गया है.
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नताशा को बेल न मिलने की वजह उसके खिलाफ हिंसा का सबूत नहीं, बल्कि UAPA का कठोर प्रावधान है. अरज की बात ये है कि एक-दूसरे FIR के तहत इन्हीं आरोपों को लेकर, सितंबर 2020 में नताशा को बेल भी मिल गई थी. तब जज ने नताशा के खिलाफ पेश किए गए सारे सबूतों और वीडियो को बेबुनियाद बताया था. लेकिन आज सिर्फ UAPA के कठोर प्रावधान की वजह से नताशा कई महीनों से जेल में ही हैं.. अपने मरते हुए पिता को आखिरी बार देखना भी उन्हें नसीब नहीं हुआ.

ये जो इंडिया है ना..यहां, दर्द और तकलीफ को महसूस करने की ये कमी.. कोरोना के खिलाफ जंग को मुश्किल बना रही है. जहां कई देशवासी सांस के लिए आईसीयू बेड पर तड़प रहे हैं. वहीं रामदेव जैसे लोग उनका मजाक बना रहे हैं...हमें मानना पड़ेगा कि हम ऐसी हर जान को बचा सकते थे. तब ही शायद हम अगले राहुल वोहरा को बचा पाएंगे..

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