ADVERTISEMENTREMOVE AD

7 कारण, जिनसे आज का युवा आंदोलन के लिए खड़ा हो सकता है

नौकरी के मुद्दे पर केंद्रित युवाओं के बीच एक राष्ट्रीय आंदोलन देखने को मिल सकता है.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

2011 के आरंभ में, जब अरविंद केजरीवाल ने ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ आंदोलन की शुरुआत की थी, तब मैंने उन्हें मिस कॉल तंत्र के माध्यम से लोगों के समर्थन दिखाने की सलाह दी थी. जिसके बाद अगले 9 महीनों में भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए अपना समर्थन देते हुए तक़रीबन 3 करोड़ लोगों ने मिस कॉल दिया था. इस आंदोलन में भागीदार बन आम जनता ने अपने अंदर के आक्रोश को जताया था.

भ्रष्टाचार मुक्त भारत के बाद एक बार फिर आज का युवा नए आंदोलन को जन्म दे सकता है, और वह है देश में बढ़ती ‘बेरोजगारी’ के खिलाफ आंदोलन. भारत के समृद्ध न बन पाने से चिंता और हताशा का माहौल है. लोग अपने नाराजगी को कई तरहों से व्यक्त कर रहें हैं. इस नए आंदोलन से एक बार फिर देश के राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यह है वह 7 कारण जिसके चलते मेरा मानना है, नौकरी के मुद्दे पर केंद्रित युवाओं के बीच एक राष्ट्रीय आंदोलन देखने को मिल सकता है:

1. बढ़ती बेरोजगारी

अगर गथ्यों पर गौर किया जाए तो, नौकरी की तलाश में लगभग 5 करोड़ युवाओं ने रोजगार कार्यालय में पंजीकरण किया है. प्रतिदिन 30,000 नए युवा नौकरी की तलाश में आते हैं, लेकिन 500 से भी कम लोगों को नौकरी मिल पाती है. यह देश की कड़वी सच्चाई है

जिस देश में हर दिन 70,000 नए युवा वोट करने योग्य हो जाते हैं, वहां 500 से भी कम नौकरियां पैदा हो रही हैं. एबीपी लोकनिति और इंडिया टुडे की ओर से हालिया राष्ट्रीय सर्वे में यह बात साफ हो गई है कि युवाओं के बीच बेरोजगारी नंबर 1 मुद्दा बन कर उभरा है.

इतना ही नहीं 77 प्रतिशत भारतीय घरों में कोई नियमित अर्जक (कमाने वाला) नहीं है. 90 प्रतिशत औपचारिक क्षेत्रों में 15,000 रुपये प्रति माह से भी कम वेतन दिया जाता है. नरेगा के तहत लोगों को 6,000 रुपये प्रतिमाह भुगतान किया जाता है.

देश में लोगों की प्रतिमाह आमदनी 6,000 रुपये से 15,000 रुपये के बीच है. जो आम जीवन जीने के लिए पर्याप्त नहीं है. साथ ही कुछ परिवारों की औसत आय सिर्फ 10,000 रुपये है. कुछ सालों पहले उम्मीद थी कि आय में बढ़ोतरी होगी, लेकिन एक बार फिर सिर्फ निराशा ही हाथ लगी. लोग त्रस्त हैं – जल्द ही ज्वालामुखी की तरह विस्फोटक आंदोलन का इंतजार है.

2. ग्रामीण संकट

ग्रामीण संकट दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है. पहले रोजगार की तलाश में युवा पीढ़ी गांव से शहर की ओर पलायन कर रहे थे. लेकिन पिछले कुछ सालों में वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी है. निवेश की कमी और मंदी के कारण, निजी क्षेत्र नौकरियां देने में सक्षम नहीं है. रीयल स्टेट जो आमतौर पर हमेशा नौकरियां पाने का केन्द्र माना जाता था –वर्तमान में यह सेक्टर नोटबंदी,रेरा और जीएसटी का मारा है. ग्रामीण क्षेत्र के लोग इसमें फसें हुए हैं.

3. सरकारी नौकरियों में आरक्षण समाधान नहीं

पिछले कुछ सालों में सरकारी नौकरियों में आरक्षण की बढ़ती मांग भी इस निराशा का एक कारण है. लेकिन यह इसका समाधान नहीं है. 100 प्रतिशत आरक्षण भी इस समस्या को हल नहीं कर सकती. सरकारी नौकरियां कम है, लेकिन इसकी मांग ज्यादा. ग्रामीण युवाओं के लिए उनका भविष्य अंधकार में है. या वे एक गांव में रह अपने जीवनयापन के लिए अंशकालिक नौकरी करें या इस विचार में रहे कि स्मार्ट फोन से ही दुनिया में बदलाव आ सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

4. असफल शिक्षा प्रणाली

किसी भी देश के लिए उस देश के युवा संपत्ति के समान हैं, जो देश के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं. भारतीय जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा युवाओं का है- लेकिन हम इसका लाभ उठाने में सक्षम नहीं हैं. इसका मुख्य कारण है हमारी असफल शिक्षा प्रणाली. हमारी शिक्षा प्रणाली अयोग्य शिक्षितों को जन्म देती है, जिससे उनकी आकांक्षाएं टूट जाती है और उनका मोहभंग होने लगता है.

5. संरचनात्मक सुधारों में कमी

सरकार रोजगार पैदा करने के लिए जरुरी संरचनात्मक सुधारों में असफल रही है. गारमेंट सेक्टर की बात करें तो चीन में इस सेक्टर में रोजगार के कई अवसर थे, लेकिन यह सभी अवसर भारत न आकर वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों में चले गए. चीन को आज से 30 साल पहले एक दूसरे चीन की जरूरत है. भारत इस अवसर का फायदा उठा सकता था, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो न सका.

6. ऑटोमेशन का बढ़ता प्रभाव

निजी क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन के कारण भी रोजगार में कमी आई है. कंपनियां रोबोट और सोफ्टवेयर में निवेश कर वह काम करा रहे हैं, जो आम आदमी कर सकता है. आने वाले समय में इन मशीनों का उपयोग और तेज गति से हो सकता है. भारत ने यदि युवाओं के संज्ञानात्मक और रचनात्मक गुणों में बेहतरीन शिक्षा प्रणाली से बदलाव नहीं लाया तो बदलते समय के साथ कई कठिनाइयां आ सकती है.

7. युवाओं में राजनीति की बढ़ती समझ

राजनीति में समझ रखने वाले युवाओं की संख्या भारत में बढ़ी है. विशेषकर गुजरात चुनाव के समय कई आंदोलन देखने को मिले. आज के युवा नेता स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के माध्यम से परपंरागत रुप से कार्य कर रहीं पार्टियां को चुनौती दे रहे हैं. देश में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं. आज के युवाओं को एक ऐसे राजनीतिक मंच की जरूरत है, जो रोजगार को महत्व दें.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘राम जन्मभूमि’ और ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ दो ऐसे आंदोलन हैं, जिन्‍होंने पूरे भारतीयों का ध्यान अपनी और केंद्रित किया. जैसा कि हम सब जानते हैं, देश में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं तथा लोगों में उत्साह भी अधिक है. जिससे उम्मीद है, जल्द ही देश में एक नया आंदोलन देखने मिल सकता है. पिछले कुछ समय में लोगों को इस बात का अहसास हुआ कि सिर्फ आक्रोश दिखाने और धरना प्रदर्शन करने से सरकारी कार्यप्रणाली में बदलाव नहीं आ सकता. निर्वाचन सक्रियता के बिना, उनकी आकांक्षाएं और समृद्ध भविष्य एक दूर का सपना बनकर रह जाएगा.

यदि देश के बेरोजगार युवा घर न बैठकर घर से बाहर निकलने की कोशिश करेंगे तो, पिछले दो राष्ट्रीय आंदोलनों की तरह इस बार भी राजनीतिक समीकरणों में जरूर बदलाव आएंगे. राजनीति में हमें कई बार आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिलते हैं. देश के हर गांव और शहरों में अचानक से उभरे इस आंदोलन’से क्या आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिल सकते हैं ?

(राजेश जैन 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं. टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर राजेश अब 'नई दिशा' के जरिए नई मुहिम चला रहे हैं. ये आलेख मूल रूप से NAYI DISHA पर प्रकाशित हुआ है. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति जरूरी नहीं है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×