पिछले साल 18 सितंबर की सुबह 4 आतंकी उरी के ब्रिगेड हेडक्वॉर्टर के अंदर घुस आए थे, जिनके हमले में आर्मी के 20 जवानों की मौत हो गई थी. आतंकी पहले भी ऐसे हमले करते रहे हैं. लेकिन उरी वाली घटना ऐसे समय में हुई थी, जब हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद कश्मीर में अशांति काफी बढ़ी हुई थी. वानी को पिछले साल 8 जुलाई को सुरक्षाबलों ने मार गिराया था.
डिफेंस रिफॉर्म में देरी नहीं करनी चाहिए
उरी हमले के बाद वे कौन से कदम उठाए जाने चाहिए थे, जिनसे ऐसी घटनाएं दोबारा न हों. घटना के साल भर बाद भी क्या हम उन कमियों को दूर कर पाए हैं? इस तरह का विश्लेषण हमेशा व्यापक होना चाहिए और यह टेक्टिकल, ऑपरेशनल और स्ट्रैटेजिक लेवल पर किया जाना चाहिए. जब भारतीय सेना के किसी ठिकाने या हमारे सैन्यकर्मियों को निशाना बनाया जाता है, तो इससे दुश्मनों के समर्थन से पलने वाली ताकतों को शेखी बघारने का मौका मिलता है.
उरी मामले पर लेफ्टिनेंट जनरल फ्लिप कैम्पोज की रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने पर विचार किया जा रहा है. हालांकि, जिन फिजिकल सिक्योरिटी उपायों की सिफारिश की गई है, उन्हें लागू करना आसान नहीं है, क्योंकि छोटे से छोटे प्रोजेक्ट में ब्यूरोक्रेसी अड़ंगा लगाती रहती है.
इस तरह के प्रोजेक्ट पर अमल को लेकर सर्विस हेडक्वॉर्टर की ताकत हाल ही में बढ़ाई गई है. लेकिन सच तो यह है कि 1999 में पहली बार कथित फिदायीन हमले के बाद सैकड़ों ऐसे प्रोजेक्ट लागू नहीं किए जा सके हैं.
यह समझना चाहिए कि नियंत्रण रेखा से घुसपैठ या सीमापार से आने वाले आतंकवादियों से देश के अंदरूनी इलाके के संवेदनशील ठिकानों पर हमले को रोकने की गारंटी कोई भी सरकार या सुरक्षा तंत्र नहीं दे सकता. लेकिन पुरानी घटनाओं से सबक सीखते हुए देश के सुरक्षातंत्र को मजबूत करना जरूरी है.
क्या ऐसा हो रहा है?
अफसोस की बात है कि भारत में ऐसा नहीं हो रहा है. जिन लोगों पर इसकी जिम्मेदारी है, वे अपने हित साधने में लगे रहते हैं. हालांकि, सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के कुछ मामलों में सुरक्षाबलों के अधिकार बढ़ाए हैं, जिसका स्वागत होना चाहिए. 2001 में ऐसी पहल पहली बार हुई थी. इसे आगे भी जारी रखा जाना चाहिए. इस बारे में मैं कहना चाहता हूं कि कारगिल रिव्यू कमेटी की जो सिफारिशें लागू नहीं हुई हैं, उन्हें लागू किया जाना चाहिए. वहीं, उसके बाद बने मंत्रिसमूहों ने जो रिपोर्ट दी थी, उसकी नए मंत्रिसमूह के जरिए समीक्षा कराई जानी चाहिए.
सीजफायर के उल्लंघन का जवाब
सरकार और सुरक्षाबलों ने कश्मीर घाटी में आतंकवादी हिंसा को रोकने में काफी हद तक सफलता पाई है. हालांकि, पड़ोसी देश की गोलाबारी के चलते सीमा पर जितनी लोगों की जान जा रही है, उससे खराब ट्रेनिंग और कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी खामियां का पता चलता है. इसलिए पाकिस्तान आर्मी की गोलाबारी से हमें गंभीर नुकसान उठाना पड़ रहा है.
गृहमंत्री राजनाथ सिंह हाल में सीमा पर गए थे. वहां लोगों ने उनसे कम्युनिटी बंकर की मांग की. 2002 में भी ऐसी ही मांग उठी थी. ऐसे बंकर प्राथमिकता के आधार पर उन सभी इलाकों में बनाए जाने चाहिए, जहां सीमापार गोलाबारी से लोगों की जान को खतरा है.
उरी जैसे हमलों का जवाब
उरी मामले के 10 दिनों के अंदर सर्जिकल स्ट्राइक करके सेना ने आतंकियों को सबक सिखाया था, लेकिन पाकिस्तान आर्मी के समर्थन से होने वाली ऐसी हर घटना का यह स्वाभाविक हल नहीं हो सकता.
सरकार और सेना में इस तरह से हमले और उसके बाद के हालात से निपटने के लिए कहीं प्रैक्टिकल अप्रोच पर सहमति बनती दिख रही है. कई लोग शायद इससे सहमत न हों, लेकिन सीमापार सर्जिकल स्ट्राइक से सेना का आत्मविश्वास काफी बढ़ता है.
मैं तो यह भी कहूंगा कि सर्जिकल स्ट्राइक से सेना के आत्मविश्वास में जो बढ़ोतरी हुई, उसी वजह से उसने डोकलाम विवाद में सरकार को चीन के दबाव का सामना करने को लेकर सही सलाह दी.
एक यूनिट के तौर पर काम करना
पाकिस्तानी मीडिया में आई रिपोर्ट और खबरों को देखकर लगता है कि भारत ने जिस तरह से डोकलाम मामले को हैंडल किया, उससे वहां के सुरक्षा विशेषज्ञ हैरान हैं. डोकलाम मामले में हमारे राजनीतिक, सैन्य और राजनयिक अंगों ने मिलकर काम किया. जब भी ऐसा होगा, हमारी जीत पक्की है. उरी हमले के साल भर बाद ऐसे मामलों से निपटने की हमारी क्षमता भले ही पूरी तरह न बदली हो, लेकिन हमारी क्षमता बेशक बेहतर हुई है.
(लेखक आर्मी की 15वीं कॉर्प के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) रह चुके हैं. ये विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन से जुड़े हैं. आप इनसे ट्विटर पर @atahasnain53 से जुड़ सकते हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार इनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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