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Project Cheetah: कुनो के ग्राउंड जीरो पर अफ्रीकी चीतों के लिए क्या है तैयारी?

मैं ये देखने के लिए कुनोंं पहुंची कि इस काम की देखरेख करने वाले वन अधिकारियों और वैज्ञानिकों का मूड क्या है?

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(रिपोर्टर अगस्त 2022 में कुनो गईं थीं. ये ब्लॉग उनकी उसी यात्रा से है.)

कुनो मॉनसून की बारिश में काफी खूबसूरत लग रहा है. जैसे-जैसे हम अपने रास्ते में आगे बढ़ते जाते हैं, कॉमन ग्रास पीली तितलियों का एक झुंड मिट्टी से उठता है और कॉन्फेटी की तरह गिर जाता है.

अब से ठीक एक महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश की वाइल्डलाइप सेंचुरी में अफ्रीकी चीतों के स्वागत के लिए पहुंचेंगे, जिसके लिए उनकी सुरक्षा टीम की ओर से पार्क को सील किया जा रहा है. यहां पहुंचने में दो दिन का समय लगा है, लेकिन पार्क शानदार है.

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टूरिज्म के लिए लाए जा रहे चीते?

कुछ लोग कहते हैं कि चीतों के अफ्रीका से आने के बाद सबसे बड़ी संरक्षण कहानी कुनो में चलेगी. दूसरों का कहना है कि ये एक महिमांडन वाले सफारी पार्क से ज्यादा कुछ नहीं होगा. मैं अगस्त में दिल्ली से ये देखने के लिए निकली थी कि किस तरह की तैयारी चल रही है, इस काम की देखरेख करने वाले वन अधिकारियों और वैज्ञानिकों का मूड क्या है और जिन समुदायों को पहले नेशनल पार्क से बाहर निकाला गया था, वो इस बड़े सेलिब्रेशन के बारे में क्या सोचते हैं.

करीब 12 घंटे तक ड्राइव करने के बाद, हम पार्क के नजदीकी शहर में पहुंचे. हमें अभी भी नेशनल पार्क तक पहुंचने में कुछ घंटे लगने बाकी थे, लेकिन हम थक चुके थे. इसलिए हमने यहीं रात बिताने का फैसला किया.

क्योंकि कुनो वाइल्डलाइफ टूरिज्म के मैप पर कोई फेमस पार्क नहीं है, इसलिए यहां 'जंगलों में ब्रेकफास्ट' देने वाले रिसॉर्ट नहीं हैं, और न ही यहां अभी चीता-शेर के प्रिंट वाली टीशर्ट पहुंची हैं.

मिशन चीता को मीडिया से मिली ठंडी प्रतिक्रिया

एक रिसॉर्ट है जो ग्वालियर से आए स्थानीय टूरिस्ट को होस्ट कर रहा है. पूल के किनारे तेज म्यूजिक बज रहा है, और बीयर की बोतलों के साथ अंडरवियर में मर्द किसी 'रेनफॉरेस्ट शॉवर' का मजा ले रहे हैं. उन्हें देखकर लगता नहीं कि उन्हें यहां आ रहे अफ्रीकी चीतों की कोई जानकारी है.

मैं चुपचाप अपने कमरे में घुस जाती हूं. आखिरकार, मैं अपने 'मिशन चीता' पर हूं.
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इतने उत्साह के बावजूद, यहां कोई नहीं है जो इस बड़ी खबर को रिपोर्ट करने के लिए आया हो. यहां भोपाल से कुछ स्थानीय प्रेस आई थी, लेकिन ये चौंकाने वाला था कि नेशनल मीडिया से यहां कोई नहीं आया था. उधर दिल्ली में, वॉट्सऐप ग्रुप से लेकर फेसबुक चैट्स तक में वाद-विवाद चल रहा था. कुछ इसे एक बड़ी उपलब्धि बता रहे थे, तो कुछ का कहना था कि ये एक आपदा होने वाली है.

मैं ये देखने के लिए कुनोंं पहुंची कि इस काम की देखरेख करने वाले वन अधिकारियों और वैज्ञानिकों का मूड क्या है?

कुनो नेशनल पार्क

(फोटो: बहार दत्त)

जैसे ही मैं इस रिसॉर्ट की भीनी रोशनी में अपने नोट्स बनाने के लिए बैठती हूं, मुझे एक वन अधिकारी मिल जाता है. मुझे बताया जाता है कि मैं पार्क में जा सकती हूं, लेकिन केवल एक प्वाइंट तक. ये मेरे लिए काफी होगा.

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रात में जब मैं अगले दिन नेशनल पार्क में जाने के लिए अपना प्लान बना रही थी, एक तेज आवाज से मेरा ध्यान भटक जाता है. फोन बजता है और रिसॉर्ट का मैनेजर बताता है कि पार्टी कर रहे लोगों में से एक को पार्किंग में मेरी कार नहीं दिखी, और उसने उसमें रिवर्स कर दिया.

मैं अपनी स्टोरी और मिशन पर फोकस रहना चाहती हूं, लेकिन अचानक से मध्य प्रदेश के इस ग्रामीण इलाके में मैं अनजान लोगों से बहस कर रही हूं. मेरी गाड़ी की रियर लाइट टूट गई है और डेंट पड़ गया है.

मामला सुलझाने के लिए पुलिस आती है. मैं इस बात को अच्छे से जानती हूं कि अंधेरे में इस पार्किंग लॉट में 8 मर्दों से बहस करना एक महिला के लिए खतरा साबित हो सकता है. इतना ही कहना है कि बहस देर रात तक चली. फिर अपनी स्टोरी पर फोकस रहने के लिए, मैंने उन्हें माफी मांगने के बाद जाने दिया.

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मेहमानों के लिए पूरे इंतजाम

अगली सुबह, मुझे नदी और चिड़ियों की चहचहाने की आवाज सुनाई देती है. जंगल में जाने की खुशी पिछली रात की खराब यादें मिटा देती है.

50 किलोमीटर का सफर और आखिरकार हम पार्क के अंदर हैं. हमें बड़े-बडे़ बाडे़ दिखते हैं, जहां चीतों को रखा जाएगा और हर दो कीलोमीटर पर टावर बनाए गए हैं, जहां से वन विभाग इन चीतों पर नजर रखेगा.

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इसी बीच एक नीलगाय पेड़ों के बीच से गुजरती है, हम कुछ हिरणों को भी देखते हैं और एक सियार भी दिखता है. इन चीतों का भोजन बनाने के लिए कुछ चीतलों को भी दूसरे नेशनल पार्क से लाया गया है. वैज्ञानिकों को चिंता है कि क्या चीते इन जानवरों का शिकार करेंगे, क्योंकि ये प्रजातियां अफ्रीका में नहीं मिलतीं.

हम टावरों पर चढ़ते हैं. वन अधिकारी अभी तक मददगार रहे हैं, लेकिन को भी हमसे कैमरे पर बात करने को तैयार नहीं है. एक सीनियर अधिकारी कहता है, "आपको मामले की सेंसटिविटी को समझना चाहिए. मैं बस यही कह सकता हूं कि कुनो चीताओं के लिए तैयार है."

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प्रोजेक्ट चीता से शेरों की संख्या पर पर्दा डाला जा रहा

वापस दिल्ली में, मुझे बताया जाता है कि कांग्रेस पार्टी इस चीता प्रोजेक्ट का पूरा क्रेडिट लेना चाहती है. उनका कहना है कि इस प्लान की शुरुआत उन्होंने ही की थी. बीजेपी का दावा है कि वो असल में प्लान को अमल में वो ला रहे हैं. इस पूरी बहस में, इस मूल मुद्दे से भटका जा रहा है कि कुनो नेशनल पार्क को असल में एशियाई शेरों के दूसरे घर के रूप में तैयार किया गया था. अगर कोई भी पार्टी प्रोजेक्ट चीता के लिए क्रेडिट लेना चाहती है, तो उसे एशियाई शेरों को नजरअंदाज करने की आलोचना भी झेलनी होगी.

मैं ये देखने के लिए कुनोंं पहुंची कि इस काम की देखरेख करने वाले वन अधिकारियों और वैज्ञानिकों का मूड क्या है?

एशियाई शेर

(फोटो: बहार दत्त)

अगले दिन, मैं ये जानने के लिए एक लोकल सहारिया आदिवासियों के गांव में जाती हूं कि चीताओं के आगमन से वो कैसा महसूस कर रहे हैं. मैं अतपाल से मिली, जिनका जन्म नेशनल पार्क के अंदर हुआ था, और जिन्हें वहां घर छोड़ने के लिए सरकार से खेती की जमीन के साथ-साथ आर्थिक मुआवजा भी मिला था.

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वो थोड़े कंफ्यूज होकर मुझसे पूछते हैं, "हमें कहा गया था कि हमें शेरों के लिए अपना घर छोड़ना होगा. उन्होंने चीता लाने का फैसला कब किया?"

इसी बीच, मुझे एक मैसेज मिलता है- चीता के आगमन के बारे में बच्चों को जानकारी देने के लिए वन विभाग पूरे देश में शुरू कर रहा है.

(लेखिका कंजरवेशन बायोलॉजिस्ट हैं और अवॉर्ड विनिंग एनवायरनमेंट जर्नलिस्ट हैं. ये आर्टिकल एक ओपीनियन पीस है और इसमें लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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