ADVERTISEMENTREMOVE AD

अग्निपथ का कड़वा सच:24 साल बाद 14 लाख की जगह बचेंगे सिर्फ 1 लाख पेंशनधारी सैनिक

Agnipath recruitment scheme: नौजवानों में गुस्से की 10 वजह

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

अग्निपथ योजना का हश्र भी तीन कृषि कानून की तरह होने वाला लगता है. तब किसानों को सरकार फायदे नहीं समझा पायी थी. अब नौजवानों को फायदे नहीं समझा पा रही है. नौजवान गुस्से में हैं. प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुके हैं. गुस्से की आग फैलती चली जा रही है. यह समझना बहुत जरूरी है कि आखिर ये नौजवान गुस्से में क्यों हैं और क्यों नहीं सेना में भर्ती की सरकारी नीति को उनके हिसाब से समझ पा रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या सेना को पेंशन से दूर करने का रास्ता है अग्निपथ?

अग्निपथ योजना में हर साल 50 हजार सेना की भर्ती और चार साल पूरे होने के बाद पांचवें साल से 12.5 हजार जवानों को नियमित करने और 37.5 हजार जवानों को सेवा से बाहर करने की प्रक्रिया शुरू होगी. यह मानकर कि भर्ती प्रक्रिया 2022 से शुरू हो रही है गणित लगाएं तो पांचवें साल में 2026 तक 2.5 लाख नियुक्तियां हो चुकी होंगी.

उसके आगे 8वें साल 2029 तक 4 लाख भर्तियां हो चुकी होंगी जिनमें से 50 हजार नियमित हो चुके होंगे. जबकि, डेढ़ लाख पूर्व सैनिक का तमगा लगा चुके होंगे.

2022 से आगे 12वें साल यानी 2033 तक 6 लाख जवानों की भर्तियां हो चुकी होंगी. एक लाख जवान नियमित हो चुके होंगे और 3 लाख जवान सेना से बाहर. 16वें साल तक 8 लाख जवानों की भर्ती, नियमितिकरण 2 लाख और सेवा से बाहर होने वाले जवानों की तादाद 4.5 लाख होगी. इसी तरह 24वें साल यानी 2045 तक 12 लाख भर्तियों के मुकाबले 4 लाख नियमित हो चुके होंगे और 7.5 लाख सेना से बाहर.

Agnipath recruitment scheme: नौजवानों में गुस्से की 10 वजह

2022 से आगे 12वें साल यानी 2033 तक 6 लाख जवानों की भर्तियां हो चुकी होंगी.

भारतीय सशस्त्र बलों में हर साल औसतन 60 हजार सैनिक रिटायर हो रहे हैं.

Agnipath recruitment scheme: नौजवानों में गुस्से की 10 वजह

12 लाख भर्तियों के मुकाबले 4 लाख नियमित हो चुके होंगे और 7.5 लाख सेना से बाहर.

(फोटो: क्विंट)

0
भारतीय सशस्त्र बलों में हर साल औसतन 60 हजार सैनिक रिटायर हो रहे हैं. इसका मतलब यह है कि इसी गति से 24 सालों में 14 लाख 40 हजार सैनिक रिटायर हो चुके होंगे. यही आज पेंशनधारियों की संख्या है. यह संख्या इसलिए महत्वपूर्ण है कि 2022 में सशस्त्र सैन्य बल की तादाद लगभग यही है. इसका मतलब यह हुआ कि आज जो नियमित सैनिक हैं वे 2045 तक रिटायर हो चुके होंगे. इस तरह पेंशनधारी वर्ग खत्म हो चुका होगा.

अगले 24 सालों में 12 लाख भर्तियों के बीच नियमित हुए 4 लाख सैनिक ही पेंशनधारक होंगे. इनमें से भी 3 लाख सैनिकों की 20 साल की सेवा तब तक पूरी हो चुकी होगी. यानी सही मायने में 1 लाख सैनिक ही पेंशनभोगी रह जाएंगे.

सेना युवा होगी मगर गुणवत्ता क्या बचेगी?

सवाल उठ रहे हैं कि मोदी सरकार ने सेना जैसे संवेदनशील विषय पर ऐसे कदम क्यों उठाए? सरकार की ओर से बताया जा रहा है कि इस कदम से सेना और अधिक युवा होगी. सेना की औसत उम्र घटेगी. मगर, पूर्व सैन्य अधिकारी यह सवाल उठा रहे हैं कि महज चार साल में युवाओं को कैसे और कितना प्रशिक्षित कर लिया जाएगा कि सेना की गुणवत्ता में सुधार हो जाएगा. मतलब यह कि सेना का सिर्फ युवा होना जरूरी नहीं है उसका उचित रूप से प्रशिक्षित होने के बाद गुणवत्तायुक्त होना भी जरूरी है.

अग्निपथ योजना से 24 साल में कुल 7.5 लाख पूर्व सैनिक ऐसे होंगे जिनके पास चार साल का सैन्य प्रशिक्षण होगा. यह प्रशिक्षित वर्ग सेना से बाहर रहकर किस रूप में रोजगार या स्वरोजगार से जुड़ेगे- यह चिंता का विषय है. अगर इनके लिए अनुकूल स्थिति नहीं बनी तो अपनी जीविका के लिए परेशान होकर ये पूर्व सैनिक कौन सा कदम उठा लें-यह भी चिंता की बात होगी.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

भावी सैनिकों को राज्य सरकार दे रही दिलासा

नौजवानों में गुस्सा उन राज्यों में ज्यादा है जहां से सेना में भागीदारी के लिए सालों साल युवक मैदान की परिधि मिनटों में मापते रहते हैं, पसीने बहाते रहते हैं और एक उम्मीद रहती है कि एक दिन वे भारतीय सैन्य बल का हिस्सा बनकर न सिर्फ अपना करियर संभालेंगे बल्कि देश के लिए भी अपने जज्बे के हिसाब से काम आएंगे. बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान जैसे राज्यों में फैली हिंसा इसके सबूत हैं.

हरियाणा में बीजेपी की खट्टर सरकार ने नौजवानों को भरोसा दिलाया है कि चार साल बाद जिन्हें सेना में नियमित नहीं किया जाएगा या फिर कहें कि सेना से अयोग्य मानकर निकाल दिया जाएगा, उन्हें सरकारी नौकरी में वे वरीयता देंगे. ऐसा ही भरोसा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी दिलाया है.

सवाल उठता है कि अपने-अपने प्रांत के पूर्व सैनिकों को प्रांतीय सरकारें क्यों संभालें? जब देश के लिए नौकरी करने चले हैं तो देश उनकी जिम्मेदारी क्यों न ले? 20 साल तक सेवा कर सकने की क्षमता के बावजूद क्यों महज चार साल में ही नौजवान देश की सेवा से बाहर कर दिए जाएं? आखिर ऐसी स्थिति बनायी ही क्यों गयी है कि सेना हाथ खड़ी कर लें और पूर्व सैनिकों को प्रांतीय सरकारें संभालने का काम करें?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नौजवानों में गुस्से की 10 वजह

सेना में छीने जा रहे हैं अवसर- नौजवान इसलिए नाराज हैं कि सेना में भर्ती होने का उनसे अवसर छीना जा रहा है. इसे ऐसे समझें कि लोकसभा में केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक 2017,2018 और 2019 तक 1.65 लाख भर्तियां सशस्त्र बलों में हुई थीं यानी औसतन 55 हजार भर्ती सालाना होती रही. इसे घटाकर 45 से 50 हजार कर दिया गया है.

तीन साल से की जा रही तैयारी बेकार

2020, 2021 और 2022 में कोई भर्ती नहीं हुई है. अगर होती तो 1.65 लाख भर्ती और जुड़ गयी होती. इस दौर में तैयारी कर रहे लाखों जवानों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

4 साल बाद पूर्व सैनिक बन जाने का खतरा

सेना की तैयारी कर रहे सभी नौजवानों की चिंता यही है कि क्या वे महज चार साल की नौकरी के लिए तैयारी कर रहे हैं? नियमित नहीं हुए तो आगे क्या होगा?

अनिश्चित रहेंगे अग्निवीर

सेना में भर्ती होने के बाद भी सेवा अनिश्चित रहना जवानों के गुस्से की आग में घी डालने का काम कर रहा है. उन्हें चार साल तक पता नहीं होगा कि उनकी सेवा आगे जारी रहेगी या नहीं.

चार साल बाद दोबारा टेस्ट से गुजरने की मजबूरी

चार साल बाद सेना में भर्ती किए गये सारे नौजवानों को टेस्ट से गुजरना होगा. यह बात उन्हें बेचैन कर रही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सेना की नौकरी का क्रेज गिरा

चार में से तीन नौजवानों का चार साल बाद टेस्ट में फेल होना निश्चित है. ऐसे में सेना में नौकरी को लेकर नौजवानों में जो क्रेज रहा है उस पर पानी फिर गया है.

सम्मान में कमी की चिंता

सेना में नौकरी पाने के बाद जो सम्मान रहता रहा है वो उन्हें नहीं मिलेगा. चार साल तक तो कतई नहीं क्योंकि उन्हें सेना का स्थायी हिस्सा भी नहीं समझा जाएगा. पास-पड़ोस के लोग समझेंगे कि चार साल बाद इनकी हालत होगी- लौट के बुद्धू घर को आए.

सीनियरों के मोहताज हो जाएंगे जवान

सेना में नौकरी बचाने के लिए नौजवानों को अपने सीनियरों का मोहताज रहना होगा. उनकी पसंद वाले नौजवान ही खुशनसीब एक चौथाई समूह में आ सकेंगे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चार साल बाद मिलने वाली एकमुश्त राशि भी कम

नौजवान चार साल तक अपने हिस्से से काटे गये वेतन और सरकार की ओर से जोड़कर दी जाने वाली उतनी ही रकम मिलाकर जमा हुई 10.04 लाख और फिर सूद समेत 11.7 लाख की रकम को पैकेज मानकर खुश होने को तैयार नहीं हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अग्निवीर की जान सस्ती क्यों?

सेवा के दौरान मौत होने पर 44 लाख का मुआवजा नियमित सैनिकों के मुकाबले काफी कम है. आखिर सैनिक होकर ही अग्निवीर भी जान देंगे. फिर सैनिक-सैनिक में वीरगति के बाद मुआवजे में फर्क क्यों? यही सवाल अपंगता के मामले में भी है.

कहा जा रहा है कि अग्निपथ योजना का मूल मकसद सेना को युवा बनाने के अलावा रक्षा खर्च में पेंशन के बड़े भाग को कम करना है. अग्निपथ योजना में नियुक्ति प्रक्रिया को इस तरह नियंत्रित रखा गया है कि पेंशनधारी सैनिक रिटायर होते चले जाएं और नियुक्ति प्रक्रिया से बहुत कम पेंशनधारी सैनिक सेवा में आएं.

मात्रात्मक रूप से सेना की संख्या घटे नहीं, इसके लिए हर साल 45 से 50 हजार सैनिकों की नियुक्ति की जाती रहे. तीन चौथाई को हर चौथे साल सेवा से बाहर किया जाता रहे. आइए इस पूरी प्रक्रिया को समझते हैं.

अग्निपथ योजना से अग्निवीर तो तब बनेंगे जब यह योजना शुरू होगी. मगर, इससे पहले ही नौजवानों ने जिस तरीके से प्रतिक्रिया दी है वह गंभीर है. अगर किसानों की तरह सेना में सेवा देने की ललक रखने वाले नौजवानों को भी सरकार समझा नहीं पाती है तो क्या एक बार फिर देशहित में मोदी सरकार अपने ही फैसले को वापस लेने की घोषणा करने को बाध्य नहीं हो जाएगी?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×