ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेंबर्स के लिए
lock close icon

फ्रांस के बाद कोलंबिया ने दी सीख, युवाओं के गुस्से को कम न आंके निजाम

Agnipath Protest: भारत, कोलंबिया, फ्रांस.... हर देश का निजाम याद रखे- जनता के सामने विकल्प हर जगह होते हैं

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

अग्निपथ के विरोध (Agnipath Protest) में जब नौजवान सड़कों पर उतरे तो हरिवंश राय बच्चन की मशहूर कविता याद आ गयी- युग का जुआ. इस समय भी युग का जुआ नौजवानों के कंधों पर पड़ा है. वह अपने दौर में बदलाव का बीड़ा उठाए हैं. सत्ता से, उसकी नीतियों से उसका विरोध साफ है. यह विरोध सरकारों को झुकाता है, कई बार सरकारों को बदलता भी है. ऐसा ही एक बदलाव बीते दिनों लैटिन अमेरिका के देश कोलंबिया में हुआ है. वहां लेफ्टिस्ट गुस्ताव पेट्रो राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं. इसमें दिलचस्प यह है कि उनके 68% से ज्यादा समर्थक 18 से 24 साल की उम्र वाले हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सत्ता नौजवानों ने ही बदली है

नौजवानों ने ही कोलंबिया में सत्ता बदली है. कोलंबिया जैसे राजनीतिक रूप से सबसे कंजरवेटिव देश में पहली बार कोई वामपंथी रुझान वाला शख्स राष्ट्रपति बना है. पिछले कई दशकों से कोलंबिया में लेफ्ट हाशिए पर चला गया था क्योंकि उनके लिए यह धारणा बन गई थी कि वे गुरिल्ला ग्रुप्स के साथ जुड़े हुए हैं. और ये गुरिल्ला ग्रुप्स सरकार के साथ दो-दो हाथ होते रहते हैं.

अक्सर देश में हिंसक संघर्ष होते रहते थे. इसीलिए लेफ्टिस्ट विचारधारा को राजनैतिक वैधता मिलनी मुश्किल हो गई थी. 2016 में मार्क्सवादी-लेफ्टिस्ट गुरिल्ला ग्रुप एफएआरसी के साथ शांति समझौते के बाद से राजनीति में लेफ्ट के लिए जगह बनी. पेट्रो खुद भी कभी गुरिल्ला ग्रुप के सदस्य हुआ करते थे.

हां, पिछले कुछ सालों से लोग मौजूदा राजनैतिक व्यवस्था से तंग आ गए थे. पिछले साल अप्रैल में कई व्यवस्था विरोधी आंदोलन हुए- भ्रष्टाचार, आर्थिक निष्क्रियता, महामारी के दौरान टैक्सेशन बढ़ने, नए हेल्थ केयर सुधारों के खिलाफ.

पूर्व राष्ट्रपति ईवान मार्केज की बहुत आलोचना हुई कि महामारी के दौरान जब बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां गईं तो उन्होंने टैक्स बढ़ा दिए. देश का आर्थिक घाटा बढ़ रहा है. फिर स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण करने के लिए बिल 010 लाया गया जिससे लोगों में गुस्सा और बढ़ा. बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए तो चार दिनों के बाद यह बिल वापस ले लिया गया.

0

एक बात और. कोलंबिया में एक चौथाई मतदाता 28 साल और उससे कम उम्र के हैं. चूंकि बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी और गैर बराबरी का सबसे ज्यादा नुकसान युवाओं को होता है तो उनका गुस्सा नेताओं को जमीन पर पटकने के लिए काफी होता है. कोलंबिया में यही हुआ.

मार्केटिंग और रिसर्च कंसल्टिंग फर्म इनवामेर ने मई में एक सर्वेक्षण किया था जिसमें 18 से 24 साल के 53 % मतदाताओं ने पेट्रो को चुनने की बात कही थी. पेट्रो सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव हैं और उन्हें टिकटॉक जनरेशन से बहुत कनेक्टेड बताया जाता है.

फ्रांस, अमेरिका में भी नौजवानों ने तय की सत्ता की लहर

वैसे कोलंबिया के अलावा फ्रांस से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं. वहां संसदीय चुनाव के नतीजों से राजनीतिक संतुलन बिगड़ रहा है. राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी का संसद में बहुमत खो गया है. वह बहुमत से आंकड़े से दूर हैं.

जबकि धुर वामपंथी नेता ज्यां ल्युक मेलेन्शॉं के नेतृत्व में बने वामपंथी गठबंधन- न्यू पॉपुलर यूनियन को 131 सीटें मिली हैं. इसके अलावा अन्य वामपंथी दलों को 22 सीटें मिली हैं. यानी सभी वामपंथी दल मिल कर 153 सीटें जीतने में सफल रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वहां भी मेलेन्शॉ की जीत की चाबी युवाओं के हाथों में है. मैगेजीन पॉलिटिको के पोल ऑफ पोल्स के मुताबिक, 35 साल से कम उम्र के ज्यादातर मतदाताओं ने मेलेन्शॉ को चुना है.

यूं इससे पहले अमेरिकी चुनावों में भी नौजवान मतदाताओं ने डोनाल्ड ट्रंप से ज्यादा जो बायडेन पर भरोसा जताया था और बायडेन जीते भी थे. सेंटर ऑफ इनफॉरमेशन एंड रिसर्च ऑन सिविक लर्निंग एंड इंगेजमेंट (सर्किल) के विश्लेषणों में कहा गया था कि 18 से 29 साल के 61% लोगों ने बाइडेन को वोट दिया था.

जैसा कि यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल में सोशियोलॉजी के प्रोफेसर केन रॉबर्ट्स के पेपर- यंग मोबिलाइजेशंस एंड पॉलिटिकल जनरेशंस कहता है, कि युवा एक्टिविस्ट्स से राजनैतिक बदलाव होते हैं, औऱ बीसवीं शताब्दी में इसके चलते कई देशों को राजनेताओं की नई पीढ़ी भी मिली है. यानी अगर बदलाव की अलख जगाने वाले युवा राजनीति में भी सक्रिय होते हैं.

इसी तरह वर्जिनिया, यूएस की जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर लीला ऑस्टिन का एक आर्टिकल द पॉलिटिक्स ऑफ यूथ बल्ज में इसका खुलासा है कि कैसे पश्चिमी एशिया में काहिरा से लेकर तेहरान तक में मुसलिम युवाओं ने राजनीति की दिशा बदली है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वैसे इतनी दूर क्यों जाएं- भारत में 2019 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जीत में युवा मतदाताओं का काफी बड़ा हाथ था. लोकनीति के चुनाव बाद सर्वेक्षणों में कहा गया था कि पहली बार वोट देने वाले वोटर्स के बीच बीजेपी सबसे पसंदीदा पार्टी बनकर उभरी थी. 18-22 आयु वर्ग के 41% वोटर्स ने 2019 में बीजेपी को वोट दिया था जोकि उसके नेशनल वोटर शेयर से 4% ज्यादा था.

निजाम सावधान हो जाए क्योंकि नौजवान यहां भी उबल रहा है

अब यही नौजवान नाराज दिख रहा है. उसे वह नहीं चाहिए, जो उसे थमाया जा रहा है. उसे सेना में ठेके पर, अस्थायी नौकरी नहीं चाहिए. वह सरकार की इस नीति से नाराज है कि वह कम पैसे में, ठेके पर, अस्थायी तौर पर फौजी बनाना चाहती है.

वह नाराज है क्योंकि सरकार ने योजना बनाने से पहले नहीं सोचा कि यह योजना क्यों बनाई जा रही है. वह फौज और सैनिकों और चुस्त बनाना चाहती है या पेंशन पर पैसा बचाना चाहती है या नौजवानों को कौशल का प्रशिक्षण देना चाहती है.

नौजवान लगातार कई साल से विरोध जता रहा है. 2022 की शुरुआत में रेलवे भर्ती बोर्ड के नतीजों के खिलाफ विरोध जता चुका है. 2021 में खेती कानूनों के विरोध में दिल्ली और दूसरी जगहों पर धरने पर बैठ चुका है. 2019 में नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में प्रदर्शन कर चुका है. बराबरी के इंसानी उसूलों के लिए जेलों में ठूंसा जा चुका है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोई पूछ सकता है कि क्या यह विरोध प्रदर्शन किसी काम आएगा? क्या बदलाव संभव है? क्या नौजवान सामाजिक ही नहीं, राजनैतिक बदलाव भी चाहते हैं? तो वह होता क्यों नहीं... फ्रांस के राजनैतिक घटनाक्रम पर एक प्रतिक्रिया से इसका जवाब मिल सकता है.

ला मोंदे अखबार को दिए एक इंटरव्यू में एक युवक ने कहा था, यंग लोगों को दो ऐसे विकल्पों में से एक को चुनने का मौका मिलता है जो एक जैसे बुरे हैं. लेकिन फ्रांस में तीसरे विकल्प के लिए भी गुंजाइश बनी. मेलेन्शॉं वही तीसरा विकल्प हैं.

विकल्प हर जगह होते हैं. फिलहाल कोलंबिया ने पेट्रो को चुना है. भारत में भी निजाम सावधान हो जाए क्योंकि विरोध का सिलसिला लंबे समय से जारी है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×