तो अब धमकी देनी की बारी Al-Qaeda की है. अल-कायदा द्वारा जो धमकी दी गई है वह काफी हिंसक है, उनकी ओर से दी गई चेतावनी में कहा गया है कि "हम (अल-कायदा से जुड़े लोग) अपने और अपने बच्चों के शरीर के साथ विस्फोटक बांध लेंगे." यह उनके बाल अधिकारों के संरक्षण के बारे में बहुत कुछ नहीं कहता है, ये पूरा झमेला नूपुर शर्मा की कथित टिप्पणी के साथ शुरु हुआ था. इसके साथ ही एक गंदगी या गड़बड़ी और भी है जो कि टेलीविजन एंकरों और राजनेताओं की वजह से उपजी है क्योंकि वे अपनी विचारधारा और टीआरपी के आगे कुछ नहीं देख पाते हैं. अल-कायदा की धमकी को केवल जनसंपर्क स्टंट या कैंपेन (पीआर स्टंट) के रूप में खारिज न करें. DIY (डू इट योरशेल्फ) आतंक के इस युग में यह धमकी काफी खतरनाक है.
ऐसा प्रतीत होता है कि एक नया व पुनर्जीवित चेहरा अयमान अल-जवाहिरी अब भारत की ओर अपना निशाना लगा रहा है.
'पश्चिम' को लेकर अल-कायदा की नफरत सबके सामने है. वहीं भारत के लिए उसका आक्रोश या गुस्सा नया है. AQIS की पत्रिका 'नवा-ए-अफगान जिहाद' का नाम बदलकर 'नवा-ए-गज़वा-ए-हिंद' कर दिया गया था. जो अफगानिस्तान से कश्मीर की ओर शिफ्ट होने या फोकस करने का स्पष्ट संकेत देता है.
ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे खतरे को नजरअंदाज किया जा सकता है. खतरों से बचने के लिए खुफिया एजेंसियों को अब अपनी सारी ताकत झोंकनी होगी.
भारतीय लोगों और "नफरत फैलाने वालों" को सोशल मीडिया पर धार्मिक विभाजकों के आगे झुकने से मना करना ही अधिकांश आतंकी योजनाओं को प्रभावी ढंग से विफल करने की कुंजी है.
प्रधानमंत्री की ओर इस पर एक दृढ़ बयान न केवल मदद करेगा बल्कि यह काफी महत्वपूर्ण भी होगा.
जवाहिरी का फिर से जीवित होना
सबसे पहले 6 जून को जारी किए गए इसके हालिया धमकी भरे पत्र पर चलते हैं. धमकी में न केवल विस्फोटक हमलों और दिल्ली, बॉम्बे, उत्तर प्रदेश और गुजरात में ''भगवा आतंकवादियों'' के खिलाफ बदले लेने की चेतावनी दी गई थी बल्कि इसमें मारने, लटकाने, कैद करने और जंजीर से बांधने की बात भी की गई थी. अपने टारगेट्स को लेकर यह धमकी न केवल असामान्य है बल्कि आश्चर्यजनक रूप से यह देरी से भी आई है. नूपुर शर्मा का विवाद मई के अंत में कथित बयान के कुछ दिनों बाद उठा था, लेकिन यह प्रमुखता से तब सुर्खियों में आया जब 5 जून को कतर, ईरान और कुवैत ने भारतीय राजदूतों को समन भेजा. इसी दिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने एक बयान जारी किया जिसमें "सभी धर्मों के लिए सम्मान" की बात कही गई थी.
पाकिस्तान ने 6 जून को चार्ज दि 'अफेयर्स को तलब किया. उसी दिन अल-कायदा फिर से जीवित हो उठा. धमकी भरा जो संदेश दिया वह उपमहाद्वीप में अल-कायदा के लेटरहेड (ऐसा प्रतीत होता है कि लेटरहेड में 'भारतीय' शब्द छूट गया है) पर है. उपमहाद्वीप में अल-कायदा (al Qaeda in the subcontinent) समूह 2014 में खुद अयमान अल-जवाहिरी द्वारा बनाया गया था. यह मूल अल-कायदा ग्रुप की एक शाखा है. अपने मूल रूप में AQIS (Al Qaeda in the Indian subcontinent यानी भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा) के तौर पर इसने पाकिस्तान में हमलों का भी दावा किया था.
अब इस पर विचार करें. जवाहिरी जिंदा है, यह तथ्य तभी सामने आया जब 22 फरवरी 2022 को उसका एक वीडियो आया. उस वीडियो में कर्नाटक में हिजाब प्रतिबंध को चुनौती देने के लिए उसने (जवाहिरी ने) मुस्कान खान की प्रशंसा की थी. कई भगवानों को मानने वाले हिंदुओं की भीड़ को ललकारते हुए चुनौती देने और बिना डर के तकबीर (भगवान सबसे बड़ा है.) का नारा लगाने के लिए मुस्कान की तारीफ की थी. इसके बाद जवाहिरी ने पश्चिम की कठपुतली होने के कारण पाकिस्तान सहित अन्य इस्लामी देशों की आलोचना की, लेकिन हिंसा की धमकी नहीं दी.
मार्च में जो वीडियो आया था वह क्लिपों से बनाया गया था जबकि एक अन्य वीडियो पिछले साल 9/11 की बरसी पर आया था वह अजीब तौर पर असंबद्ध लग रहा था, यहां तक कि तालिबान की वापसी का भी उल्लेख नहीं किया गया था. हालांकि 858 पन्नों की एक किताब में इलियास कश्मीरी का जिक्र है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि उसने मुंबई हमलों की योजना बनाई थी और 2011 में मारा गया था. इसके साथ ही उस किताब में उत्तर प्रदेश के असीम उमर का भी जिक्र था, जिसने AQIS (Al Qaeda in the Indian subcontinent) का नेतृत्व किया था. हालिया स्थिति को देखते हुए स्पष्ट तौर पर ऐसा प्रतीत होता है कि फिर से जाग उठने वाला जवाहिरी पूरी गति से बढ़ रहा है.
उपमहाद्वीप में अल-कायदा
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक जवाहिरी और उसकी टीम पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के पास जाबोल में हैं. बाकी के काबुल में और उसके आसपास हैं. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अल-कायदा और उसके सहयोगी संगठन तालिबान की संरक्षित छत्रछाया में काम करते हैं. तालिबान ने हालांकि बार-बार यह दोहराया है कि वो अलकायदा का अपने देश में स्वागत करता है लेकिन हिंसा हुई तो उससे लड़ेगा. हाल ही में रक्षा मंत्री और मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब ने एक बयान में यह दोहराया गया था.
तालिबान अलकायदा जैसा नहीं है और उसके पास कोई सेंट्रल अथॉरिटी नहीं है, और उसने वाकई में कभी भी अल-कायदा को उसके आतंकी कार्यों में मदद नहीं की है. मुद्दा यह है कि (जैसा कि संयुक्त राष्ट्र बताता है) अल-कायदा तभी से 'पश्चिम' के खिलाफ हमलों की धमकियों वाले बयान जारी कर रहा है, हालांकि अफगानिस्तान से नहीं.
'पश्चिम' से अल-कायदा की नफरत जगजाहिर है. इसकी तुलना में भारत के प्रति उसका गुस्सा नया है. 2015 में अफगान खुफिया सेटअप ने AQIS, या 'AQS', (यदि इसके नए लेटरहेड पर विश्वास किया जाए) को अंदर तक खोखला कर दिया था, तभी से ये कमजोर है. हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि इस समूह ने पूर्व प्रवक्ता ओसामा महमूद के नेतृत्व में करीब 200-400 लोगों को जुटा लिया है. मुख्य चिंता क्या है? चिंता का मुख्य मुद्दा यह है कि इसकी पत्रिका का नाम 'नवा-ए-अफगान जिहाद' से बदलकर 'नवा-ए-गजवा-ए-हिंद' कर दिया गया था, जो स्पष्ट रूप से अफगानिस्तान से कश्मीर पर (जाहिर तौर पर कश्मीर में जवाहिरी के "जिहाद" के आह्वान पर) ध्यान केंद्रित कर रहा था.
सामने मौजूद खतरा
धमकी या खतरे को नजरअंदाज करने का कोई रास्ता नहीं है. ऑपरेशन के संदर्भ में यह बिल्कुल भी मायने नहीं रखता है कि धमकी या खतरा वाकई में अल-कायदा नेता की अपनी पहल पर दी गई हो या यह उन ताकतों द्वारा समर्थित जो 'नूपुर शर्मा' मामले का पूरा लाभ उठाने के लिए इसका प्रयोग कर रहे हैं. धमकी या खतरे से बचने के लिए खुफिया एजेंसियों को अपनी आंतरिक और बाह्य, सभी ताकतों को झोंकना होगा. इसका मतलब यह है कि तालिबान के साथ-साथ 'साझेदार' देशों के साथ संपर्क बढ़ाना होगा जो पकड़ में न आने वाले जवाहिरी को ट्रैक करने के लिए उत्सुक हैं या उसको खोजने में रुचि रखते हैं. याद रखें कि जवाहिरी की मौत की घोषणा 2020 के अंत में की गई थी और ऐसे कई लोग हैं जो अभी भी यह सोचते हैं कि वह अब काम नहीं कर रहा है.
लेकिन उसके बाद सभी वेब-आधारित संचारों (खास तौर पर डार्क वेब) की छानबीन की जा रही है ताकि उन संदेशों को खोजने की कोशिश की जा सके जो एजेंसियों को संभावित हमले के लिए अलर्ट करेंगे. यह बडे़ से भूसे के ढेर में सुई ढूंढने से कहीं ज्यादा कठिन कार्य है.
असल में आंतरिक खतरा ज्यादा चिंताजनक है. हमले को अंजाम देने के लिए अल-कायदा के कैडरों को भारत की यात्रा करने की जरूरत नहीं है. भारत में हाल के ट्रेंड (विशेष रूप से सोशल मीडिया और कुछ टेलीविजन चैनलों) को देखते हुए, जो सभी मुसलमानों को आतंकवादी के रूप में चित्रित करते हैं और धार्मिक मामलों पर उन्हें भड़काते हैं, वह यह दर्शाता है कि कुछ कट्टरता आसन्न है. जिस दौरान यह लिखा जा रहा था उसी समय, बर्लिन में एक कार चालक द्वारा भीड़ पर गाड़ी चढ़ा देने की घटना हुई. यह घटना उसी सड़क में हुई है जहां 2016 में एक इस्लामिक स्टेट कैडर ने भीड़ को इसी तरह से कुचल दिया था और 12 लोगों की जान ले ली थी. इस तरह की घटनाएं इतनी सामान्य हो गई हैं कि यूएस होमलैंड सिक्योरिटी द्वारा एक पूरी नई एक्शन गाइड तैयार की गई है. बस या ट्रक जैसे बड़े वाहनों का उपयोग करना और भी बुरा है. वर्तमान संदर्भ में नूपुर शर्मा ने दावा किया है कि उनके परिवार के खिलाफ धमकी दी जा रही है. ऐसे में प्रतिरोधी या विरोधी ताकतों द्वारा एक छोटा सा भी हमला गंभीर सामुदायिक उन्माद पैदा कर सकता है. ऐसे में यह 'मिशन इम्पॉसिबल' बिल्कुल भी नहीं है.
क्यों भारत को कड़ा बयान जारी करना चाहिए?
भारतीय लोगों और "नफरत फैलाने वालों" को सोशल मीडिया पर धार्मिक विभाजकों के आगे झुकने से मना करना ही अधिकांश आतंकी योजनाओं को प्रभावी ढंग से विफल करने की कुंजी है. चूंकि वर्चुअल तौर पर यह असंभव है इसलिए मीडिया को इसका नेतृत्व करना चाहिए. उदाहरण के तौर पर जैसा कि मुस्कान खान के पिता द्वारा जवाहिरी के समर्थन के आह्वान को "ठुकराया" जाता है, लेकिन इसके बावजूद स्थानीय राजनेताओं ने यह कहना जारी रखा कि लड़की को 'बाहरी समर्थन' प्राप्त था. वे जानबूझकर एक साजिश के सिद्धांत को आगे बढ़ा रहे हैं. अब आपके पास कारण और उसके अवांछित प्रभाव है.
मीडिया के अलावा, यदि सरकार सभी धर्मों के लिए समर्थन का एक मजबूत बयान जारी करती है और इस बात पर जोर देती है कि इसकी सभी विकास योजनाएं हर जगह सभी नागरिकों के लिए लक्षित हैं तो पूरी स्थिति को खराब होने से बचाया जा सकता है.
निश्चित तौर पर अभी ऐसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक स्टेट्स (OIC) के दबाव में झुकने का कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन इस लाइन से थोड़ा नीचे आकर दृढ़ता से दिया गया एक बयान न केवल मददगार होगा बल्कि एक कुंजी साबित हो सकती है. खास तौर पर तब जब बयान एक प्रधान मंत्री के ऐसे करिश्माई आकर्षण के साथ दिया जाता है जिससे विश्व के नेता भी ईर्ष्या करते हैं. किसी को खुश करने के लिए हिंदू धर्म को फिर से बनाने की जरूरत नहीं है. बस जरूरत है इसे इसके असली रूप में पेश करने की. और यह नहीं भूलना चाहिए कि दशकों तक इस्लामिक स्टेट या अल कायदा जैसे समूहों में मुट्ठी भर भारतीय ही शामिल हुए हैं, वहीं कश्मीर में कम ही इसकी ओर गए हैं. वह सब जो बदल सकता था और बुरा हो सकता था; वे सब मिलकर एक ऐसी स्थिति बना सकते हैं जो राजनीतिक तौर पर हल करने से कहीं बड़ा हो सकता है.
(डॉ. तारा कार्था Institute of Peace and Conflict Studies (IPCS) में एक प्रतिष्ठित फेलो हैं. उनका ट्विटर हैंडल @kartha_tara है. ये ओपिनियन आर्टिकल है और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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