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एक बुजदिल के हाथ में बाइबिल, ट्रंप के पापों का घड़ा भर गया?

बंकर में छुपने वाला डोनाल्ड ट्रंप दूसरा अमेरिकी राष्ट्रपति है.

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ऐसा कृत्य करने के लिए किसी को कितना अमानवीय और असुर प्रवृत्ति का होना पड़ता है? जब व्हाइट हाउस के बाहर पुलिस ज्यादती के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहा था तभी एक घमंडी राष्ट्रपति ने पुलिस को बलप्रयोग करके रास्ता खाली कराने को कहा. क्यों? क्योंकि एक चर्च के सामने हाथ में बाइबिल लहराते हुए फोटो खिंचवाने के लिए जाना था. ऐसा करने के लिए कितना बुजदिल होना पड़ता है. याद रखियेगा यह वही आदमी है जिसे उसी दिन व्हाइट हाउस के एक बंकर में जाकर छुपना पड़ा था. बंकर में छुपने वाला डोनाल्ड ट्रंप दूसरा अमेरिकी राष्ट्रपति है.

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मेड फॉर टेलीविजन वाली राजनीति का प्रोडक्ट ही ऐसा कर सकता है. एक ऐसा आत्ममुग्ध अहंकारी राष्ट्रपति जो चौबीसों घंटे ट्वीट किये बगैर नहीं रह सकता और उल्टा पड़ने पर उसी ट्विटर-सोशल मीडिया को लगाम में कसना चाहता है. एक ऐसा बदमिजाज राष्ट्रपति ही अमेरिका में नस्लभेद के एक बेहद काले हफ्ते में ऐसी फोटो अपॉर्च्युनिटी की बात सोच सकता है .

जब अमेरिका जल रहा है तो ऐसे में कोई बुजदिल ही ये कर सकता है क्योंकि वो ये दिखाना चाहता है कि वो निरंकुश तानाशाह है. अपने ही लोगों पर वो अमेरिकी फौज छोड़ने की धमकी दे रहा है. उसको इतना कॉन्फिडेंस कहां से आता है? शायद उसको लगता है कि उसके जो समर्थक हैं, वो मूर्ख और मतिमंद हैं.

वो ज्यादा इंटेलीजेंट नहीं हैं और विक्टिमहुड की उसकी राजनीति के जाल में फंसे हुए हैं. उन्हीं वोटरों को भड़काते रहना है ताकि वो उसे छोड़कर ना जाएं. कोरोना के कुप्रबंध को भुलाने के लिए नफरत की अफीम चटाना ही आखिरी विकल्प है. इसीलिए अपने गलत कामों को सही ठहराने के लिए ट्रंप हाथ में ईसाई धर्म का पवित्र ग्रंथ बाइबिल उठाकर कैमरों की सामने पोज दे सकता है.

25 मई को मिनियापोलिस शहर में एक ब्लैक अमेरिकन जॉर्ज फ्लॉयड की एक वाइट पुलिस अधिकारी ने खुलेआम बेदर्दी से हत्या कर दी. फ्लॉयड का कथित गुनाह यह था कि वो सिगरेट खरीदने के लिए बीस डॉलर का नकली नोट चलाने की कोशिश कर रहा था. इसी हत्या के विरोध में पिछले एक हफ्ते से अमेरिका के दर्जनों शहरों में ब्लैक अमेरिकन और उनके साथ वाईट अमेरिकन मिलकर प्रदर्शन कर रहे हैं. कई जगह हिंसा हो रही है और कई जगह पुलिस शांति बहाल करने में कामयाब हो रही है लेकिन इस वक्त जो अमेरिका का मंजर है वो बेहद डरावना है.

अमेरिकी समाज इतना टूटा हुआ था, इसका सबको ऐसा अंदाज नहीं था. और चुनाव सामने हैं तो ट्रंप की गंदगी भी उसी हिसाब से बढ़ रही है. ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के नेता ट्रंप के इस खेल बुरी तरह फंस गए हैं. कुछ नाराज भी हैं, लेकिन इससे कैसे निकलें ये उन्हें समझ नहीं आ रहा है. उधर पूरी दुनिया का दिमाग कोरोना से लड़ने में फंसा हुआ है, इसलिए उसे अमेरिका की इन अचानक और गंभीर घटनाओं का पूरा अनुमान भी नहीं हो पा रहा है .

इसी तरह अमेरिका के संस्थान भी जो इन चीजों का प्रतिकार करते रहे हैं वो ऐसे सदमे में हैं कि वो ट्रंप की इस तोड़फोड़ को रोकने के लिए कुछ खास नहीं कर पा रहे. अमेरिका का प्रेस काफी मजबूत है. वो भी दो धूरियों में बंटा हुआ है. जो अच्छे अमेरिका की तरफदारी करने वाला मीडिया है वो भी पूरी अमरीकी जनता को असरदार ढंग से नहीं समझा पा रहा कि ट्रंप अमेरिका के लिए कितनी बड़ी आफत और कितना बड़ा दुर्भाग्य है .

बेहद अंधेरे में जो आशा की किरण दिख रही है, वो हैं वहां के साधारण लोग. और ये साधारण लोग चूंकि स्थानीय स्तर पर पुलिस और प्रशासन के साथ जुड़े रहते हैं इसलिए कुछ शहरों में आप देख रहे हैं कि पुलिस नाराज प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए अलग ढंग से पेश आ रही है. बदकिस्मती से कुछ शहरों में पुलिस ने डंडा चलाया लेकिन अब हालात तेजी से बदले हैं और लोकल स्तर पर कोशिशें हैं कि ट्रंप के पागलपन को रोका जाए. बेहतर अमेरिका की एक संभावित तस्वीर डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन में दिखती है, जब वो ब्लैक अमेरिकन्स के सामने घुटनों के बल बैठे नजर आते हैं. बाइबिल वाली तस्वीर के एकदम विपरीत .

अफ्रीकन-अमेरिकन लोगों के पक्ष में खड़े होने वाले व्हाइट अमेरिकी बड़ी तादाद में आगे आए हैं. यही असली अमेरिका है, जो कमजोर हुआ है, लेकिन खत्म नहीं हुआ है.

काल खंड के हिसाब से देखें तो राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल के बाद की दुनिया लगातार टूट फूट की तरफ बढ़ रही थी. 2008 के बाद पूरी दुनिया में ग्लोबलाइजेशन और लोकतंत्र दोनों के खिलाफ माहौल बन रहा था. ऐसे में कई नेता उभरे जो घोर अलोकतांत्रिक और तानाशाही प्रवृत्ति के हैं. लोकतांत्रिक दुनिया में ट्रंप इसमें नंबर वन हैं. इसीलिए सबसे ज्यादा दुर्गति अमेरिका की हुई है.

जो अमेरिका आधुनिकता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और बराबरी की मिसाल था. जो बेहतर लोकतंत्र और संस्थानों के संतुलन का सबसे अच्छा उदाहरण था, वही अमेरिका एक ऐसे गलत इंसान के हाथों पड़ गया है. इस देश को एहसास हो पाता उसके पहले वो कई दशक पीछे धकेल दिया गया है.

अमेरिका और टूटेगा या बचेगा, इसका फैसला नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव में होगा. वोटरों को डराने, वोटर लिस्ट से उनका नाम उड़ाने और इसके अलावा चुनाव में जितनी धांधलियां हो सकती हैं, उसमें भी ट्रंप शातिर हैं. इसलिए अमेरिकी लोग अपने चुनाव को कितना साफ सुथरा रख पाएंगे, ये एक बड़ी चुनौती है. पूरी दुनिया इस पर नजर लगाए हुए है और नवंबर का इंतजार कर रही है.

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