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‘आर्थिक महाशक्ति’ बनने में भारत का मददगार कौन- ट्रंप या हिलेरी?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, बहस तेज होती जा रही है, इस बार ट्रंप या हिलेरी?

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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के मतदान के दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, ये बहस तेज होती जा रही है कि ट्रंप या हिलेरी? ट्रंप पिछड़ रहे हैं, लेकिन पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. अमेरिका के चुनाव पर पूरी दुनिया की नजर टिकी है, भारत का चिंतित होना भी स्वाभाविक है.

अप्रैल में भारतीय बीपीओ प्रोफेशनल का मजाक उड़ाने वाले ट्रंप ने गुरुवार को ओहियो में दोबारा कहा, "कंपनियां कम तनख्‍वाह वाले कर्मचारियों का आयात एच-1बी वीजा पर कर रही है, जिससे अमेरिकी कॉलेज में पढ़ने वाले युवकों को नौकरी नहीं मिल रही है. हम इसे बचाएंगे. लेकिन ट्रंप की खूबसूरती ये है कि वो यू-टर्न बहुत जल्दी मारते हैं. अप्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए अगले ही दिन वो भारत को सबसे बड़ा दोस्त बताने लगे.

अब समझने की बात ये है कि किसके आने से भारत का फायदा होगा?

एच-1बी वीजा की संख्या बढ़ेगी?

अमेरिका में काम करने के लिए अधिकतम 36 महीने की अस्थायी मंजूरी, अमेरिकी सरकार इस नीति के तहत विदेशियों को देती है. हर साल 65 हजार एच-1बी वीजा विदेशियों को काम करने के लिए जारी किए जाते हैं.



अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, बहस तेज होती जा रही है, इस बार ट्रंप या हिलेरी?
(फोटो: iStock)

ट्रंप सत्ता में आते ही एच-1बी वीजा पर कार्य करने वाले कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन बढ़ाने की बात कर रहे हैं, लेकिन यह भारतीयों पेशेवरों के लिए नौकरी छिनने जैसा होगा. अभी तक कंपनियां अमेरिकी वेतन मापदंड की अवहेलना करते हुए कम पैसों पर भारतीय आईटी पेशेवर को काम पर रखती हैं.

न्यूनतम वेतन के बढ़ते ही कंपनियां भारतीयों के मुकाबले अमेरिकी युवकों को रखने पर प्राथमिकता देगी, जिससे भारतीय आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री में भूचाल आ सकता है. इससे हज़ारों नौकरियां जाएंगी. कंपनियों की बैलेंस शीट चरमराएगी और भारत अमेरिकी संबंधों पर असर पड़ेगा.

ट्रंप अपनी आव्रजन नीति का खुलासा करते हुए कह चुके हैं कि चीन और मैक्सिकन प्रोफेशनल को अमेरिकी नौकरियां लूटने से बचाने के लिए वो सीमा पर चीन से बड़ी दीवार बनवा देंगे. लेकिन ये आशंका तभी सच साबित होगी, जब ट्रंप सत्ता में आएंगे .

ओबामा प्रशासन में तो अमेरिका कांग्रेस ने एच-1 बी वीजा की अधिकतम सीमा 65 हजार से बढ़ाकर तीन गुना यानी 1लाख 95 हजार करने पर विचार किया है.

हिलेरी भारत के लिए एच-1 बी वीजा के महत्व को समझती हैं. हिलेरी क्लिंटन सीनेट इंडिया फोरम का नेतृत्व करते हुए टाटा कंसल्टेन्सी के साथ काम कर चुकी हैं. यानी हिलेरी के राष्ट्रपति बनने पर वीजा भी मिलेगा और नौकरी भी.

ग्रीन कार्ड का सपना पूरा होगा?

अमेरिका में काम करने के इच्छुक हर भारतीयों का सपना ग्रीन कार्ड यानी स्थायी नागरिकता का पाना होता है. चीन के 3 लाख छात्रों के बाद दूसरे नंबर पर 1 लाख 32 हजार भारतीय छात्र अमेरिकी कॉलेजों में पढ़ने हिन्दुस्तान से अमेरिका जाते हैं. हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिकी विश्वविद्यालयों से विज्ञान, तकनीकी, प्रौद्योगिकी, गणित में मास्टर्स और पीएचडी की पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को स्वत: ग्रीन कार्ड मिल जाने का वायदा किया है. इससे ढेर सारे भारतीयों छात्रों की लॉटरी खुल सकती है.



अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, बहस तेज होती जा रही है, इस बार ट्रंप या हिलेरी?
(फोटो: iStock)

लेकिन अमेरिका में नौकरियों की बाढ़ लाने का सपना दिखा रहे ट्रंप विदेशी प्रोफेशनल को नया ग्रीन कार्ड जारी करने के सख्त खिलाफ हैं. उनकी प्राथमिकता विदेशियों को रोजगार और घर देने की बजाए बेरोजगार अमेरिकी युवकों को रोजगार देने की है.

परिवारिक वीजा का खुलना

हिलेरी ने वायदा किया है कि पारिवारिक वीजा के वर्षों से लंबित मामलों को वो जल्दी निपटाएंगी. 40 प्रतिशत से ज्यादा लंबित मामले एशिया से है, जिसमें अप्रवासी भारतीय परिवारों की बड़ी संख्या है. हिलेरी ने तो पर्यटन वीजा को जनवरी, 2017 से सरल बनाने का वायदा किया है. हेलरी के एजेंडे में वीजा ऑन एराइवल भी शामिल है .

लेकिन ट्रंप के एजेंडें में बिछुड़े अप्रवासी परिवारों को मिलाने का कोई इरादा नहीं है.

स्टार्टअप वीजा का वायदा

हिलेरी ने वायदा किया है कि तकनीक के क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू करने वाले विदेशियों को अलग कैटेगिरी में वीजा दिया जाएगा. सिलिकॉन वैली में स्‍टार्टअप शुरू करने वाले भारतीयों के लिए यह एक बड़े अवसर की तरह है. 1 बिलियन डॉलर की पूंजी वाले 87 स्टार्टअप कंपनियों में 44 कंपनियां अप्रवासियों के द्वारा शुरू की गई है.

ट्रंप का अप्रवासियों के लिए दरवाजा तकरीबन बंद है.

भारतीय दवा कंपनियों की दवा कौन करेगा?

अमेरिकी चुनाव के नतीजों का एक बड़ा प्रभाव भारतीय दवा उद्योग पर पड़ना तय है. भारतीय दवा कंपनियों के लिए अमेरिका एक बड़ा बाजार है. दवा में इस्तेमाल होने वाली 80 प्रतिशत खुदरा सामग्री अमेरिका को भारत और चीन की दवा कंपनियां निर्यात करती हैं. फरवरी में लाए नए कानून के तहत दवा कंपनियों को मूल सामग्री के अमेरिका में बनाने की बाध्यता के बाद निर्यात के लुढ़कने की आशंका बढ़ गई है.



अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, बहस तेज होती जा रही है, इस बार ट्रंप या हिलेरी?
(फोटो: iStock)

जेनेरिक दवा उद्योग को अमेरिका कंट्रोल करता है, जिसमें दुनियाभर के उत्पादन में भारत का पांचवा हिस्सा है. हालांकि इस फैसले से पहले ही भारतीय दवा निर्माता कंपनी दूसरी रणनीति पर चलते हुए अमेरिकी दवा कंपनियों को खरीदने की रणनीति पर काम कर रही हैं. सिपला, ल्युपिन, सन फार्मा पहले ही दो-दो अमेरिकी कंपनी खरीद चुकी हैं और 31 ऐसी अन्य कंपनियों को खरीदने की तैयारी है.

हिलेरी ने अपनी स्वास्थ्य नीति में ओबामा केयर का विस्तार कर 55 साल से ऊपर की उम्र वालों को इस दायरे में लाने का वायदा किया है. इससे भारतीय दवा कंपनियों का व्यापार बढ़ेगा.

मुक्त व्यापार और भूमण्डलीकरण का विरोध करने वाले ट्रंप दवा कंपनियों के लिए बाजार में प्रवेश करने के नियमों में आ रही रुकावटों को दूर करने का वायदा किया है और ओबामाकेयर को सरकार की छत्रछाया से निकालकर बाकी बीमा कंपनियों के लिए समान प्रतिस्पर्धा का मौका देने की बात कही है.भारतीय उद्योग जगत इसका फायदा उठा सकता है.

पर भारतीय दवा कंपनियों को हिलेरी के नीतियों की निरंतरता पर ज्यादा भरोसा है, बनिस्पत ट्रंप के.

ब्रेग्जिट के बाद ट्रंपक्सिट का खतरा तो नहीं?



अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, बहस तेज होती जा रही है, इस बार ट्रंप या हिलेरी?
(फोटो: iStock)

ब्रेक्सिट के खतरों से भारत अभी उबरा नहीं है. ट्रंप अगर राष्ट्रपति पद पर पहुंच गए, तो सारे बहुपक्षीय व्यापार संबंधों को नए सिरे से अमलीजामा में लाने की उनकी इच्छा विश्व की अार्थिक व्यवस्था में भूचाल ला सकती है. वित्त मंत्री अरुण जेटली और आरबीआई गवर्नर ने आशंका जताई है कि मुक्त व्यापार के खिलाफ चल रहे चुनावी कैंपैन से आर्थिक लक्ष्य डगमगा सकता है.

लेकिन हिलेरी आयात पर प्रतिबंध और समझौतों को खत्म करने की जगह टैक्स में छूट देकर अमेरिकी उत्पादन को बढ़ाने की पक्षधर रही हैं. आईएमएफ ने चेतावनी दी है कि संकुचित आर्थिक नीतियां विश्व को अंधेरे युग में पहुंचा सकती है.

भारत अमेरिका से अपने व्यापार को 100 बिलियन डॉलर से 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाना चाहता है और अमेरिकी बाजार में प्रवेश की ज्यादा खिड़कियां भी चाहता है. इसके लिए जरूरी है कि मुक्त व्यापारिक नीतियों का जारी रहना.

'मेक इन इंडिया' को लग सकता है झटका?

अमेरिकी चुनाव का एक बड़ा असर प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी योजना 'मेक इन इंडिया' पर पड़ सकता है. दोनों ही प्रत्याशी कम से कम इस मुद्दे पर सहमत हैं कि मैन्युफैक्चरिंग में तेजी कैसे लाई जाए. ट्रंप और हिलेरी के चुनावी कैंपैन का यह एक प्रमुख मुद्दा है.

2000 से जनवरी 2014 के बीच 5 मिलियन अमेरिकियों ने उत्पादन क्षेत्र की नौकरियं खोई हैं. 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम में निवेश करने वाली अमेरिकी कंपनी इन नीतियों के बाद अपने कदम पीछे खींच सकती है, जिससे भारत में नौकरियों के अवसर बढ़ने की संभावनाओं पर विपरीत असर पड़ेगा.

कहते हैं कि वैश्वीकरण के दौर में कूटनीति उसी की प्रभावी है, जिसकी आर्थिक व्यवस्था भी वजनी हो. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, विश्व में भारतीय अर्थव्यवस्था ही उम्मीदों की पूंजी है और दो दशकों तक भारत के इस विकास दर से बढ़ने की संभावना है. हिलेरी के भारतीय सत्ता तंत्र से निकटता के बाद भी अगर ट्रंप तमाम स्कैंडलों के बाद जीतकर चीन और पाकिस्तान को आर्थिक बेड़ियों में बांध दें, तो वो भारत के लिए फायदे का कारोबार होगा या घाटे का?

(इस आलेख में प्रकाशित विचार लेखक के अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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