अर्णब गोस्वामी नाम का बुलबुला फूट गया है. वॉट्सऐप चैट जो अब सार्वजनिक हो गई हैं वो कथित टीआरपी घोटाले में मुंबई पुलिस की ओर से दाखिल चार्जशीट का हिस्सा हैं, जिसकी जांच वो कर रही है.
जो बात इन चैट्स से सामने आ रही है उसका इस विवाद के केंद्र में दिख रहे व्यक्ति अर्णब गोस्वामी से कम ही लेना देना है जो इससे सिर्फ जुड़े हुए हैं. लेकिन ये किसी एक व्यक्ति के बारे में नहीं है, ये हमारे संस्थाओं की उस सीमा के बारे में है जिसमें जंग लग चुकी है.
यह मामला मैच फिक्सिंग के स्तरों को उजागर करता है जिसमें कुछ ‘बुलबुलों’ को यादगार बनाने के लिए शामिल किया गया है. अर्णब गोस्वामी की चैट एक छोटा झरोखा है जो दिखाता है कि कैसे दिन ब दिन, रात दर रात, प्राइम टाइम के बाद प्राइम टाइम मोदी का मिथक बनाया गया है, उनके लिए जो अभी भी भोला-भाला बनने का जोखिम उठा सकते हैं.
अर्णब की चैट से क्या खुलासा हुआ: ‘लेन-देन’ का एक मामला?
जब आप अपनी आंखें बंद करते हैं और अर्णब गोस्वामी की कल्पना करते हैं तो जो छवि सामने आती है वो एक ऐसे व्यक्ति की है जो खुद को धरती का सबसे बड़ा जीवित देशभक्त होने का दावा करने के लिए किसी भी हद तक जा रहा है. वो इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने खुद को, हर दूसरे भारतीय को जो या तो सरकार के विरोध में थे या इससे भी बुरा अगर वो एक गैर हिंदू थे, को देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने के लिए सरकार की ओर से नियुक्त किया.
अर्णब गोस्वामी अपने मीडिया ब्रैंड के जरिए (मुझे खेद है, मैं इसे पत्रकारिता नहीं कह सकता) एक तरह से सत्ताधारी शासन के मुखपत्र बन गए.
चैट से ये साफ हो जाता है कि अर्णब ने अपने लिए टीआरपी में और सत्ताधारी व्यवस्था के लिए जनमत में हेर-फेर किया-अफसोस, दोनों ही फर्जी निकल रहे हैं.
अगर नोआम चोम्स्की किसी सरकार के द्वारा ‘सहमति तैयार करने’ का एक स्पष्ट उदाहरण देखना चाहते हैं तो उन्हें आज का भारत देखने पर विचार करना चाहिए.
नफरत भरे अर्ध सत्य को प्रसारित कर बहुसंख्यक समुदाय के समर्थन को सुरक्षित और मजबूत करने के लिए वैकल्पिक तथ्यों को फैलाना, यही वो काम है जो टीवी न्यूज एंकर करते थे.
अर्णब ने सरकार के लिए जो किया वो उन लोगों के लिए था जो खुद को उनका चैनल देखने के लिए ला सकते थे. सत्ताधारी व्यवस्था ने जो उनके लिए किया वो धीरे-धीरे बाहर आ रहा है. दोनों ने साथ मिलकर भारत के साथ जो किया, उसकी हम सब को चिंता होनी चाहिए.
अर्णब की अभी सामने आईं वॉट्सऐप चैट उस समय के BARC के प्रमुख पार्थो दासगुप्ता के साथ थीं. चैट से पता चलता है कि दोनों न सिर्फ टीआरपी तंत्र से खेल कर रहे थे बल्कि ताकतवर सरकारी अधिकारियों और ट्रॉल्स की मदद से अपने विरोधियों को भी ठिकाने लगा रहे थे. एक खास मंत्री का रिपब्लिक चैनल के खिलाफ मामले को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना दिखाता है कि गोस्वामी का प्रभाव कितना ज्यादा था.
सार्वजनिक तौर पर जो बातचीत मौजूद है उसमें लेन-देन एकदम स्पष्ट है. अर्णब गोस्वामी का इस्तेमाल जनमत को अपने अनुरूप ढालने, ध्रुवीकरण करने और आखिरकार लोकतंत्र का नाश करने में किया जा रहा था, इसे साफ तौर पर दिल्ली की जनवरी के कोहरे में भी देखा जा सकता है.
पुलवामा हमले में हमारे जांबाजों के शहीद होने पर अर्णब को जो खुशी हुई उससे हमें ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए. अर्णब सही मायने में सरकार और उसके समर्थक जो सबसे बुरा कर सकते हैं उसका प्रतिनिधित्व करते हैं. वो सिर्फ सत्ताधारी सरकार की भावनाओं को दोहराते हैं. मैं फिर से कहता हूं, कहानी अर्णब गोस्वामी की नहीं है. वो सिर्फ कहानी बताने वाले हैं.
संवेदनशील सूचना तक अर्णब की ‘पहुंच’
अर्णब को अर्णब ने ही एक्सपोज कर दिया. उबाऊ, पूर्वानुमान के मुताबिक वो पाकिस्तान के नाम पर बचने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान ‘अर्णब गोस्वामी के पीछे’ छिपने की कोशिश कर रहा है. क्या उन्होंने पाकिस्तान को बच निकलने का एक रास्ता दे दिया है?
इन चैट्स में अश्लील गप-शप ढूंढने वालों के लिए मनोरंजन होगा. सरकार में कुछ लोग गुस्से में होंगे. वहां तरह-तरह के अनुमान होंगे. लेकिन बड़े और ज्यादा गंभीर सवालों के जवाब अब भी नहीं मिले हैं.
अर्णब गोस्वामी ने पार्थो दासगुप्ता के साथ जो चैट की वो हमें पता है क्योंकि मुंबई पुलिस कथित घोटाले में अर्णब के शामिल होने की जांच कर रही है.
‘देश को जानने का अधिकार है’
सामने आईं चैट के मुताबिक हम सिर्फ इतना जानते हैं कि अर्णब गोस्वामी को कथित तौर पर बालाकोट एयर स्ट्राइक के बारे में पहले से जानकारी थी लेकिन हमें नहीं पता कि उन्हें कहां से ये और दूसरी संवेदनशील सूचनाएं मिलीं और सबसे अहम उन्होंने किन लोगों के साथ ये जानकारी साझा की. सीमा पार के लोगों के साथ भी अर्णब के कनेक्शन की जांच की जरूरत है.
हम अपने शहीद सैनिकों के परिवारों के एहसानमंद हैं. हम हर उस भारतीय के एहसानमंद हैं जिन्होंने विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की चिंता में जागकर रात बिताई. हम देश के एहसानमंद है, जिसके नाम पर अर्णब ने अपना देश-विरोधी एजेंडा आगे बढ़ाया. इन सबसे ऊपर हम उन सब के एहसानमंद हैं जिन्होंने प्रचारकों और लॉबिइस्ट के द्वारा चलाए गए मिथकों पर भरोसा कर सरकार को वोट दिया है.
(लेखक कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. उनका ट्विटर हैंडल @Pawankhera है. इस लेख में दिए गए विचार उनके अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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