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Kejriwal केरल में इस बार कर पाएंगे कमाल? 'ट्वेंटी-20' का फटाफट खेल नहीं चलेगा

Kerala की राजनीति में बदलाव के लिए सिर्फ विकास के मुद्दे पर बात करना काफी नहीं है

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अरविंद केजरीवाल, केरल (Arvind Kejriwal in Kerala) आए और उन्होंने थ्रीक्काकारा के पास एक जनसभा को संबोधित किया, जहां 31 मई को उपचुनाव के लिए मतदान होना है. विधानसभा की यह सीट कांग्रेस (Congress) विधायक पीटी थॉमस के निधन के बाद खाली हुई थी. हालांकि आम आदमी पार्टी (AAP) और बच्चों की ड्रेस बनाने वाली कंपनी केआईटीएक्स समूह समर्थित ट्वेंटी20 ने चुनावों से बाहर रहने का फैसला किया.

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लेकिन चुनाव के समय केजरीवाल का आना और नया राजनीतिक मोर्चा - पीपुल्स वेलफेयर एलायंस की घोषणा करना काफी महत्वपूर्ण है. ऐसा लगता है कि केजरीवाल की टाइमिंग ने सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) दोनों में हलचल पैदा कर दी है. इन दोनों ही दलों ने जो प्रतिक्रियाएं दी हैं उससे भी यह स्पष्ट होता है.

CPM, जो हाल तक आप पर बिना किसी विचारधारा के 'अराजनीतिक' पार्टी होने और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की B टीम होने का आरोप लगाती रही थी, अब वो पार्टी पर अपनी राय जाहिर करने में सतर्क हो गई है. राज्य में पार्टी की सर्वोच्च इकाई स्टेट सेक्रेटेरियट के सदस्य एम स्वराज ने कहा कि ट्वेंटी 20-AAP एलायंस वैचारिक तौर पर लेफ्ट के करीब है.

AAP- Twenty 20 एलायंस लोगों के जिस कल्याण की बात करती है उसे CPM मानती रही है. पार्टी ने अपने एक विधायक श्रीनिजन की फेसबुक पर KITEX के एमडी साबू जैकब जो ट्वेंटी 20 के नेता के खिलाफ पोस्ट की भी निंदा कर दी है.

क्या केरल में गूंजेगा केजरीवाल का दिल्ली मॉडल?

दूसरी ओर, कांग्रेस नेताओं ने उम्मीद जताई है कि नया मोर्चा उपचुनाव में उनका समर्थन करेगा. UDF और LDF दोनों को ही लगता है कि भले ही नया गठबंधन पीपुल्स फ्रंट थ्रीक्काकारा में चुनावी मैदान में नहीं है लेकिन चुनावी नतीजों में इसकी निर्णायक भूमिका रह सकती है. 2021 के चुनाव में, ट्वेंटी 20 के टेरी थॉमस को 13,897 वोट मिले, जो थ्रीक्काक्कारा में डाले गए कुल वोटों का 10 प्रतिशत था.

यह वोट इस तथ्य को देखते हुए महत्वपूर्ण हो जाता है कि कांग्रेस के पीटी थॉमस ने 14,329 मतों के अंतर से चुनाव जीता था. तो, कांग्रेस और CPM दोनों के लिए परेशान होने की ठोस वजहें हैं. ट्वेंटी 20, कम से कम कुछ समय के लिए, एक चुनाव में एक निर्णायक फैक्टर है जहां 5,000 वोट भी परिणाम तय कर सकते हैं.

लेकिन थ्रीक्काकारा से आगे केरल में AAP की राजनीति के लिए दांव पर क्या है? क्या अरविंद केजरीवाल का 'दिल्ली का मॉडल' केरल के राजनीतिक मतदाताओं में के बीच चल पाएगा ?

केरल में 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान AAP ने काफी गंभीरता दिखाई थी और कई प्रमुख लोगों को उम्मीदवार बनाया था. वरिष्ठ पत्रकार अनीता प्रताप एर्नाकुलम निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार थीं, और लेखक सारा जोसेफ ने त्रिशूर से चुनाव लड़ा.

ये वो वक्त था जब मुख्यधारा के वामपंथ से मोहभंग के बाद कुछ कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने नई पार्टी को चुना था. हालांकि कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के उम्मीदवारों को 50,000 से अधिक वोट मिले, लेकिन ओवरऑल प्रदर्शन कुछ खास असरदार नहीं रहा. 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनावों में AAP केरल की दो ध्रुवों वाली राजनीति में कोई राजनीतिक जमीन नहीं बना सकी.

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AAP के पास मिडिल क्लास के लिए नेता नहीं

कारण सिर्फ संगठनात्मक नहीं हैं, जैसा कि कुछ पर्यवेक्षक सुझाव दे सकते हैं. यह सच है कि केरल में AAP के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसके इर्द-गिर्द नाराज मिडिल क्लास या 'अराजनीतिक' लोग जुट सकें. पूरा मामला राजनीतिक और वैचारिक है. केरल में गहरी राजनीतिक समझ रखने वाले मतदाताओं को सिर्फ पॉपुलर और भ्रष्टाचार विरोधी बयानों से लुभाना काफी नहीं है.

केरल,जहां ऐतिहासिक रूप से बेहतर पब्लिक हेल्थ और प्राइमरी एजुकेशन सिस्टम है, और एक मजबूत दो–ध्रुवीय राजनीतिक व्यवस्था है, AAP के लिए जगह बनाना आसान नहीं है. सिर्फ कल्याणकारी राजनीति का सपना दिखाकर इसे नहीं जीता जा सकता है, जैसा कि AAP और इसी तरह के संगठन कर रहे हैं.

हालांकि यह भी सही है कि राज्य में शहरी मतदातओं को मोहभंग एलडीएफ-यूडीएफ की राजनीति से हो रहा है . लेकिन AAP अब तक राज्य के सामने आने वाले विकास के मुद्दों के लिए कोई ठोस विचार पेश नहीं कर पाई है. केवल भ्रष्टाचार और विकास जैसे मुद्दों पर हल्ला करना, जो AAP कर रही है, केरल की राजनीति को बदलने के लिए पर्याप्त नहीं है.

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान AAP को लेकर जोरदार माहौल तैयार हुआ लेकिन जोश जल्द ही ठंडा पड़ा गया और कई बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी. कई अहम व्यक्तियों के चले जाने के बाद पार्टी ने तमिलनाडु के पूर्व मुख्य सचिव पीसी सिरिएक को अपना संयोजक चुना.

लेकिन अब तक पार्टी 'गैर-राजनीतिक' युवा और मध्यम वर्ग की उम्मीदों को समझने में नाकाम रही है. हालांकि ट्वेंटी-20 के साथ गठबंधन करके AAP एक जोरदार कोशिश फिर से कर रही है. यह सच है कि एर्नाकुलम जिले के कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में ट्वेंटी-20 एक निर्णायक फैक्टर बन गया है.

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इनका जिले में चार स्थानीय निकायों पर कब्जा है, लेकिन 2021 के चुनाव में ट्वेंटी 20 एक भी विधानसभा सीट नहीं जीत सकी. इससे साफ है कि अभी ये राज्य में बड़ी लड़ाई के लिए फिट नहीं है.

पार्टी ने CPM उम्मीदवार - पी वी श्रीनिजन और कांग्रेस उम्मीदवार पीटी थॉमस के खिलाफ कुन्नाथुनाडु और थ्रीक्काक्कारा निर्वाचन क्षेत्रों में जोरदार प्रचार किया था लेकिन बावजूद इसके CPM और कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब हुए. क्योंकि कॉर्पोरेट-प्रायोजित पार्टी का तमगा रहने से पार्टी पूरी तरह से लोगों से जुड़ाव नहीं बना पाई. यह केवल इस तथ्य को रेखांकित करता है कि जब बड़ी लड़ाई की बात आती है, तो मतदाता कॉर्पोरेट नेताओं की गैर-राजनीतिक वाक्पटुता से प्रभावित नहीं होते हैं.

क्या AAP संकट को और बढ़ाएगी ?

ट्वेंटी-20 के बाद, कुछ सिविल सोसाइटी, पॉलिटकल ग्रुप राज्य के कई हिस्सों में उभरे हैं, जैसे वी4 कोच्चि. लेकिन चुनाव के दौरान उनके हंगामे के बावजूद, इनमें से कोई भी संगठन केरल के मतदाताओं से नाता नहीं जोड़ पाए हैं. ट्वेंटी-20, वी4 कोच्चि और इसी तरह के अन्य समूह AAP के वैचारिक आधार हैं. इनमें से कोई भी दल, जिसमें AAP भी शामिल है, केरल के सामने आने वाले किसी भी मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले सका, चाहे वह विकास संबंधी मुद्दे हों या पर्यावरण की चुनौतियों से जुड़ा.

केरल में लगभग एक किस्म का सियासी गतिरोध है. मुद्दा यह है कि न तो AAP और न ही ट्वेंटी-20 और न ही उनके साथियों ने इन सवालों पर ध्यान दिया है. अपनी घोषित उपयोगितावादी (यूटिलिटेरियन) विचारधारा के साथ, वे केरल की राजनीति में संकट को बढ़ा सकते हैं. वहीं केरल में विकास के सवाल पर LDF और UDF का नजरिया लगभग अब एक जैसा हो गया है. मुख्यधारा के वामपंथी अब जिस व्यावहारिकता से चल रहे हैं उसने केरल के सामने आने वाले मुद्दों को सुलझाने की उनकी क्षमता को काफी घटा दिया है.

दरअअसल नियोलिबरल या नवउदारवादी तर्क दोनों ही मोर्चों का मुख्य आधार बन गया है, लेकिन ये ठीक ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें AAP जैसी 'अ-राजनीतिक या अवैचारिक ' पार्टियां कभी भी उठाने की जहमत नहीं लेती हैं.

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