लगभग दो दशकों के बाद अमेरिका और चीन के बीच संतुलन बनाते हुए, जिसमें क्वाड (Quad) भी शामिल है, ऑस्ट्रेलिया आखिरकार 16 सितंबर को एक नए एंग्लो-सेंट्रीक सुरक्षा डील 'ऑकस' (AUKUS) नाम की साझेदारी में शामिल हुआ जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन है.
AUKUS साइबर, एडवांस टेकनोलॉजी और रक्षा के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया की न्यूक्लियर सबमरीन (हालांकि यह न्यूक्लियर हथियारों से लैस नहीं है) पर भी समन्वय करेगा. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के नेशनल सिक्योरिटी कॉलेज की प्रमुख रोरी मेडकाफ के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति में "रूबिकॉन मोमेंट" ने संकेत दिया है कि अब चीन के पास वापस जाने जरूरत नहीं है, भले ही चीन ने ऑस्ट्रेलिया की जीडीपी को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो.
ऑस्ट्रेलिया ने हमेशा समुद्री शक्तियों के साथ गठबंधन क्यों किया है?
भौगोलिक रूप से अलग-थलग पड़े द्वीप राष्ट्र ऑस्ट्रेलिया को शायद ही कभी सैन्य रूप से धमकी दी गई हो. केवल दूसरे विश्व युद्ध में ही इसे एक छोटे से देश द्वारा सीधे धमकी दी गई थी. फिर भी, धनी और सुरक्षित ऑस्ट्रेलिया ने साल 1900 से यूके और यूएस के ज्यादातर युद्धों में भाग लिया था.
समस्या यह है कि ऑस्ट्रेलिया में तटीय इलाके बहुत हैं, एक छोटी सी आबादी है, जो लगभग 2.4 करोड़ है. अब अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए, ऑस्ट्रेलिया को समुद्र के रास्ते व्यापार करना चाहिए और इस तरह अपने समुद्री इलाकों को सुरक्षित करना चाहिए. लेकिन यह ऑस्ट्रेलिया के लिए एक रणनीतिक समस्या पैदा करता है- यह अपने समुद्री इलाकों की सुरक्षा की गारंटी देने के लिए और अपनी अर्थव्यवस्था की सुरक्षा की गारंटी के लिए बड़े सशस्त्र बलों को बढ़ाने और बनाए रखने की स्थिति में नहीं है. यही सब इसके सभी विदेश नीति से जुड़े निर्णयों को प्रभावित करती है.
तभी ऑस्ट्रेलिया हमेशा से समुद्री शक्तियों के साथ साझेदारी करता आ रहा है. पहले यह ब्रिटेन से फिर अमेरिका से लेकिन सिर्फ मैत्रीपूर्ण संबंध रखना पर्याप्त नहीं होता. इसलिए ऑस्ट्रेलिया को उनके युद्ध में उनका साथ देना पड़ता है.
हालांकि, समुद्री व्यापार पर ऑस्ट्रेलिया की निर्भरता का अर्थ यह भी है कि वह किसी अन्य नौसैनिक शक्ति का विरोध नहीं कर सकता. इसलिए चीन के उदय के साथ पिछले दो दशकों में चीन के रू - बरू ऑस्ट्रेलिया की नीतियों में कई विकास हुए, जो अभी भी एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है.
क्वाड की धीमी प्रोग्रेस
क्वाड जो ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के बीच एक अनौपचारिक सुरक्षा संरचना है, जिसकी उत्पत्ति 'इंडो-पैसिफिक' शब्द से हुई है. 9/11 के आतंकी के हमले तक, हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) आम तौर पर विदेशी ताकतों से मुक्त था. लेकिन 9/11 के बाद, अमेरिका ने यहां अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कदम बढ़ाया.
दिसंबर 2004 की सुनामी ने इन चार देशों ने एक 'कोर ग्रुप' बनाया. इसने, भारत में तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के भाषण के साथ, क्वाड के पहले पुनरावृत्ति के लिए आधार प्रदान किया गया था. इसके बाद साल 2006 में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहा था कि "पारस्परिक हित के विषयों पर एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में जापान, भारत और अन्य समान विचारधारा वाले देशों के बीच संवाद करने की उपयोगिता के बारे में बात की है. फिर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ, क्वाड पहली बार 2007 में बना.
एक कारण यह था कि अन्य देश ने चीन के इस कथन को मानते थे कि क्वाड चीन पर निर्देशित एक नियंत्रण नेटवर्क था, और उन्हें एक नए शीत युद्ध की आशंका थी.
ओबामा प्रशासन ने इंडो-पैसिफिक का उल्लेख इस सुझाव के साथ करना शुरू किया कि इंडियन ओशन क्षेत्र अपेक्षाकृत कम लागत पर बढ़ते चीन के प्रभुत्व को संतुलित करने के लिए आदर्श जगह है.
जापान ने जब अपने सेनकाकू द्वीपों (2012) का राष्ट्रीयकरण किया तब से चीन ने वहां अपनी जबरदस्त गतिविधि बढ़ा दी. जापान ने इसका जवाब भी दिया, जिससे तनाव बढ़ गया और पीएम आबे ने क्वाड को सक्रिय करने का आह्वान किया. भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद प्रधानमंत्री केविन रुड के जाने के बाद से ऑस्ट्रेलिया और चीन के संबंध भी बदल गए.
अमेरिका के लिए चीन को चुनौती देने के लिए इंडो-पैसिफिक बेहतर जगह है
समय के साथ, अमेरिका में यह धारणा कि एशिया-प्रशांत के बजाय इंडियन ओशन क्षेत्र चीन को चुनौती देने के लिए एक बेहतर जगह है, इसने जोर पकड़ा:
स्टडी से पता चलता है कि अमेरिकी सेना दक्षिण पूर्व एशिया/एशिया-प्रशांत में चीन के साथ युद्ध जीतने में सक्षम नहीं हो सकती है, क्योंकि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को कई पहलुओं में रणनीतिक लाभ मिला है.
दक्षिण कोरिया और जापान दोनों जगहों पर अमेरिका के ठिकाने हैं, और यह ताइवान के साथ भी जुड़ा हुआ है. इसलिए, एशिया-प्रशांत में कोई भी युद्ध, जिसमें अमेरिका-जापान बनाम चीन शामिल है, यह न केवल चार बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी बिगाड़ देगा.
दक्षिण पूर्व एशिया के ज्यादातर देश अमेरिका-चीन युद्ध में भाग लेने के इच्छुक नहीं हैं.
चीन को इंडियन ओशन में अपनी ऊर्जा/संसाधन पहुंच और व्यापार समुद्री संचार लाइनों (एसएलओसी) की रक्षा करनी चाहिए. यदि ऐसा नहीं होता है, तो चीन की अर्थव्यवस्था और आंतरिक स्थिरता बाधित हो जाएगी.
इस तरह से भू-राजनीतिक घटनाओं ने क्वाड को फिर से शुरू किया.
लेकिन क्वाड में समस्याएं थी
लेकिन क्वाड के साथ तीन समस्याएं हैं:
इसमें नाटो के आर्टिकल 5 के समान कोई सेक्शन नहीं है, जैसे 'नाटो के एक सदस्य पर हमला उसके सभी सदस्यों पर हमला है';
क्वाड में शामिल होने के लिए हर सदस्य की अपनी प्रेरणाएं होती हैं, और यह अनिवार्य रूप से क्वाड को किसी अन्य सदस्य, विशेष रूप से भारत के समर्थन में चीन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए प्रेरित नहीं कर सकती हैं;
अमेरिका ने महसूस किया कि भारत उसके मानकों के मुताबिक क्वाड में फिट नहीं बैठ रहा था, अमेरिका यह नहीं समझता था कि उसके नेतृत्व में चीन और अन्य के साथ संघर्ष में भारत फंस रहा था जबकि भारत के अपने मुद्दों को ध्यान में भी नहीं रखा जा रहा था.
और अब 'ऑकस'. जैसा कि स्पष्ट है, क्वाड का एक व्यापक चार्टर है, जबकि AUKUS का फोकस केवल सैन्य पर है. फिर भी, यह देखा जाना बाकी है कि क्या एंग्लो-सेंट्रीक 'ऑकस' क्या क्वाड की अहमियत को कम करेगा या इसे चीन का विरोध करने वाले कई समान विचारधारा वाले देशों का एंटीचैम्बर बनेगा.
(कुलदीप सिंह भारतीय सेना के रिटायर ब्रिगेडियर हैं. यह उनकी व्यक्तिगत राय है. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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